चाय, चौपाल और चौकीदार की चर्चा में एक ही मुख्य किरदार

चाय, चौपाल और चौकीदार की चर्चा में एक ही मुख्य किरदार
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भोपाल/राजनीतिक संवाददाता। दिल्ली के सिंहासन पर अगली सरकार किसकी होगी? कौन होगा प्रधानमंत्री? चर्चा छेड़ने की जरूरत है। विचारों का प्रवाह हिलोरें लेना शुरू कर देता है। मौके के हिसाब से हर शब्द के मायने उभरने लगते हैं। आम लोगों के दिमाग में क्या चल रहा है? समझने के प्राथमिक प्रयास को निष्कर्ष नहीं माना जा सकता। भोपाल संसदीय क्षेत्र में अभी कांग्रेस को छोड़कर अन्य राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के नाम का ऐलान नही हुआ है। टिकट की टिकटिक के बीच राजनीतिक माहौल गर्म होने लगा है। जहां-जहां चर्चा हुई, ऐसा लगा कि आम मतदाता के मंथन की केंद्रीय भूमिका में पार्टी है, किरदार है। यह अलग बात है कि तद्समय राजनीतिक दलों के टिकट बंटवारों में जातीय समीकरणों पर गुणाभाग चल रहा है।

पहला पड़ाव शाहपुरा लेक


राजधानी के हर प्रमुख शाहपुरा लेक जहां पढ़े-लिखे वर्ग के लोगों का जमावड़ा रहता है पर एक ही चर्चा रहती है लोकसभा चुनाव, किसकी बनेगी सरकार, कौन बनेगा प्रधानमंत्री? सड़क किनारे चौपाल पर बैठ कर यह वर्ग बस इसी गुण-गणित में लगा दिखाई देता है किसके-किसके बीच मुकाबला? बात तो शुरू हुई पार्टी उम्मीदवारों के नामों से, कुछ ही मिनट में राष्ट्रीय व्यापकता बैठती है और शुरु हो जाता है बहस, तर्क-कुतर्क का सिलसिला। भाजपा सरकार तो वापस आएगी। लेकिन प्रधानमंत्री कोई और होगा? क्यों? - तो और कौन पीएम (प्रधानमंत्री) बनने लायक है? सफेद दाढ़ी और हाफ कुर्ता वाले एक धुर विरोधी ने अपनी विचारधारा से यू-टर्न लेते हुए कहा, इस बार तो सरकार किसी भी हालत में नहीं बदलनी चाहिए। तभी तो लोगों को पता चलेगा कि सिर्फ वादे करने वाले काम नहीं कर सके। अगर इसबार सरकार बदल गई तो जब पांच साल बाद आएगी तो 15- 20 साल नहीं जाएगी।

तीसरा पड़ाव बड़ी झील


गुफा मंदिर से वापसी के क्रम में चाय की चुस्की के लिए राजा भोज द्वारा बसाई गई नगरी भोपाल की बड़ी झील पर थे। । यह वही भोपाल है, जहां मध्यकाल में शैव भक्त राजा भोज ने महमूद गजनवी सन् 1026 में गजनवी पर हमला किया और वह क्रूर हमलावर सिंध के रेगिस्तान में भाग गया। फुटपाथ पर चाय का प्याला बढ़ाते हुए दुकानदार ने उलट कर पूछ लिया, क्या करना चाहिए था? महंगाई बढ़ी नहीं। सरकारी काम के लिए दफ्तरों के चक्कर कम हो गए। सही काम में रिश्वत की जरूरत नहीं रही। काफी सरकारी काम ऑनलाइन ही हो जा रहे हैं। नोटबंदी से पहले जैसी दुकानदारी थी, वैसी ही अब भी है। फिर क्यों बदलें सरकार? मोबाइल और इंटरनेट की सस्ती व्यवस्था में सत्ता वापसी की साजिश की तलाश करते हुए साथ खड़े युवा अभिषेक सक्सेना ने कहा, देखो उन फाइव स्टार होटल के गार्डों (चौकीदारों) को। सभी वीडियो देखने में जुटे हैं। पप्पू किरदार को बार-बार दिखाने के लिए ही यह सब हुआ है। फिर चलते हैं, फाइव स्टार होटल के चौकीदारों से ही बात कर लेते हैं। बड़ी झील के सामने साथी उम्मेद सिंह के साथ ड्यूटी दे रहे छह फीट लंबे सचेन्द्र सिंह ने मोदी और राहुल पर ठेठ देहाती अंदाज में कुछ तुकबंदियां सुनाते हुए बात आगे बढ़ाई। देश को मेजर-कर्नल जैसे जिगर वाले प्रधानमंत्री की जरूरत है। वोट किसे देंगे? इस बार वोट के लायक तो सिर्फ एक ही चेहरा है। बताओ किसे प्रधानमंत्री बना दूं? -नहीं, नहीं, सांसद के लिए कौन पसंद है? उसे ही चुनेंगे जो पीएम बनाएगा। फिलहाल चर्चा में जाति की जगह सिर्फ पार्टी है।

दूसरा गुफा मंदिर


गुफा मंदिर के अंदर से सभी के लिए स्थान लेने का निर्देश प्रसारित हुआ। पंडित ने आरती का वाचन करने से पहले एक प्रसंग सुनाया। प्रसंग संक्षेप में। महिला के रोने की आवाज आई। राजा ने अपने मुख्य सेवक को सहायता के लिए भेजा। वहां देखा कि कमल दल पर विराजमान देवी लक्ष्मी दुखी हैं। बोलीं, राजा की एक माह बाद मृत्यु हो जाएगी। उपाय था कि काली मंदिर में मानव बलि दी जाए। सेवक ने अपने सात साल के बेटे की बलि दी। बेटी और पत्नी सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकीं। अंतत: सेवक ने भी तलवार से अपना सिर अलग कर लिया। सबकुछ देख रहा राजा भी विचलित हो उठा तो काली प्रगट हुईं। सबको नया जीवन दिया। प्रसंग की समाप्ति के बाद आरती सम्पन्न हुई। चर्चाएं भी फिर चुनावी मोड की तरफ लौट गईं। पता नहीं क्यों युवा भी सिर्फ एक ही नाम रट रहे हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। और किसी पर चर्चा ही नहीं बढ़ रही। दूसरों का तो सिर्फ मजाक उड़ रहा है।

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