ग्वालियर में फुटओवर ब्रिज पर करोड़ो उड़ाए, किसी काम नहीं आए

ग्वालियर में फुटओवर ब्रिज पर करोड़ो उड़ाए, किसी काम नहीं आए
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24 घंटे में 10 लोग भी नहीं करते उपयोग

ग्वालियर। शहर के तीन मुख्य मार्गों पर बने फुट ओवर ब्रिज लोहे के विशाल ढांचे बनकर रह गए हैं । चौबीस घंटे में मात्र दस लोग भी तीनों पुलों का उपयोग नहीं करते हैं। लोग आज भी यातायात के नियमों की धािज्जयां उड़ाते हुए सडक़ पार करते हुए निकलते हैं। जिस कारण यातायात तो बाधित होता है राहगीरों की जान का भी खतरा बना रहता है। करोड़ों की लागत से बने हुए यह फुटओवर ब्रिज जस के तस खड़े सिर्फ शोपीस बनकर रह गए हैं। हां रात के समय शराबी और आसामाजिक तत्वों के लिए मौजमस्ती करने के लिए सुरक्षित ठिकाने बन जाते हैं।

लगभग छह साल पहले गोला का मंदिर,आकाशवाणी तिराहे और लक्ष्मीबाई कॉलोनी के पास फुट ओवरब्रिज बनाए गए थे। पुलों को बनाने का मुख्य उद्धेश्य लोग दौड़ लगाकर सडक़ पार करते समय जान जोखिम में डालने बचाना था ताकि लोग फुट ओवरब्रिज का इस्तेमाल करते हुए सुरक्षित रहें। जिस दिन से यह पुल बने हैं उसी हालत में आज मात्र ढांचा बनकर खड़े हुए हैं। आज हालत यह है कि चौबीस घंटे में तीनों पुलों से दस लोग भी चढक़र नहीं गुजरते हैं। स्वदेश ने जब पुलों की पड़ताल की तो चौकाने वाले दृश्य सामने आए। राहगीरों की सुविधा और सडक़ दुर्घटना से बचने के लिए बनाए गए यह फुट ओवरब्रिज बदहाली का शिकार ज्यादा है यहां पर बने कमरों में आसामाजिक तत्व मौज मस्ती करते हैं। जबकि शासन ने करोड़ों रुपए खर्च इनको शहर की जनता के लिए बनाया था। दिव्यांगों, वृद्धजानों व शारीरिक रूप से कमजोर लोगों के लिए लगाई गई लिफ्ट भीं भगवान भरोसे हैं। हैरानी की बात यह है कि किसी का भी इस ओर ध्यान ही नहीं जाता है कि सुविधा के लिए बनाए गए फुट ओवरब्रिज का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा रहा है।

फुट ओवर ब्रिज की अनुपयोगिता के पीछे का कारण अगर समझने का प्रयास किया जाए तो जनता एवं प्रशासन दोनों ही कटघरे में खड़े नजर आते हैं। ऐसे में लोगों को एवं प्रशासन को मिलकर इस समस्या का समाधान खोजना चाहिए।

आकाशवाणी तिराहा

इस फुट ओवरब्रिज का इस्तेमाल लोग भले ही नहीं कर रहे लेकिन यहां पर अवैध कब्जा करने वालों की चांदी है। पुल की सीढिय़ों के नीचे बने कमरे में रहने और मौजमस्ती करने के पूरे इंतजाम हैं। पुल के बारे में जानकारी लेने पर बदमाशी करने वाले जमा हो जाते हैं। इससे साफ समझा जा सकता है कि पुल किस काम के लिए उपयोग किया जा रहा है। सीढिय़ों के नीचे ही ठेले लगे हैं।

लक्ष्मीबाई कॉलानी गेट

यह पुल की हालत सबसे खराब इसलिए कह सकते हैं कि कोचिंग पढऩे वाले छात्र छात्राओं के अलावा कॉलोनी के लोग इस पुल का इस्तेमाल सडक़ पार करन के लिए कर सकते हैं लेकिन लोग सडक़ भागकर पार करते हैं और पुल ढांचे के रुप में खड़ा जो अब जंग खाने लगा है। पुल की सीढिय़ां गंदगी से पटी पड़ी हुई है।

गोला का मंदिर

हर दिन हजारों आदमी इस चौराहे से गुजरते हैं लेकिन पुल का इस्तेमाल पांच लोग भी नहीं करते हैं। सुबह से लेकर रात नौ बजे तक गोला का मंदिर चौराहा पर वाहनों का काफी दबाव रहता है बावजूद इसके पैदल राहगीर पुल का इस्तेमाल नहीं करते हैं और वाहनों के बीच से होकर गुजरते हैं। लिफ्ट भगवान भरोसे हैं और रात में पुल आसामाजिक तत्वों का अड्डा बन जाता है।

विज्ञापन का जरिया बने फुट ओवरब्रिज

गोला का मंदिर और आकाशवाणी फुट ओवरब्रिज पर पाइनर कंपनी ने अपना नाम लिख दिया है और विज्ञापन बोर्ड भी लगा दिए हैं। दोनों पुलों को इस्तेमाल मात्र विज्ञापन के लिए किया जा रहा है कहे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

पीपीपी योजना के तहत दो करोड़ में बने दो ब्रिज

-पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) योजना के तहत आकाशवाणी चौराहे और गोले का मंदिर पर पैदल पुल (फुट ओवर ब्रिज) का निर्माण कराया गया है। जिसका निर्माण कार्य पायोनियर एडवरटाइजमेंट कंपनी ने लगभग 2 करोड़़ में किया था।

-आकाशवाणी चौराहे पर यह पैदल पुल आमजन की सुविधा के लिए बनवाया गया था, 45.5 मीटर चौड़ाई वाले इस पुल में दो लिफ्ट लगवाई गईं थी, जिनका रात 11 बजे तक संचालन होना है। इन लिफ्ट में एक साथ 8 लोगों को सवार होकर पुल पर उतरने और चढऩे की सुविधा की व्यवस्था की गई थी, लेकिन लिफ्ट बंद है।

-लक्ष्मीबाई कॉलानी गेट पर नगर निगम द्वारा 40 लाख में फुटओवर ब्रिज का निर्माण किया गया था।

72 हजार रूपए जमा करती है कंपनी

निगम ने जिस कंपनी को काम दिया है, वह 25 साल तक दोनों पुलों की लिफ्ट और मेंटेनेंस का काम करना था। साथ ही विज्ञापन की 72 हजार रूपए सालाना राशि कंपनी निगम के खाते में जमा करती है।

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