मप्र ने लॉक डाउन में 24 लाख कूलर खरीद डाले, बैकडोर से हुई खरीदी -बिक्री

मप्र ने लॉक डाउन में 24 लाख कूलर खरीद डाले, बैकडोर से हुई खरीदी -बिक्री
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भोपाल/ श्याम चौरसिया। कोरोना की प्रचंड महामारी से उपजे लॉक डाउन ओर पानी की तंगी के बाबजूद मप्र ने थोड़े बहुत नही बल्कि ख़रीब 24 लाख कूलर खरीद डाले। ये खरीदी- बिक्री पिछले दरवाजे से जम कर हुई। लॉकडाउन के कारण कीमतें भी ज्यादा चुकानी पड़ी।

मप्र ने मार्च से लेकर जून के प्रारंभ में यानी कुल 03 महीने में 24 लाख से अधिक कूलर खरीद कीर्तिमान रचा। इसमें एसी अलग है, पानी, बिजली और नगदी की तंगी के बावजूद कूलर सब्जी-भांजी की तरह खरीदे-बेचे गए। सबसे ज्यादा बिक्री अप्रैल प्रारंभ से मई अंत तक हुई। आर्थिक तंगी, फसलें बर्बाद होने का रेाना रोने वाले ग्रामों ने तो जमकर खरीददारी क। ग्रामों में दहेज में दिेये जाने वाले विभिन्न बिजली उपकरणों के अलावा कूलर, फ्रिज, सोफा, मुख्य उपहार रहे। ट्रेक्टर ट्रॉलियों में लदे दहेज के सामानों में कूलर खास इसलिए था कि ग्राम आएं दिन पानी की एंव बिजली की तंगी का रोना रोते है।

एक दुकान से 9 सौ कूलर की बिक्री -

बिजली नहीं है तो फिर कूलर की उपयोगिता पर सवालियां निशान लगना स्वाभाविक है। इसका अर्थ ये है कि ग्रामों ने वांछित पानी की सुलभता बिना ग्रामों ने दांव नहीं लगाया। राजगढ़ के पठारों के लिए विख्यात खिलचीपुर बस स्टेंड स्थित एक विक्रेता ने अपनी छोटी और नई दुकान से करीब 09 सौ कूलर बेच दिए। कूलर नगरीय क्षैत्रों की तुलना में लोडवाढ अचल के ग्रामों में ज्यादा खरीदे गए। वो भी नगद औसत कीमत यानी 05 हजार से लेकर 08 हजार तक के कूलरों की बिक्री ज्यादा हुई। 02 हजार से लेकर 03 हजार वाले कूलरों में खासी पूछ परख रही।

सुविधा संपन्न हुए ग्राम -

जब एक छोटी और नई दुकान से 09 सो कूलरों की ब्रिक्री संभव है तो फिर प्रदेश की हजारो अन्य बडी और पुरानी दुकानों से तो इससे अधिक खरीदे गए होेंगे। एक बात साफ है कि ग्रामों में न तो रोजगार की और न नगदी की कोई कमी है। वे कूलर ही नहीं बल्की टीवी, फ्रिज जैसे उपकरणों को भी खरीद नगरीय अंचल की विलासता को टक्कर दे रहे है। अब से 20 साल पूर्व ग्रामों में झोपडियों की भरमार हुआ करती थी।अब झोपडियों की जगह साफ सुथरे पक्के भवन दिखते है। हर घर में कूलर पंखे, टीवी फ्रीज शान में शामिल को चुके है।

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