सही दिशा में मेहनत, लगन, परिश्रम का उदाहरण है आनंदवन
- शहर के लोगों ने 12885 पौधों को वृक्ष बनाकर हरा भरा मानव निर्मित आनंदवन जंगल तैयार किया
- शुभम चौधरी
ग्वालियर। ‘कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो’ इन पंक्तियों को सही दिशा में मेहनत, लगन, और परिश्रम के बलबूते चरितार्थ किया है पर्यावरण मित्र इंद्रदेव सिंह, रूप सिंह राठौर, दिनेश मिश्रा, अनिल कपूर, देवेंद्र सिंह सहित आधा दर्जन पर्यावरण मित्र समूह ने। जिन्होंने वर्तमान और भविष्य की पीढिय़ों के लिए एस.ए.एफ. ग्राउंड के ऊपर स्थित पुलिस हिल जो कभी एकदम बंजर और सूखी लाल मिट्टी की पहाड़ी हुआ करती थी। कटीली झाडिय़ों के स्थान पर विभिन्न प्रजातियों के 12885 पौधों को वृक्ष बनाकर हरा भरा मानव निर्मित उपयोगी जंगल जिसे लोग आनंद बन के नाम से जानते हैं, बना दिया है।
इंद्रदेव सिंह बताते हैं आनंदवन में नीम, पीपल, बरगद, शीशम, कंजी, गुलमोहर, अमलतास, सागौन, पाखर, कनेहर, जामुन, पाखरं, आम, कदम, जामुन आदि फल, फूल और छायादार वृक्ष लगे हुए हैं। आनंदवन में पर्यावरण मित्र समूह के आधा दर्जन से अधिक लोग प्रतिदिन श्रमदान देते हैं। जहां शहर में खाली पड़ी जमीन पर लोग अतिक्रमण कर रहे हैं वही हम पर्यावरण मित्र शहर से 5 मिनट की दूरी पर शहरवासियों को जंगल का एहसास करा रहे हैं। पुलिस हिल पर कभी गोलियों की गड़गड़ाहट से यहां परिंदे तक नहीं आते थे, आज वहां पक्षियों की चहचहाहट से दिल आनंदित हो जाता है। आनंदवन में 30 से अधिक प्रजाति के पक्षी पाए जाते हैं।
इंद्रदेव सिंह बताते हैं, लाल पत्थर के पहाड़ से आनंद बनने की दास्तां कुछ इस तरह है, कि यह बंजर पहाड़ी 2011 में किस्मत से इस तरह जुड़ी कि यह जीवन का ही नहीं, सांसों का एक हिस्सा बन गई। इस पहाड़ी को हरा करने की मुहिम सबसे पहले बीएसएफ के रूप सिंह राठौड़, डॉ विक्रांत सिंह, डॉक्टर जगताप और फिर मास्टर रूप सिंह जादौन ने अपने हाथों में ली। और कारवां बढ़ने लगा बर्ष 2013 में मैं इंद्रदेव सिंह, अनिल कपूर, दिनेश मिश्रा, अजीत भोंसले के श्रमदान और सहयोग से युद्ध स्तर पर वृक्ष लगाने का कार्य शुरू हुआ। लाल पत्थर की पहाड़ी पर पौधे लगाना एक जोखिम भरा काम था। साधन सीमित थे। और मेहनत बहुत, लेकिन जुनून इतना था कि पत्थर पर भी फूल खिलने लगे। हर बरसात के मौसम में 1 हजार से अधिक पौधे रोपण का कार्य हुआ। छात्र शुभम सिंह, अवधेश सिंह, विमल भदौरिया, जिज्ञासा जैन, मामा शिंदे सहित कई लोगों का सहयोग मिला।
तत्कालीन स्थानीय पार्षद मनोज तोमर की मदद से पानी की टंकी और पानी की पाइप लाइन बिछाई गई। जिससे पानी की समस्या दूर हुई। और आईपीएस ईशा पंत ने भी भरपूर सहयोग दिया और पहाड़ी पर एक कंट्रोल रूम बनवाया। 2018 में देवेंद्र सिंह कुशवाह ने कमाल संभाली और फिर 2020 में आनंद बन के जनक रूप सिंह राठौड़ के अस्वस्थ रहने के कारण देवेंद्र सिंह पूरे लॉकडाउन में पेड़ों को पानी देते रहे। कल का लाल पत्थर का पहाड़ पुलिस हील आज हम सब का आनंदवन है। यहां मोर, गोरिया सहित हजारों पक्षियों का आशियाना है। यहां उनके दाना पानी की भी पूर्ण व्यवस्था की जाती है। शुरुआती दौर में यहां पानी घर से लाकर पेड़ों में डालते थे। जब अधिक संख्या में पौधे रोपित हो गए तो खुद की व्यय से पानी का टैंकर मंगवा कर। इन पेड़-पौधों में को पानी उपलब्ध कराते थे। पेड़-पौधों के रोपण और रखरखाव में लाखों का खर्च हुआ। लेकिन यह खर्च आनंदवन के पर्यावरण मित्र ने ही किया। बिना सरकारी मद के। जहां पहले बदमाश और आवारा प्रवृत्ति के लोगों का जमावड़ा रहता था। वहां अब पर्यावरण मित्र पथरीली जमीन पर लगे एक-एक पेड़ की देखभाल अपने बच्चों की तरह करते हैं। इसका नतीजा है कि भीषण गर्मी सहने के बाद भी पहाड़ी पर लगे पेड़-पौधे विषम परिस्थितियों में हरे भरे हैं। सभी लोग इस बात की चिंता करते हैं कि किस पेड़ को पानी खाद की जरूरत है। किस पर दवा छिडक़ना हैं। बारिश से पहले पहाड़ी पर नए पौधों के लिए पथरीली जमीन पर गड्ढे करने हैं। मिट्टी, खाद, गोबर कैसे पहुंचना है। ताकि पौधे विकसित होकर वृक्ष का रूप ले सके। और यह कार्य सतत जारी है ग्वालियर का समूचा प्रशासन करोड़ों रुपए खर्च कर 50 वर्षों में जितने पौधों को वृक्ष नहीं बना पाया उतने से अधिक अकेले आनंदवन के पर्यावरण मित्र समूह ने आज की फोटो आधारित वृक्षारोपण जिसमें 1 पौधे लगाते हुए 100 लोग फोटो लेते हैं, के समय में लोगों को प्रेरणा देने का काम किया है। आनंदवन की टीम से जिन्होंने बिना किसी स्वार्थ के वर्तमान व भविष्य की पीढ़ी के लिए लाल पहाड़ी को हरा भरा वन बना दिया है। जो शहर का ऑक्सीजन टैंक के रूप में विकसित हुआ है। जिसमें राष्ट्रीय पक्षी मोर सहित हजारों की संख्या में पक्षी आश्रय ले रहे हैं।