राजनीति गतिविधियों के साथ कोरोना की रफ्तार भी बढ़ी

राजनीति गतिविधियों के साथ कोरोना की रफ्तार भी बढ़ी
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सोशल मीडिया पर दो दलों को ठहराया जा रहा जिम्मेदार

ग्वालियर, विशेष प्रतिनिधि। देश-दुनिया के साथ ही प्रदेश और ग्वालियर-चंबल अंचल में चीनी संक्रमण कोरोना वायरस लगातार बढ़ता ही जा रहा है। केन्द्र और राज्य सरकारों ने जब तक लॉकडाउन लगाया तब तक इस पर अंकुश लगा रहा। जैसे ही आमजन के आने-जाने का सिलसिला शुरू हुआ तो यह अंकुश धरा रह गया। फिर भी उस समय इस गति से संक्रमण नहीं फैला जिस गति से अगस्त और सितम्बर में दिखाई दे रहा है। इसके पीछे कहीं न कहीं सत्ता की कुर्सी के चलते राजनीतिक गतिविधियों को जिम्मेदार माना जा रहा है।

ग्वालियर में कोरोना का पहला मरीज 24 मार्च को आया था तब जिला प्रशासन इतना सतर्क था कि उसने लॉकडाउन से भी बढ़कर कफ्र्यू लागू कर दिया। यह सिलसिला लगभग डेढ़-दो माह तक चला। इस दौरान नेताओं और व्यापारियों द्वारा संस्थान खुलवाने के लिए भारी दबाव बनाया गया। फिर भी प्रशासन ने धीरे-धीरे ही बाजार खोले जाने की अनुमति दी। इस दौरान एक ओर तो प्रशासन द्वारा शादी, विवाह, मृत्यु सहित अन्य बड़े आयोजनों पर रोक लगाते हुए इसकी संख्या बीस कर रखी थी। किंतु सत्ताधारी भाजपा के दबाव में 22 अगस्त से ग्वालियर-चंबल अंचल के महासदस्यता अभियान ने इसे तार-तार कर दिया। भाजपा की देखा-देखी सदस्यता अभियान का विरोध करने वाली कांग्रेस भी कहां पीछे रहने वाली थी। पहले तो उसने 22 अगस्त को ही भारी भीड़ के साथ प्रदर्शन किया। इसके बाद कांग्रेस द्वारा अगस्त के आखिरी सप्ताह में मेला के कन्वेंशन सेंटर में भीड़ जुटाकर सदस्यता अभियान चलाने की कोशिश की गई। इसके बाद राजनीतिक आयोजनों की होड़ लगने लगी। दिल्ली और भोपाल से जैसे ही बड़े नेता ग्वालियर आते तो उनकी अगवानी में कार्यकर्ता भीड़ के रूप में पहुंच जाते। यह सब मध्यप्रदेश विशेषकर ग्वालियर-चंबल संभाग में होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव के कारण है। क्योंकि कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के गिरने के बाद भाजपा अभी बहुमत से दूर है और उसे हरहाल में उप-चुनाव में अधिकांश सीटें जीतने पर ही सत्ता की चाबी बरकरार रहेगी। इस चाबी को छीनने के लिए कमलनाथ भी घायल शिकारी की तरह मुख्यमंत्री की कुर्सी की ओर आस लगाए हैं। यद्यपि वे अभी तक ग्वालियर-चंबल संभाग में नहीं आए हैं किंतु जिस तरह से इस क्षेत्र में भाजपा के बड़े नेताओं की गतिविधियां लगातार बढ़ रहीं हैं उसे देखते हुए पहले तो कांग्रेस के द्वितीय श्रेणी के नेता ग्वालियर में डेरा डाले हुए हैं। उसी कड़ी में अब 18 एवं 19 सितम्बर को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी ताकत दिखाने ग्वालियर आ रहे हैं। इसके लिए संभाग भर से बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को जुटाया जा रहा है। निश्चित ही इससे भीड़ बढ़ेगी तो कोरोना की गाइड-लाइन धरी रह जाएगी।

मंचों से गायब कोरोना

भाजपा और कांग्रेस की इस होड़ के आगे कोरोना की किसी मंच से बात नहीं की जा रही। अभी तक दोनों ही दलों द्वारा कई तरह के बड़े आयोजन किए गए हैं। उप-चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशी और दावेदार मतदाताओं को रिझा रहे हैं लेकिन इस बात की किसी को भी चिंता नहीं है कि ग्वालियर-चंबल संभाग में कोरोना संक्रमितों की संख्या 10 हजार की ओर पहुंच रही है। यह लोग अभी तक किसी भी कोरोना अस्पताल, सेंटर व घरों में कैद मरीजों की कुशलक्षेम पूछने नहीं जा रहे। कोई भी बड़ा नेता ऐसा मानकर चल रहा है जैसे कोरोना का प्रकोप पूरी तरह थम गया हो। जबकि सरकारी अस्पताल और कोविड सेंटरों पर अब व्यवस्थाओं और संक्रमितों की मृत्यु दर भी लगातार बढ़ रही है। वहीं निजी चिकित्सालयों द्वारा मरीजों से जमकर लूट की जा रही है। चूंकि राजनेता ही कोरोना पर चुप्पी साधे हुए हैं इसलिए प्रशासन भी अपने हिसाब से काम चला रहा है और आमजन को भगवान भरोसे छोड़ दिया है।

सोशल मीडिया पर छाया मुद्दा

पूर्व मंत्री एवं आईटीएम के पूर्व कुलाधिपति रमाशंकर सिंह ने अपनी फेसबुक वॉल पर तीन विकल्प 'तबलीगी जमात, भाजपा व कांग्रेसÓ देते हुए पूछा है कि ग्वालियर-चंबल संभाग में कोरोना फैलाने के लिए कौन जिम्मेदार है? इसके जवाब में तमाम लोगों ने भाजपा और कांग्रेस को बराबर जिम्मेदार ठहराया है। अमि प्रबल लिखती हैं कि अगर भाजपा शुरू नहीं करती तो प्रशासन कभी कुछ भी नहीं होने देता। दीपक गोयल ने इसे नेताओं को अपनी कुर्सी बचाने की जद्दोजहद बताया है। उनकी नजर में जनता कल मर रही है तो आज ही मर जाए, इनको कोई फर्क नहीं पड़ता।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

अपने समय में कई बड़े और छोटे चुनाव सफलतापूर्वक कराने वाले पूर्व वरिष्ठ आईएएस अखिलेन्दु अरजरिया इसके लिए सीधे-सीधे राजनेताओं को निशाना न बनाते हुए कहते हैं कि समाज के नेता इसके लिए जिम्मेदार हैं। क्योंकि नेतृत्व करने वालों का आचरण ही ऐसा होगा तो जनता को कौन परवाह करेगा। वे कहते हैं कि उप-चुनाव अभी नहीं होना चाहिए, इसे कम से कम दो माह आगे खिसका देना चाहिए। क्योंकि ऐसे में यदि कोई प्रत्याशी संक्रमित हो जाता है तो वह प्रचार की बजाय क्वारेंटाइन में चला जाएगा। वैसे भी मौजूदा हालात की बात की जाए तो बड़े लोग तो सुविधायुक्त हैं, वे अपने इलाज के लिए दिल्ली, भोपाल और अन्य बड़े शहर जा रहे हैं। ऐसे में आमजन सुविधायुक्त इलाज कहां और कैसे कराए यह नेतृत्व करने वालों को सोचना चाहिए। यह सबकुछ दुर्भाग्यपूर्ण है।


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