सूर्य देव को अर्घ्य देकर छठ व्रतियों ने की प्रार्थना
ग्वालियर। दिवाली के बाद कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा का त्यौहार भगवान सूर्य की उपासना एवं आरोग्यता प्रदान करने का व्रत है। छठ का व्रत व्रतियों के लिए किसी तपस्या से कम नहीं है। पांच दिनों तक होने वाले विशेष अनुष्ठान में पवित्रता का खास ख्याल रखा जाता है। छठ के दिन भगवान सूर्यदेव की अराधना की जाती है. छठ का त्योहार पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में मनाया जाता है. दीपावली के अगले दिन से ही इस त्यौहार की समस्त तैयारियां शुरू हो जाती हैं
इस पर्व को लोग धन, धान्य व सुख समृद्धि की कामना को लेकर करते हैं, वहीं छठ का व्रत आरोग्यता भी प्रदान करता है। ऐसी मान्यता है कि छठ के व्रतियों में सूर्य की वह ऊर्जा विद्यमान हो जाती है कि व्रती पूरे साल बीमारियों से दूर रहता है। चर्म रोगों में छठ का व्रत विशेष लाभकारी माना जाता है। शहर में चहुंओर छठ पूजा की धूम मची हुई है। 30 अक्टूबर की शाम व्रती डूबते हुए सूर्य को पहला अर्घ्य देंगे। इसमें शताब्दीपुरम स्थित दंदरौआ धाम में स्थित घाट पर पवित्र स्नान कर खीर का प्रसाद ग्रहण किया। इसे खरना कहा जाता है।
व्रत की कुछ खास बातें :-
- - इस व्रत को करने में 36 घंटे का उपवास रखना पड़ता है
- -इस व्रत में परिवार को पांच दिन पहले ही लहसुन-प्याज का सेवन बंद करना पड़ता हैं।एवं घरों में छठ पूजा के गीत गए जाते हैं
- - डूबते व उगते हुए सूर्य देव को नदी के जल में खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है।
- - सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद इस पर्व का समापन होता है।
छठ पूजा में गन्ना व अन्य मौसमी फलों की दुकानें सज जाती हैं। छठ पूजा के प्रसाद में आटा, गुड़ व घी से बना ठेकुआ विशेष महत्व होता है। सूप व लकड़ी की डलियों में ठेकुआ के साथ मौसमी फल व दीप सजाए जाते हैं। इसके साथ ही घाट पर गन्ने का मंडल सजाया जाता है।