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घोषणापत्र पर चिंतन के लिए मतदाता के पास नहीं समय
क्या कहते हैं राजनीतिक दल
भोपाल/राजनीतिक संवाददाता। पिछले आम चुनाव 2014 में भाजपा ने पहले चरण के मतदान के दिन ही अपना घोषणापत्र जारी किया था, जिस पर कांग्रेस ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन कोई नियम-कायदा नहीं होने पर चुनाव आयोग ने कार्रवाई नहीं की थी। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद चुनाव आयोग ने मौजूदा आम चुनाव के पहले चरण के 48 घंटे पहले तक घोषणा पत्र जारी करने की बाध्यता तय की है। देश में होने वाले लोकसभा चुनाव में सुधार की गुंजाइश बनी हुई है। पिछले कुछ सालों में सुधार तो किए गए, लेकिन अब भी कई ऐसे मामले हैं, जिनमें सुधार की गुंजाइश पर चर्चा शुरू हो चुकी है। ताजा मामला चुनाव में भाग लेने वाले राजनीतिक दलों द्वारा घोषणा पत्र पेश किए जाने का है।
पिछले आम चुनाव 2014 में भाजपा ने पहले चरण के मतदान के दिन ही अपना घोषणापत्र जारी किया था, जिस पर कांग्रेस ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन कोई नियम-कायदा नहीं होने पर चुनाव आयोग ने कार्रवाई नहीं की थी। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद चुनाव आयोग ने मौजूदा आम चुनाव के पहले चरण के 48 घंटे पहले तक घोषणा पत्र जारी करने की बाध्यता तय की है। घोषणा पत्र के लिए समय की बाध्यता तय किए जाने की मांग इस तर्क के आधार पर की जा रही है कि मतदाता को कम से कम इतना समय मिलना चाहिए कि वह राजनीतिक दलों के घोषणापत्र को पढ़ सके, उन पर विचार कर सके और जरूरत हो तो राजनीतिक दलों से सवाल कर सके। जहां तक दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देशों की व्यवस्था की बात करें, तो अमेरिका में चुनाव के 2 महीने पहले घोषणापत्र जारी कर दिया जाता है और संबंधित राजनीतिक दल के नेता इस पर मतदाताओं के शंकाओं का समाधान भी करते हैं। भूटान जैसे देश जहां पर राजशाही व्यवस्था है, फिर भी कैबिनेट के चुनाव के लिए वहां भी 3 सप्ताह पहले घोषणा पत्र जारी करना होता है, लेकिन भारत में हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद पहली बार यह व्यवस्था की गई है कि राजनीतिक दल चुनाव के पहले चरण के 48 घंटे पहले तक घोषणा पत्र जारी कर सकते हैं।
कांग्रेस ने भी दी सहमति
हालांकि इस व्यवस्था में भी सुधार की गुंजाइश है, क्योंकि मतदाता के लिहाज से सिर्फ 2 दिन में घोषणा पत्र पर चिंतन-मनन करने का समय पर्याप्त नहीं है. इस व्यवस्था पर मध्यप्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं, कि कांग्रेस पार्टी सैद्धांतिक रूप से इस बात को वचनबद्धता के रूप में स्वीकार करती है। राजनीतिक दल अगर सहमत हैं और वह चाहते हैं, कि चुनाव सुधार की प्रक्रिया जारी रहे, तो चुनाव आयोग को स्वयं संज्ञान लेना चाहिए।
भाजपा रखेगी अपना मत
मध्यप्रदेश भाजपा के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल का कहना है कि चुनाव आयोग में सभी पंजीकृत और राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के साथ बैठकर अगर कोई प्रावधान बनता है, तो उसमें पार्टी अपने विचार रखेगी। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि तमाम तरह के प्रावधान हैं, जो राजनीतिक दल से विचार-विमर्श करके ही बनते हैं और उसी के आधार पर तय होंगे। अमेरिका या यूरोप में क्या होता है, दोनों में बहुत अंतर है। भारत की जनता की सोच-समझ के आधार पर घोषणा पत्र तय किए जा सकते हैं और उनकी वैधानिकता चुनाव आयोग की दृष्टि से सुनिश्चित हो सकती है। चुनाव आयोग सभी दलों के साथ बैठकर कोई निर्णय करता है, तो भाजपा उसमें अपना मत जरूर रखेगी।