कांग्रेस में उठापटक : विधानसभा में पोलिंग हारे पदाधिकारीयों को हटाने के बजाय बना दिया प्रभारी
ग्वालियर। शहर जिला कांग्रेस की साधारण सभा की बैठक में यह घोषणा की गई थी कि विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं एवं पदाधिकारियों के मतदान केंद्रों पर पराजय मिली है उन्हें पद से हटा दिया जाएगा। यह बात सिर्फ भाषणों तक ही सीमित रह गई और आज तक किसी भी पदाधिकारी को पद से नहीं हटाया गया है। इतना ही नहीं 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में सभी 15 ब्लॉकों में झंडा वंदन कार्यक्रम होगा जिसमें पोलिंग हारने वाले पदाधिकारियों को प्रभारी बनाकर उपकृत किया जा रहा है। जिससे कांग्रेस में मखौल जैसी स्थिति बन गई है।
उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने शहर में दो सीटें गंवा दी जबकि एक पर ही विजयी मिली। जबकि पिछली बार वह दो विधानसभा में विजयी रहे थे। चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस साधारण सभा की बैठक में शहर कांग्रेस अध्यक्ष ने स्पष्ट कहा था कि जिन पदाधिकारी के मतदान केदो पर कांग्रेस को पराजय मिली है उन्हें पद से हटा दिया जाएगा लेकिन इसके बाद उनकी इस बात पर कोई कार्यवाही नहीं हुई और मामला ठंडा पड़ गया जबकि कुछ कांग्रेसी नेताओं ने ऐसे नाम निकालकर रख लिए थे जिनके मतदान केंद्रों पर पराजय मिली थी। यानीकि कांग्रेस में जो कहा गया वह सिर्फ दिखावा था। लेकिन गुरुवार को कांग्रेस कार्यालय से गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में सभी 15 ब्लॉकों में झंडा वंदन के लिए प्रभारियों के नाम घोषित किए गए हैं। मजेदार बात यह है कि इसमें अधिकांश ऐसे नाम हैं जिनके मतदान केंद्रों पर कांग्रेस पराजित हुई है। यानीकि उन्हें पद से हटाने की बजाय उपकृत करने का काम किया जा रहा है,जो निष्ठावान कार्यकर्ताओं के लिए झटके से कम नहीं है।
यह बनाए प्रभारी
ग्वालियर विधानसभा से सौरभ जैन, जीवाजी राव मंडोले, देशराज भार्गव, अरविंद चौहान, परमानंद रत्नागर, ग्वालियर पूर्व में रामनरेश परमार, तरुण यादव, ओमप्रकाश दुबे, मुकेश कुशवाहा, अनिल शर्मा, ग्वालियर दक्षिण से कुलदीप कौरव, सोनू राजावत, जेएच जाफरी, राजेश कुशवाहा और बेताल सिंह गुर्जर।
नोटिस मामला भी ठंडे बस्ते में
पिछले दिनों लोकसभा समन्वयक विपिन वानखेड़े की मौजूदगी में आयोजित बैठक में नारेबाजी करने वाले छह लोगों को अनुशासनहीनता के लिए नोटिस दिए गए थे। इसके बाद जिन्हें नोटिस मिले उनकी ओर से जवाब के लिफाफे कांग्रेस कार्यालय पहुंच गए हैं लेकिन फिलहाल मामले में को जानबूझकर ठंडे बस्ते में डाला जा रहा है। क्योंकि नारेबाजी करने वालों के खिलाफ ऐसे कोई ठोस सबूत नहीं है जिसके आधार पर उनके खिलाफ अनुशासनहीनता की कार्यवाही की जा सके। ऐसा सिर्फ दवाब की राजनीति और सुनील शर्मा के पर कतरने के लिए किया गया था।