वादों के बाद विकास की दरकार, युवा हुआ जिला मगर प्रगति के सोपान अभी अधूरे

वादों के बाद विकास की दरकार, युवा हुआ जिला मगर प्रगति के सोपान अभी अधूरे
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जज्जी से आशा तक एक ही मांग

ग्वालियर/अशोकनगर। गुना से अलग होकर जिला बने अब सत्रह साल हो चुके हैं पर जिले का अपेक्षाकृत विकास नहीं हो सका है। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की स्थिति दयनीय है। विकास न होने के पीछे एक बड़ी वजह राजनीति भी है। विकास के नाम पर राजनीति तो खूब हुई पर विकास न के बराबर हुआ है। राजनैतिक पार्टियों के नुमांइदों ने ही विकास से जुड़े मुद्दों को ज्वलंत बनाया है लेकिन विकास के नाम पर कुछ विशेष नहीं किया। पिछले डेढ़ दशक से अधिक के समय में जिले को प्रगति के जिन सोपानों पर पहुंचने की आशा जिलेवासियों ने की थी वे पूरे नहीं हो पाए हैं। एक बार चुनावी माहौल में भाजपा ने जहां अशोकनगर को स्मार्ट सिटी बनाने से लेकर यहां कन्या महाविद्यालय, कृषि विद्यालय व अन्य विकास कार्यों के वादे किए हैं तो कांग्रेस शहर की तमाम समस्याओं को सुलझाने का दावा करती है। लेकिन जिला मुख्यालय पर शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी उपलब्ध मूलभूत सुविधाओं पर नजर दौड़ाएं तो हालात बेहद निराशाजनक और बदतर नजर आते हैं।

जनप्रतिनिधियों की नजर से दूर जिला अस्पताल की अव्यवस्थाएं:

किसी भी क्षेत्र में विकास के आयामों की बात की जाए तो सबसे पहले स्वास्थ्य का जिक्र होता है। जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से चौपट है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण यहां का जिला चिकित्सालय है। डॉक्टरों की कमी, नियमित साफ-सफाई न होना, मरीजों की देखभाल न होना व ब्लड बैंक में मनमानी। कुछ ऐसे कारण हैं कि आम आदमी यहां इलाज कराने आता है लेकिन बीमार होकर चला जाता हैै। अधिकांश जनप्रतिनिधि जिला अस्पताल का दौरा नहीं करते और करते हैं तो उनके निर्देशों का कोई असर विभागीय अधिकारियों पर होता नजर नहीं आता। यहां के ट्रामा सेंटर लोकार्पण को लेकर खूब हंगामा हुआ। एक से ज्यादा बार लोकार्पण भी हुआ और गंगाजल से धोने के बयानों को लेकर जमकर राजनैतिक रस्साकशी और तंज मारे गए पर लोकार्पण के बावजूद ट्रामा सेंटर में पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। पिपरौदा निवासी निर्भय सिंह गुर्जर जिला अस्पताल में आठ दिन से भर्ती हैं। घर पर काम करते वक्त उनके हाथ में चोट आ गई थी। उन्होंने बताया कि गैलरी में पलंग मिला हैै, समय पर सफाई नहीं होती, डॉक्टर भी राउंड के दौरान नहीं आते।

पर्याप्त नहीं है शिक्षा के केन्द्र:

स्वास्थ्य के बाद सबसे महत्वपूर्ण जरूरत शिक्षा संस्थानों की होती है। जिले में शिक्षा के पर्याप्त व जरूरी संस्थान नहीं हैं। कन्या महाविद्यालय की मांग लंबे समय से की जा रही है। कन्या महाविद्यालय न होने से युवतियों को पढ़ाई के लिए बाहर जाना पढ़ता है। इसी तरह कृषि प्रधान जिला होने के कारण यहां कृषि महाविद्यालय की दरकार है। इसी तरह करीब चालीस वर्ष पुराने पॉलीटेक्निक कॉलेज में कक्षाओं की कमी व एक भी इंजीनियरिंग कॉलेज का न होना तकनीकी शिक्षा की राह में सबसे बड़ी समस्या है। अभाविप के जिलाध्यक्षा कृष्णा यादव बताते हैं कि जनप्रतिनिधियों को सबसे पहले कॉलेज में फैकल्टी की व्यवस्था करनी चाहिए। वहीं भाराछासं के जिलाध्यक्ष सचिन त्यागी का कहना था कि नेहरू कॉलेज में बहुत से पीजी कोर्स नहीं हैं, जो हैं भी, उनमें मोटी रकम जमा कराने के बाद प्रवेश मिलता है।

उद्योग धंधे न होने से नहीं मिल रहा रोजगार:

जिले में उद्योग धंधे भी स्थापित नहीं हैं। इस कारण बड़ी संख्या में जिले के युवा बेरोजगार इंदौर भोपाल सहित देश भर के महानगरों में रहकर रोजी-रोटी जुटा रहे हैं पर इसके लिए उन्हें अपने घर परिवार से दूर रहना पड़ता है। गौशाला क्षेत्र निवासी राजीव सेन ने बताया कि वह लॉकडाउन से पहले इंदौर में एक प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करते थे। लॉकडाउन के कारण वहां से आ गए लेकिन कोई काम नहीं मिलने से मकान बनाने के लिए मजदूरी कर रहे हैं। कुछ इसी तरह का हाल मोती मोहल्ला निवासी जगदीश अहिरवार का है। स्नातक की उपाधि लिए जगदीश भी इंदौर के पास पीथमपुर में काम करते थे। लॉकडाउन में काम छूटने के बाद 6 महीने से घर बैठे हैं। अशोकनगर में कोई काम नहीं मिलता। इसी तरह का हाल अन्य युवाओं का है। जिन्हे रोजगार की तलाश में परिवार छोडक़र महानगरों में जाना पड़ा है।

अधिकांश जनप्रतिनिधियों का निवास शहर में, सुलझाएं शहर की समस्याएं:

राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव में जिला मुख्यालय में भी समस्याओं का अंबार है। रिंग-रोड़, अंडर पास, हॉकर्स जोन, पार्किंग, अतिक्रमण जैसी दर्जनों समस्याएं हैं। इनमें से कई काम अधर में लटके तो कई केवल प्रपोजल के रूप में तैयार होकर अपने पूरे होने की उम्मीद में फाइलों में कैद हैं। इन समस्याओं का समाधान न होने के पीछे अफसरशाही तो हावी है ही साथ चुने गए जनप्रतिनिधियों की ढीली कार्यप्रणाली भी काफी हद तके जिम्मेदार है। जबकि सांसद डॉ. केपी यादव, पूर्व विधायक जजपाल सिंह जज्जी एवं कांग्रेस प्रत्याशी आशा दोहरे आदि अधिकांश जनप्रतिनिधि शहर में निवासरत हैं। नागरिकों का कहना है कि जनप्रतिनिधि स्वंय जिन समस्याओं से दो-चार होते हैं। सबसे पहले उन्हे सुलझाना चाहिए।

इनका कहना है:

'हमें मौका मिला तो शहर में भयमुक्त वातावरण बनाएंगे। 1994 से पार्षद होने के बाद भी हमारे परिवार पर कोई दाग नहीं है। कृषि महाविद्यालय, कन्या महाविद्यालय, उद्योग-'धंधों को लेकर आएंगे। शहर की प्रमुख समस्याओं को प्राथमिकता में रखकर तकनीकी तौर-तरीकों से काम किया जाएगा।

- श्रीमति आशा दोहरे, कांग्रेस प्रत्याशी

'विकास कार्यों के नाम पर मैंने कई काम कराए हैं। जिनमें जलावर्धन योजना, शहर में सीसी सडक़ों का जाल, तुलसी सरोवर पार्क, पिछड़ी बस्तियों में विकास, पाईप लाईन न होने पर टैंकरों से जलापूर्ति जैसे कुछ काम गिनाए जा सकते हैं। जनता ने आशीर्वाद दिया तो तीन साल में विकास कार्यों की झड़ी लगा देंगे। यदि काम न करा पाए तो फिर कोई चुनाव ही नहीं लड़ेंगे।' - जजपाल सिंह जज्जी, भाजपा प्रत्याशी

प्रत्याशियों पर एक नजर

भाजपा- जजपाल सिंह जज्जी

  • निवास : खालसा कॉलोनी, शोकनगर
  • जन्मतिथि : 10/08/1961
  • शिक्षा : एलएलबी
  • पेशा : खेती
  • राजनैतिक अनुभव : छात्रसंघ अध्यक्ष, दो बार नपाध्यक्ष, एक बार विधायक
  • मजबूत पक्ष: स्वंय की टीम व भाजपा संगठन, युवाओं में लोकप्रियता, नपाध्यक्ष के दौरान विकास कार्य
  • कमजोर पक्ष: भितरघात का खतरा, पार्टी बदलने का आरोप, दबंगई की चर्चा

कांग्रेस: श्रीमति आशा दोहरे

  • निवास : पुराना बाजार, अशोकनगर
  • जन्मतिथि : 12/09/1979
  • शिक्षा : बीए
  • पेशा : गृहणी
  • राजनैतिक अनुभव : कांग्रेस व महिला कांग्रेस में विभिन्न पदों का दायित्व
  • मजबूत पक्ष: जातिगत समीकरण, कांग्रेस में एकजुटता, सास अनीता जैन का लंबा राजनैतिक कैरियर
  • कमजोर पक्ष: स्वंय की टीम न होना, ग्रामीण क्षेत्रों में पहचान का अभाव, शहर में भाजपा का गढ़

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