ग्वालियार-चम्बल की सीटों पर कांग्रेस में फंसा पेंच

ग्वालियार-चम्बल की सीटों पर कांग्रेस में फंसा पेंच
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सिंधिया की दखल की सीटों पर दिग्विजय गुट हावी

भोपाल/राजनीतिक संवाददाता। मध्य प्रदेश की सात ऐसी सीटें हैं जिन पर सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की राय के बाद उम्मीदवारों के नामों पर विचार किया जाएगा। प्रदेश की सात सीटों पर सिंधिया का सीधा दखल है। यहां से उम्मीदवार उनके कहने पर ही पार्टी द्वारा फाइनल किए जाएंगे। इनमें ग्वालियर, इंदौर,विदिशा, धार, भिंड मुरैना सीट शामिल है। ग्वालियर से सिंधिया की पत्नी प्रियदर्शनी राजे सिंधिया को लड़ाए जाने की मांग उठ रही है, लेकिन सिंधिया ने अभी तक उनके नाम अपनी सहमति नहीं दी है। इसलिए अब तक पार्टी की ओर से इन सीटों पर नाम तय नहीं हो पाए हैं। इस सीट से दूसरा नाम पूर्व में उम्मीदवार रह चुके अशोक सिंह का जिनके लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सिफारिश कर रहे हैं।

अब तक प्रदेश की 9 सीटों पर कांग्रेस ने प्रत्याशी की घोषणा कर दी है। प्रदेश की 20 सीटों पर अभी पार्टी को उम्मीदवारों का ऐलान करना है। इनमें से सात सीटों पर सिंधिया की राय के बाद ही अंतिम फैसला लिया जाएगा। 20 में से सात सीटें गुना, ग्वालियर, इंदौर, विदिशा, धार, भिंड और मुरैना के प्रत्याशी का चयन करने में सिंधिया की भूमिका सबसे अहम है। विधानसभा चुनाव में गुना विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाई थी। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सिंधिया को इसलिए किसी अन्य सीट से चुनाव लडऩे की सलाह दी थी। जिसके बाद ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं सिंधिया इंदौर से चुनाव लड़ सकते हैं। लेकिन शनिवार को मुख्यमंत्री ने इन अटकलों पर विराम लगा दिया। उन्होंने कहा कि सिंधिया गुना-शिवपुरी से ही चुनाव लड़ेंगे।

ग्वालियर सीट पर मंथन जारी

इस सीट पर जिला कांग्रेस की ओर से सिंधिया की पत्नी प्रियदर्शनी राजे सिंधिया के नाम का प्रस्ताव पास कर केन्द्रीय चुनाव समिति को भेजा गया है। पार्टी के स्थानीय नेताओं का मानना है कि कांग्रेस को यदि इस सीट पर जीत दर्ज करना है तो श्रीमती सिंधिया को ही उम्मीदवार बनाना चाहिए, लेकिन सिंधिया की ओर से अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया लेने से मामला लटक गया है।वहीं दिग्विजय सिंह की ओर से इस सीट के लिए अशोक सिंह का नाम आगे बढ़ाया गया है, उनका तर्क यह है कि अशोक पूर्व में इस सीट से चुनाव लड़ चुके है अत: वह यहां जीत हासिल कर सकते हैं।

भिण्ड सीट को लेकर कांग्रेस में हावी है गुटबाजी

भिंड में इस बार भाजपा की ओर से नया उम्मीदवार मैदान में उतारे जाने के कारण कोग्रस का ऐसा मानना है कि इस सीट पर भाजपा के अन्दर मचे घमासान का लाभ कांग्रेस को मिल सकता है। इसलिए इस सीट पर कांग्रेस फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। वैसे इस सीट की उम्मीवारी को लेकर कांग्रेस के अन्दर भी गुटबाजी चरम पर है। दिग्विजय सिंह गुट की ओर से यहां से फूल सिंह बरैया को कांग्रेस इसी मकसद से शामिल कराया गया है कि उन्हें यहां से उम्मीदवार बनाया जा सके, परन्तु इस मकसद को पूरा करने में कामयाबी नही मिली। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी परेशानी यह है कि इस सीट को लेकर सिंधिया की सहमति जरुरी है और सिंधिया फूल सिंह बरैया के नाम पर सहमत नही है। सिंधिया की ओर से भिण्ड से पूर्व सांसद रहे अशोक अर्गल पर दांव खेलने की रणनीति बनाई जा रही है। सिंधिया खेमे की इस रणनीति के पीछे दो मकसद हैं पहला भिण्ड सीट पर अशोक अर्गल को मतदाताओं का खासा समर्थन प्राप्त है, जिसका लाभ उठाकर कांग्रेस इस सीट को भाजपा से छीनना चाहती है। दूसरा अशोक अर्गल को भिण्ड से कांग्रेस उम्मीदवार बनाने से उनके मुरैना सीट पर काम करने वाली टीम कांग्रेस के समर्थन में आ जाएगी जिससे कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार रामनिवास रावत की राह को आसान बनाया जा सकता है। सब जानते हैं कि अशोक अर्गल का कार्य क्षेत्र मूलत: मुरैना ही रहा है। साल 20019 परिसीमन में मुरैना सीट सामन्य हो जाने के कारण उन्हें भाजपा ने भिण्ड सीट से उम्मीदवार बनाया । लेकिन 2014 में उनका टिकिट काट कर डा. भागीरथ प्रसाद को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद उनकी नाराजगी दूर करने के लिए उन्हें मुरैना नगर निगम का पहला मापौर बनाया गया। हांलाकि यह रणनीति भी अभी अधर में है। परिणाम स्वरुप इस सीट को लेकर कोई अंतिम फैसला अब तक नही हो सका है।

मुरैना पर भी फंसा है पेंच

कांग्रेस के पास फिलहाल राम निवास रावत के अलावा इस सीट पर कोई दूसरा विकल्प नही है। लेकिन इस बात को कांग्रेस के बड़े क्षत्रप भली भांति जानते हैं कि केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के सामने रावत कमजोर उम्मीदवार साबित होंगे। इस लिए कांग्रेस यहां किसी ऐसे चेहरे की तलाश में है, जो उसकी चुनावी नैया पर लगाने में सहायक साबित हो सके।

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