रेत ठेकेदार ही बने सरकारी खजाने के लुटेरे, ठेका लेकर निकाले अनूठे तरीके

रेत ठेकेदार ही बने सरकारी खजाने के लुटेरे, ठेका लेकर निकाले अनूठे तरीके
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रॉयल्टी नहीं फर्जी कूपन से खाली हो रही नदियों की रेत

ग्वालियर/भोपाल, विशेष संवाददाता। प्रदेश के 43 जिलों में नदियों से रेत खनन के लिए सरकार ने जिन ठेकेदारों को ठेके दिए हैं, उन्होंने खुद ही घाटों पर रेत चोरी करना शुरू कर दिया है। ग्वालियर सहित कुछ अन्य जिलों में रेत ठेकेदारों ने रेत चोरी का अनूठा तरीका निकाला है। रॉयल्टी के स्थान पर कूपन से रेत भरने पर रेत वाहन चालकों को करीब 20-25 प्रतिशत के छूट का ऑफर दिया जा रहा है। इससे सरकार के खजाने को सीधी चपत लगाई जा रही है।

उल्लेखनीय है कि कमलनाथ सरकार ने जिला स्तर पर रेत के ठेके अलग-अलग कंपनियों और ठेकेदारों को दिए थे, लेकिन जून माह के पहले सप्ताह तक छह ठेकेदारों को छोडक़र शेष को रेत खनन की अनुमति नहीं मिल सकी थी। हालांकि अभी भी आधा दर्जन ठेकेदारों को रेत खनन की अनुमति नहीं मिल सकी है। लेकिन रेत खनन निरंतर जारी है।

ग्वालियर जिला समूह का ठेका लेने वाली कंपनी एमपी सेल्स को रेत खनन की अनुमति मिल चुकी है। कंपनी न केवल अधिकृत घाटों से रेत खनन कर रही है, बल्कि लोहारी जैसे कई प्रमुख अवैध घाटों को भी कंपनी ने पेटी कॉन्ट्रेक्ट पर दे दिया है। कंपनी जिन घाटों को खुद संचालित कर रही है, वहां परिवहन विभाग के अवैध कूपन की तर्ज पर रॉयल्टी के स्थान पर कूपन व्यवस्था शुरू की गई है। इस व्यवस्था के तहत 90 प्रतिशत रेत परिवहन करने वाले वाहनों को रॉयल्टी जारी नहीं की जा रही है, बल्कि रॉयल्टी के स्थान पर एक कूपन थमा दिया जाता है। ऐसा भी नहीं कि मांगे जाने पर कंपनी रॉयल्टी नहीं देती, बल्कि रॉयल्टी पर वाहन चालकों को करीब 20-25 प्रतिशत अधिक राशि का भुगतान करना पड़ता है, इस कारण 90 प्रतिशत वाहन चालक फायदे के लालच में कूपन से ही रेत भरकर ले जा रहे हैं। इससे ठेकेदार तो सीधा मुनाफा ले रहे हैं, लेकिन शासन के खजाने को सीधा चूना लगाया जा रहा है।

शासन को कैसे होगा घाटा

कूपन व्यवस्था से ठेकेदार द्वारा रेत चोरी किए जाने पर भी उन्हें ठेके की राशि तो देनी होगी, फिर भी कूपन व्यवस्था ठेकेदार के लिए फायदे का सौदा होगी। इसके पीछे का गणित यह है कि ठेका समाप्त होने की अवधि तक यह देखा जाएगा कि ठेकेदार ने कितनी रेत का खनन किया है। सिर्फ वहीं रेत रिकार्ड में दर्ज होगी जो रॉयल्टी से निकाली जाएगी। इस तरह भण्डारण क्षमता से अधिक रेत खनन प्रदर्शित नहीं होने से एनजीटी भी आपत्ति नहीं ले सकेगी और शासन भी। बताया जा रहा है कि घाटा दिखाकर ठेकेदार अगले दो वित्तीय वर्षों के लिए रेत ठेकों की दरें कम कराने के लिए भी सरकार पर दबाव बना रहे हैं।

कूपन पर क्यों खरीद रहे वाहन चालक



रॉयल्टी से रेत खरीद कर बाजार में बेचने पहुंचने वाले वाहन चालकों की महंगी रेत लोग नहीं खरीदते हैं क्योंकि कूपन से उससे 20 प्रतिशत कम राशि में दूसरे वाहन चालक रेत पहुंचा देते हैं। इस प्रतिस्पर्धा के चलते अधिकांश वाहन चालक कूपन से ही रेत खरीदने के लिए मजबूर हैं।

इनका कहना है -

'रेत ठेकेदार ने अगर इस तरह की वैकल्पिक व्यवस्था शुरू की है तो कल से ही मैं कार्रवाई करवाता हूँ। रेत और रॉयल्टी चोरी के लिए जिले में घनघोर अभियान चलाया जाएगा।'

कौशलेन्द्र विक्रम सिंह

जिलाधीश ग्वालियर

'रॉयल्टी के स्थान पर कूपन व्यवस्था की जानकारी नहीं थी, आपने संज्ञान में लाया है तो कल ही जांच करता हँू। ऐसा पाया गया तो संबंधित कंपनी के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी। '

गोविंद शर्मा

जिला खनिज अधिकारी, ग्वालियर

'यहां लम्बे समय से रेत चोरी की आदत लोगों को डली है। लोग रॉयल्टी से रेत खरीदना नहीं चाहते। हम कूपन तो नदी घाट पर प्रवेश के लिए जारी करते हैं, लेकिन वाहन चालक उन कूपन को लेकर रेत भरकर गांव देहात से निकल भागते हैं।'

अजय गर्ग, रेत ठेकेदार


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