ग्वालियर पूर्व विधानसभा में भाजपा ने शुरू की तैयारी
ग्वालियर। प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप-चुनाव को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में लगातार मंथन और रणनीतियां बन रही हैं। इनमें से ग्वालियर पूर्व में भाजपा ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं और संभावित प्रत्याशी जनता के बीच पहुंच रहे हैं। वहीं कांग्रेस ने भी भाजपा से तोड़कर डॉ. सतीश सिकरवार को न सिर्फ अपने खेमे में शामिल किया बल्कि गोयल के खिलाफ टिकट भी दे दिया। जिससे अब इन दोनों प्रत्याशियों दूसरी बार मुकाबला देखने को मिलेगा। अंतर सिर्फ इतना होगा कि दोनों ही बदले हुए दलों से आमने-सामने होंगे। ऐसे में जनता के सामने यह सवाल होंगे कि वह किस पर भरोसा करे। क्योंकि दोनों ही प्रत्याशी अपना दल बदलकर चुनाव लड़ रहे हैं। जिससे यह चुनाव बेहद रोचक होने वाला है।
उल्लेखनीय है कि नवंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी मुन्नालाल गोयल विजयी हुए थे। उन्होंने भाजपा के डॉ. सतीश सिंह सिकरवार को पराजित किया था। किंतु 15 महीने बाद ही पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ श्री गोयल विधायक पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस छोड़ भाजपा में आ गए। ऐसे में सीट खाली होने पर यहां उप-चुनाव होना हैं।
यह रहा था परिणाम
इस विधानसभा में पिछले चुनाव में 3.05 लाख मतदाता थे, जो बढ़कर अब 3.10 लाख हैं। नवंबर 2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल को 90,153 और भाजपा के डॉ. सतीश सिंह सिकरवार को 72,302 मत मिले थे। इस तरह हार जीत का फासला 17,851 मतों का रहा। इसके पूर्व वर्ष 2013 के चुनाव में भाजपा की श्रीमती माया सिंह ने कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल को 1100 मतों और वर्ष 2008 के चुनाव में भाजपा के अनूप मिश्रा ने कांग्रेस के ही मुन्नालाल गोयल को 1500 मतों से पराजित किया था। श्री गोयल के साथ लगातार दो चुनाव हारने पर जनता की हमदर्दी रही, जिसकी बदौलत वे तीसरी बार चुनाव जीत गए। वर्ष 2013 से 2018 तक इस क्षेत्र से विधायक चुनने के बाद मंत्री रहीं श्रीमती माया सिंह ने भी यहां विकास कार्य कराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।
लोकसभा चुनाव में स्थिति
मई 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में ग्वालियर पूर्व विधानसभा से भाजपा के विवेक नारायण शेजवलकर को एक लाख, एक हजार तीन और कांग्रेस के अशोक सिंह को इकसठ हजार सौ मत मिले। श्री सिंह इस विधानसभा से लगभग 40 हजार मतों से पराजित हुए।
यह है जातिगत समीकरण
क्षेत्र में दलित 80-90 हजार, अल्पसंख्यक 15 हजार, पिछड़ा वर्ग लगभग एक लाख। जिसमें यादव 20 हजार, गुर्जर 15 हजार, कुशवाहा 15 हजार, बघेल 12 हजार, किरार 6 हजार। सामान्य लगभग सवा लाख, जिसमें क्षत्रिय 30 हजार, ब्राह्मण 35 हजार, वैश्य 25 हजार।
भौगोलिक स्थिति
ग्वालियर पूर्व में नगर निगम के 19 वार्ड हैं। जिसमें से छह आरक्षित हैं। लश्कर क्षेत्र में इंदरगंज, दाल बाजार, लोहिया बाजार, ललितपुर कॉलोनी, आमखो, नाका चंद्रवदनी, झांसी रोड, विक्की फैक्ट्री, हरिशंकरपुरम, बसंत विहार, चेतकपुरी, सिटी सेंटर, महलगांव, सिरौल, ओहदपुर, मुरार, हुरावली, थाटीपुर, दीनदयाल नगर, पिंटो पार्क, गोला का मंदिर आदि आते हैं। इन क्षेत्रों में कर्मचारी और व्यापारियों की बाहुलता है।
मुन्ना के सामने यह हो सकती हैं चुनौतियां
मुन्नालाल गोयल सपा में रहते कई बार चुनाव लड़े, किंतु पार्षद से बढ़कर कोई चुनाव नहीं जीत पाए थे। इसके बाद वे वर्ष 2008 में कांग्रेस में आ गए। यहां से दो बार टिकट मिलने पर पराजित हुए और पिछला चुनाव जीतने में कामयाब रहे। किंतु विधायक रहते जिस तरह से पाला बदलकर वे भाजपा में आए हैं, उसे लेकर उन पर बिकाऊ के आरोप लग रहे हैं, जो उनके लिए मुश्किल भी पैदा कर सकता है। यद्यपि शासन के जरिए उन्होंने क्षेत्रों में करोड़ों के नए कार्य स्वीकृत कराए हैं, जिनमें मुरार नदी, गरीबों को पट्टे आदि प्रमुख हैं। वहीं सिंधिया का प्रभाव और भाजपा वोट बैंक उनके पक्ष में है।
सतीश के सामने क्या हैं चुनौतियां
जनता के सुख-दुख में साथ रहने वाले डॉ. सिकरवार ने इस बार जिस तरह से पाला बदलकर कांग्रेस से टिकट लिया है इससे भाजपा का वोट उन्हें नहीं मिलेगा। इसके साथ ही दल बदलने के कारण को भी पूरी तरह स्पष्ट करना होगा। दूसरी तरफ कांग्रेस संगठन के कई नेता इस क्षेत्र से टिकट के दावेदार थे, जिनका साथ उन्हें प्राप्त करने में मुश्किलें आएंगी। वहीं उन्हें इस बार दलित वोट पर भरोसा है जो उन्हें भाजपा में रहते नहीं मिला था।
जनता और संगठन साथ: गोयल
पूर्व विधायक मुन्नालाल गोयल कहते हैं कि पिछले छह माह से भाजपा संगठन के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के लगातार संपर्क में हैं और कार्यक्रम भी कर रहे हैं। इसी के साथ वह जनता के बीच पांच साल तक रहते हैं इसलिए जनता का उन्हेंं भरपूर समर्थन प्राप्त है। उनका कहना है कि जिस वोटबैंक के लिए डॉ. सतीश सिकरवार कांग्रेस में गए हैं उस कांग्रेस का अब कोई वोट बैंक नहीं है। वह दलित, गरीब, पिछड़ा, सवर्ण, मुस्लिम समाज के दिन-रात काम आते हैं, वहीं उनके लिए सब कुछ हैं।