पहले चरण में मथुरा से पलवल के बीच कवच प्रणाली काम काम पूरा, मंडल में दूसरे चरण में शुरु होगा काम

ग्वालियर,न.सं.। दुर्घटनाओं पर अंकुश के लिए रेलवे की ओर से दो साल पहले कवच प्रणाली की शुरुआत की गई थी। इसे ट्रैक और ट्रेनों के इंजनों में लगाया जाना था। वर्तमान में मथुरा-पलवल के बीच इस प्रणाली को लगाया गया है। जो 85 किमी में है। झांसी मंडल में दूसरे चरण में इस प्रणाली को लगाया जाएगा। ओडिशा के बालासोर में हुए रेल हादसे की जांच में सामने आया है कि यह ट्रैक कवच प्रणाली से लैस नहीं था। यदि रेलवे की ओर से सुरक्षा का यह इंतजाम किया गया होता तो हादसा नहीं होता। झांसी मंडल के 296 किलोमीटर लंबे मुख्य ट्रैक को इस प्रणाली से दूसरे चरण में लैस किया जाएगा।
स्वत: लग जाता है ट्रेन में ब्रेक
कवच (एंटी-ट्रेन टक्कर प्रणाली) लोको पायलट को उस वक्त एलर्ट करता है, जब वह किसी सिग्नल (सिग्नल पार एट डेंजर-स्पैड) को पार कर जाता है। आमतौर ट्रेनों की टक्कर की प्रमुख वजह यह ही होती है। इसके अलावा इस तकनीक में जब ट्रेन ऐसे सिग्नल से गुजरती है, जहां से गुजरने की अनुमति नहीं होती है, तो कवच के जरिए खतरे वाला सिग्नल भेजा जाता है। इसके बाद भी यदि लोको पायलट ट्रेन रोकने में विफल साबित होता है, तो फिर कवच तकनीक के जरिये ट्रेन में अपने आप ब्रेक लग जाते हैं, जिससे ट्रेन हादसे से बच जाती है।
निश्चित दूरी पर रुक जायेंगी आमने सामने आती ट्रेन
भारत में विकसित ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन (आरएफआईडी) सिस्टम को रेलवे के जीरो दुर्घटना के लक्ष्य को हासिल करने में मदद करने के लिए विकसित किया गया है। कवच को इस तरीके से तैयार किया गया है, जिससे ट्रेन खुद ऑटोमैटिक तौर पर रूक जाए, जब वह कुछ निर्धारित दूरी से उसी ट्रैक पर आती दूसरी ट्रेन को देखती है।
मंडल से ये ट्रेने होती है संचालित
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एक्सप्रेस, झांसी-कोलकाता एक्सप्रेस, झांसी-बांद्रा एक्सप्रेस, ग्वालियर बरौनी मेल, बुंदेलखंड एक्सप्रेस, ताज एक्सप्रेस, अहमादाबाद एक्सप्रेस, ग्वालियर इंटरसिटी, रतलाम इंटरसिटी, ग्वालियर-पुणे एक्सप्रेस ट्रेन का संचालन किया जाता है।
एक ही ट्रैक पर आमने-सामने से दो ट्रेनें आने पर कवच ऐसे रोकेगा हादसा
- -अगर रेड सिग्नल है तो चालक को दो किलोमीटर पहले ही इंजन में लगे डिसप्ले सिस्टम में यह दिख जाएगा।
- -इसके बावजूद यदि चालक रेड सिग्नल की अनदेखी करता है और स्पीड को बढ़ाता है तो कवच सक्रिय हो जाता है।
- -कवच तुरंत चालक को अलर्ट मैसेज भेजता है। साथ ही इंजन के ब्रेकिंग सिस्टम को सक्रिय कर देता है।
- -चालक के ब्रेक नहीं लगाने पर भी ऑटोमेटिक ब्रेक लग जाते हैं और एक सेफ डिस्टेंस पर यह ट्रेन रुक जाती है। यानी दोनों ट्रेनों के बीच आमने-सामने की टक्कर नहीं होती है।
- -यदि सिग्नल की अनदेखी कर दो ट्रेन एक ही दिशा में आगे बढ़ रही हों तो जो पीछे वाली ट्रेन होगी उसे यह सिस्टम एक सेफ डिस्टेंस पर ऑटोमैटिक ब्रेक लगाकर रोक देगा। यानी टक्कर होने से पहले ही।
घने कोहरे में भी हादसे से बचाएगा कवच
सर्दियों में ट्रेन का चालक घने कोहरे की वजह से सिग्नल की अनदेखी कर देता है। यानी उसे यह नहीं पता चल पाता है कि सिग्नल ग्रीन है या रेड।
ऐसी स्थिति में रेल कवच ऑटोमैटिक ब्रेक लगाकर स्पीड को कंट्रोल में करता है। इससे घने कोहरे में भी सेफ तरीके से ट्रेन चलाने में मदद मिलती है और हादसा नहीं होगा।
रेल कवच के ये फायदे भी
- -जब फाटकों के पास ट्रेन पहुंचेगी तो अपने आप सीटी बज जाएगी।
- -इमरजेंसी के दौरान इस तकनीक के जरिए ट्रेन से मैसेज यानी ऑटोमैटिक कंट्रोल रूम को मदद के लिए संदेश चला जाएगा।
- -इतना ही नहीं, कवच सिस्टम रोल बैक, फॉरवर्ड, रिवर्स मूवमेंट, साइड टक्कर जैसी इमरजेंसी में भी स्टेशन मास्टर और लोको ड्राइवर को तत्काल अलर्ट करने में सक्षम है।
इनका कहना है
कवच प्रणाली से ट्रैक और ट्रेनों को लैस किए जाने काम तेजी से जारी है। अभी पहले चरण में गाजियाबाद-मुगलसराय के बीच काम बहुत तेजी से किया जा रहा है। दूसरे चरण में झांसी रेल मंडल में भी सुरक्षा का यह उपाय कर लिया जाएगा। रेलवे यात्रियों की संरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध है।
हिमांशु शेखर उपाध्याय
