चुनावी मुकाबले से पहले पस्त होती कांग्रेस

चुनावी मुकाबले से पहले पस्त होती कांग्रेस
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ग्वालियर। अप्रैल-मई में प्रस्तावित अठारहवीं लोकसभा के चुनाव की सरगर्मियां दिनों -दिन गति पकड़ रही हैं। भाजपा-कांग्रेस की अपनी-अपनी तैयारियां चल रही हैं। भाजपा जहां अपनी रणनीति से काम करते हुए आगे बढ़ रही है। वहीं विधानसभा चुनाव में मिली पराजय से हताश कांग्रेस चुनावी युद्ध से पहले ही पस्त होती जा रही है। अपने भविष्य को लेकर चिंतित कांग्रेसी लगातार पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थाम रहे हैं। आने वाले दिनों में अनेक कांग्रेसी और दलबदल करेंगे। नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में प्रदेश के साथ ग्वालियर-चंबल संभाग में भी कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा। अंचल की 34 सीटों में से कांग्रेस ने 2018 में 26 सीटें जीती थीं। लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 34 में से 16 सीटें ही मिलीं और भाजपा 18 सीटें जीत गई थी। मप्र में मिली करारी हार से कांग्रेस कार्यकर्ता हताशा में डूब गए।

हालांकि कांग्रेस आलाकमान ने हार के बाद प्रदेश नेतृत्व में परिवर्तन कर विधानसभा चुनाव हारे जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी और नए सिरे से हताश कार्यकर्ताओं में जोश फूंकने की जिम्मेदारी उन्हें मिली। पटवारी ने युवा नेताओं नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार, उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे , पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह, विधायक पंकज उपाध्याय को साथ लेकर ग्वालियर- चंबल संभाग के अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में दौरा कर बैठकों और सम्मेलनों के माध्यम से कार्यकर्ताओं को हताशा से उबारने का प्रयास किया। लेकिन उनके प्रयास अंचल में सफल होते नजर नहीं आ रहे हैं।

दरअसल ग्वालियर -चंबल संभाग में कांग्रेस को ज्योतिरादित्य सिंधिया का साथ संजीवनी दिए हुआ था। श्री सिंधिया के कांग्रेस छोड़ भाजपा में आने के बाद अंचल में कांग्रेस कमजोर हुई। विधानसभा चुनाव के समय अंचल में श्री सिंधिया के सयर्थक कई नेताओं ने उनका साथ छोड़ कांग्रेस में फिर वापसी की। कांग्रेस नेताओं की सोच थी कि वह अंचल में सिंधिया को घेर भाजपा की बढ़त रोक लेंगे। लेकिन विधानसभा चुनाव के परिणामों ने कांग्रेस नेताओं का मुगलता तोड़ दिया और भाजपा को अंचल में 34 में से 18 सीटें मिलीं। लोकसभा चुनाव को लेकर फिर भाजपा -कांग्रेस के बीच घमासान होना है। भाजपा अपनी रणनीति के हिसाब से आगे बढ़ रही है। गांव चलो अभियान से लेकर बूथ स्तर तक कार्यक्रम कर भाजपा कांग्रेस से विधानसभा चुनाव की तरह फिर आगे बढ़ती नजर आ रही है। पार्टी के चुनाव अभियान की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी झाबुआ से विगत दिनों कर चुके हैं।

लोकसभा प्रभारियों की नियुक्तियों से लेकर विधानसभा स्तर तक उसके संयोजक मोर्चा संभाल चुके हैं। वहीं चुनाव अभियान संचालित करने लोकसभास्तर पर चुनाव कार्यलयों के शुभारंभ का सिलसिला भी शुरू कर दिया है। दूसरी ओर कांग्रेस भले ही फरवरी के अंत तक और मार्च के प्रथम सप्ताह तक उम्मीदवारों के नामों का ऐलान करने का दावा कर रही हो, लेकिन उसकी तैयारियां अभी बैठकों तक सीमित हैं। पटवारी अभी तक अपनी टीम बनाने में नाकाम रहे हैं और पूर्व अध्यक्ष कमलनाथ की टीम से ही काम चलाना करना पड़ रहा है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्रियों कमलनाथ व दिग्विजय सिंह का दबाव भी उन्हें झेलना पड़ रहा है। कांग्रेस जहां अपनी उलझनों में उलझी है तो भाजपा ने मप्र को कांग्रेस मुक्त बनाने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं।

भाजपा दे रही लगातार झटके--

भाजपा अपनी चुनाव रणनीति पर काम करते हुए आगे बढ़ रही है। समूचे प्रदेश में भाजपा, कांग्रेस के नेताओं का दलबदल करा भाजपा में शामिल करा कर कांग्रेस को रोज झटके दे रही है। ग्वालियर -चंबल संभाग में भी यह अभियान चल रहा है। केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समक्ष आए दिन कांग्रेस नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं। विधानसभा चुनाव के समय श्री सिंधिया का साथ छोड़ गए नेता फिर उनके साथ जुड़ रहे हैं। मुरैना के पूर्व विधायक राकेश मावई जहां समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हुए। वहीं गुना में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खास सुमेर सिंह गढा़ ने भाजपा का दामन थाम कांग्रेस को बड़ा झटका दिया। शिवपुरी के अनेक नेता भी सिंधिया के समक्ष भाजपा में शामिल हुए तो गुना सांसद केपी सिंह यादव के भाई युवा कांग्रेस के नेता अजयपाल सिंह यादव अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। वहीं ग्वालियर में सिंधिया के समक्ष 5 पार्षदों ने भाजपा का दामन थाम लिया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले दिनों में और कांग्रेसजन , भाजपा का दामन थामेंगे। अनेक नेता अभी संपर्क बनाए हुए हैं। राजनीतिक गलियारें में चल रहीं चर्चाओं पर गौर करें तो विधानसभा चुनाव में मिली पराजय से हताश कांग्रेसी चुनावी युध्द से पहले ही पस्त होते दिख रहे हैं। राम मंदिर निर्माण की देशव्यापी लहर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गांरटी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति का हताश -निराश कांग्रेस कितना सामना कर पाएगी ,यह चुनाव परिणाम में साफ हो जाएगा।

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