50 कलाकारों ने मंच पर दिखाया 1842 का बुंदेलखंड विद्रोह, दर्शकों ने जानी अंग्रेजों की दमनकारी नीति
ग्वालियर | आज़ादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, नागपुर और नाट्य एवं रंगमंच संकाय, राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय की ओर से चल रही 20 दिवसीय नाट्य एवं अभिनय कार्यशाला के अंतिम दिन बुंदेलखंड विद्रोह 1842 आज़ादी का प्रथम स्वाधीनता संग्राम नाटक का 50 कलाकारों ने मंचन किया । इस नाटक की संगीत परिकल्पना एवं निर्देशक नाट्य विभाग के एचओडी डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने किया । कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर एवं उप संचालक उद्धयांगी विभाग महेश प्रताप सिंह बुंदेला सहित कोऑर्डिनेटर दक्षिण मध्य संस्कृत केंद्र नागपुर से जीएस प्रजापति उपस्थित रहे| इस अवसर पर विश्विद्यालय के कुलपति प्रोफेसर पंडित साहित्य कुमार नाहर, कुलसचिव प्रो राकेश कुशवाह ने बच्चो को बधाई दी ।
क्या कहता है नाटक-
अंग्रेजों की नीतियों के खिलाफ उठने वाला 1842 का बुंदेलखंड विद्रोह भी इतिहास में आज भी दर्ज है| बुंदेलखंड के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाने वाले इस विद्रोह के नायक नारहट के जमींदार मधुकर शाह बुंदेला थे,जिन्होंने अंग्रेजों की कर वसूली और जनता पर किए गए अत्याचार के विरोध में विद्रोह का झंडा बुलंद किया। इसमें उनके साथ सारे बुंदेलखंड के कई जमींदार और राजा अंग्रेजों के खिलाफ एक होकर खड़े हो गए। हालांकि अंग्रेजों ने विद्रोह का दमन करते हुए 1843 में मधुकर शाह को गिरफ्तार कर सागर की जेल में फांसी दे दी गई और उनके अन्य साथियों पारीक्षत और विक्रम सिंह आदि की भी हत्या कर दी गई। गणेश जू को काला पानी की सजा दी गई। इसके बावजूद बंुदेलखंड विद्रोह के इस महान नायक ने अंतिम सांस तक अंग्रेजों की गुलामी को स्वीकार नहीं किया।