स्कूल चलें हम अभियान: मासूम के सिर से लकड़ी की गठरी उतार, एसडीओपी ने पहुंचाया विद्यालय

स्कूल चलें हम अभियान: मासूम के सिर से लकड़ी की गठरी उतार, एसडीओपी ने पहुंचाया विद्यालय
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बच्चों को विद्यालय पहुंचाने के लिए प्रदेश स्तर पर स्कूल चलें अभियान चलाया जा रहा है, जिसका आज अंतिम दिन था।

ग्वालियर, न.सं.। बच्चों को विद्यालय पहुंचाने के लिए प्रदेश स्तर पर स्कूल चलें अभियान चलाया जा रहा है, जिसका आज अंतिम दिन था। अक्सर गरीब असहाय लोगों की मदद के लिए आगे आकर काम करने वाले एसडीओपी घाटीगांव संतोष पटेल ने एक बार फिर सराहनीय पहल करते हुए न केवल एक मासूम आदिवासी बच्चे को रास्ते में चलते समय सिर से लकड़ी की गठरी उतारकर विद्यालय पहुंचाया बल्कि शिक्षक से भी कहा कि समग्र आईडी सक्रिय करने के बाद बच्चे का नाम रजिस्टर में दर्ज कर उसे पढऩे के लिए प्रेरित करें।

एसडीओपी घाटीगांव संतोष पटेल बुधवार को डांढा खिरक रेलवे फाटक से आगे तकियापुरा से गुजर रहे थे। तभी उनको रास्ते में दो बालक सिर पर लकड़ी की गठरी ले जाते हुए दिखाई दिए। एसडीओपी ने अपनी गाड़ी रुकवाकर बच्चों को रोका। भरत पुत्र पूरन आदिवासी 8 वर्ष से जब पुलिस अधिकारी ने पढऩे के बारे में पूछा तो उसने बताया कि वह एक वर्ष से विद्यालय नहीं जा रहा है और अब जंगल से लकड़ी काटकर ले जाने का काम करने लगा है। उन्होनें गाड़ी से भरत के लिए के लिए कपड़े निकाले और उसे सजा-धजाकर अपनी गाड़ी में बैठाकर तकियापुरा प्राथमिक विद्यालय ले गए। भरत विद्यालय जाकर प्रसन्न हो रहा था। शिक्षक से बातचीत कर संतोष पटेल ने कहा कि भरत को पढऩे के लिए प्रेरित तो करें साथ ही उसका पंजीकरण आदि प्रक्रिया भी पूरी करें ताकि वह प्रत्येक दिन विद्यालय पढऩे आ सके। भरत को नए कपड़ों के अलावा टॉफी का एक पैकेट भी दिया और कहा कि जब खत्म हो जाए तो बता देना फिर दोबारा टॉफी देंगे। बता दें सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले एसडीओपी संतोष पटेल अपने सर्किल में लोगों के लिए प्रेरणा का केन्द्र बने हुए हैं और उनको जब भी गरीब असहाय व्यक्ति नजर आता है या फिर उनके कार्यालय पहुंचता है वह उसकी फरियाद तो सुनते ही साथ ही स्वयं उसे साथ ले जाकर उस समस्या का समाधान भी करवाते हैं। आज एक आदिवासी बच्चे को विद्यालय पहुंचाकर एक बार अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।

शिक्षा का आज भी दूर सहरिया आदिवासी-

घाटीगांव क्षेत्र सहरिया आदिवासी के लिए पहचान रखता है यहां पर सैकड़ों परिवार निवास करते हैं। सहरिया आदिवासी आज भी जंगलों पर निर्भर है और उनका शिक्षा से कोसों दूर तक कोई नाता नहीं है। प्रदेश सरकार ने गांव गांव तक विद्यालय और नए भवनों का निर्माण कर दिया है लेकिन वह विरान पड़े हुए हैं। शिक्षक दूर दराज वाले क्षेत्रों के विद्यालय में जाते अवश्य हैं लेकिन महज खाना पूर्ति करने के लिए। इस ओर कोई ध्यान देने वाला नहीं है।


एक बच्चा भी शिक्षित हो जाए तो हमारी पहल सार्थक रही: संतोष पटेल

एसडीओपी घाटीगांव संतोष पटेल ने कहा कि आज सहरिया आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर काफी दयनीय है। हमारा यह छोटा सा प्रयास जिससे एक बच्चा भी शिक्षित हो जाए तो काफी बड़ा कहा जा सकता है। जुलाई माह में नए बस्ते नई किताबें और नए गणवेश के लिए यदि जिज्ञासा व उत्साह बच्चों में नहीं है तो इसमें परिजनों की कमी है जिस दूर करने की आवश्यकता है। क्योंकि बच्चे देश से पहले माता पिता के भविष्य होते हैं।

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