दस राष्ट्रीय उद्यानों को पछाडक़र चीतों का नया घर बना कूनो, कूनो के लिए दस्यु समस्या बनी वरदान

दस राष्ट्रीय उद्यानों को पछाडक़र चीतों का नया घर बना कूनो, कूनो के लिए दस्यु समस्या बनी वरदान
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ग्वालियर। 70 साल यानी सात दशक का लंबा इंतजार आखिरकार खत्म हो गया। देश से लुप्त हो चुके चीतों का एक बार फिर भारत की धरती पर आगमन हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर 17 सितम्बर को अफ्रीकी देश नामीबिया से लाकर पांच मादा और तीन नर चीतों को श्योपुर जिले के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में आजाद किया। दुनिया में सबसे तेज दौडऩे वाला यह जंगली जानवर भारत में सन् 1948 में आखिरी बार देखा गया था। लंबे प्रयासों के बाद कूनो राष्ट्रीय उद्यान ही चीतों का नया घर क्यों बना? चीतों का नया घर किसी और राज्य में भी हो सकता था। इस का कारण यह है कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान को लंबी रिसर्च के बाद चुना गया। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार रफ्तार के बादशाह चीतों की मेजबानी की रेस में कूनो राष्ट्रीय उद्यान ने एक-दो नहीं बल्कि दस राष्ट्रीय उद्यानों को पछाड़ा है।

शाहगढ़ लैंडस्कैप:-

राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित शाहगढ़ ग्रासलैंड। लगभग 4000 वर्ग किलोमीटर में फैला यह जंगल चीतों के लिए चुना गया था। मगर भारत-पाकिस्तान सीमा पास में होने की वजह से यह बाजी नहीं मार सका। शाहगढ़ का बड़ा हिस्सा रेगिस्तान है। साथ में सेना की मौजूदगी भी है। चीतों की वजह से खतरा पैदा हो सकता है। इसके अलावा यहां का तापमान भी बहुत मुश्किल है। दिन में पारा 50 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है तो रात में गिरकर 2.0 डिग्री सेल्सियस तक भी पहुंच जाता है। चीते अपने खाने के लिए शिकार पर निर्भर रहते हैं और यहां सिर्फ चिंकारा, जंगली लोमड़ी या पालतू पशु ही विकल्प बचते हैं। यहां जंगली कुत्ते भी चुनौती पेश करते हैं। एक बड़ी वजह यहां इंसानी आबादी भी है। इस लैंडस्कैप में 80 से ज्यादा गांव हैं और यहां तेल-गैस का खनन भी होता है। यहां 15 चीते आसानी से रह सकते हैं, लेकिन चिंकारा की कम आबादी चिंता की बात बनी रही।

डिजर्ट राष्ट्रीय उद्यान:-

राजस्थान का एक और डिजर्ट राष्ट्रीय उद्यान जो बाड़मेर और जैसलमेर जिले के बीच 3162 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यहां शिकार के लिए चिंकारा, नीलगाय और जंगली लोमड़ी मौजूद हैं। मगर रेगिस्तान की बड़ी मुश्किलें भी हैं। इसके अलावा इस राष्ट्रीय उद्यान को सही ढंग से मार्क नहीं किया गया है। साथ ही इंतजाम भी बेहद खराब हैं। गर्मियों में यहां 50 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ जाता है और बारिश भी बहुत कम होती है। मांसाहारी जानवरों को शिकार के लिए जंगली जानवरों की बजाय यहां भेड़-बकरियों पर निर्भर रहना पड़ता है। जंगल के भीतर 47 से ज्यादा गांव भी एक चिंता का विषय हैं।

नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य:-

मध्य प्रदेश की बात करें तो यहां सागर, दामोह, नरसिंहपुर जिले के बीच स्थिति नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य, क्षेत्रफल 1197.04 वर्ग किलोमीटर, ऊंची-नीची पहाडिय़ां, बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान तक जुड़ी सीमा। यहां बारिश भी 1552 तक होती है और तापमान भी मुश्किलों भरा नहीं है। शिकार के लिए नीलगाय, चीतल, सांभर, चिंकारा, हिरण और जंगली सूअर मौजूद हैं। चुनौती भी कम है क्योंकि यहां बाघ और तेंदुओं की संख्या भी बहुत ज्यादा नहीं है। यहां 26 से 52 चीते रह सकते हैं। भविष्य में इनकी संख्या 71 तक बढ़ सकती है। मगर बेहतर प्रबंधन की जरूरत है। यहां गर्मियों में पानी की कमी एक बड़ी समस्या है। मगर इससे भी बड़ी दिक्कत थी यहां से गुजरने वाला नेशनल हाईवे-12। यही नहीं इसके भीतर से दो और मुख्य मार्ग गुजरते हैं। यहां इंसानी आबादी भी बहुत है। 74 से ज्यादा गांव हैं और प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में 423 घर हैं।

कूनो राष्ट्रीय उद्यान:-

मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में कूनो नदी के किनारे कूनो राष्ट्रीय उद्यान। इसके एक तरफ पन्ना टाइगर रिजर्व तो दूसरी ओर रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान है। एक तरफ चंबल नदी बहती हुई। यहां 6800 वर्ग किलोमीटर के हैबिटेट पैच में से 3200 वर्ग किलोमीटर सिर्फ चीतों के लिए मुफीद है। बारिश भी बहुत बड़ी समस्या नहीं है। यहां शिकार के लिए नीलगाय, चीतल, बारहसिंगा, जंगली सूअर, सांभर बड़ी संख्या में मौजूद हैं। मगर चीतों को बसाने की दौड़ में जिस एक वजह ने कूनो राष्ट्रीय उद्यान को चैंपियन बनाया। वो है कम इंसानी आबादी। यहां के जंगलों में इंसानों की आबादी बहुत ही कम है और वे बाहर जाकर बसे हुए हैं। इसकी प्रमुख वजह हैं डकैत। डकैतों के डर से ग्रामीण जंगल से बाहर जाकर बस गए हैं। बस इसी वजह ने चीतों को नया घर दे दिया। 346 वर्ग किलोमीटर में कोई इंसानी आबादी नहीं है। इसके अलावा राजनीतिक रस्साकशी की वजह से एशियाई शेरों को यहां लाने की उम्मीद भी बहुत कम है। जिससे संघर्ष की संभावना भी कम है। इसे अलावा यहां का ग्रासलैंड चिंकारा की आबादी बढ़ाने के लिए अनुकूल है। ऐसे में शिकार की कमी नहीं होगी। यहां अभी 27 चीते रह सकते हैं और भविष्य में इनकी संख्या 100 तक बढ़ सकती है।

ये राष्ट्रीय उद्यान भी पिछड़े

अफ्रीकी चीतों के नए घर के लिए डुबरी राष्ट्रीय उद्यान, संजय राष्ट्रीय उद्यान, गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान, बन्नी ग्रासलैंड, बागदारा कैमूर लैंडस्कैप और कैमूर वन्यजीव अभयारण्य भी दौड़ में थे। मगर चीतों के लिए शिकार की कमी और अन्य वजहों से ये भी पिछड़ते चले गए और कूनो राष्ट्रीय उद्यान अफ्रीकी चीतों का नया घर बन गया।

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