दासगणु महाराज ने की थी 80 से अधिक कीर्तनों की रचना
ग्वालियर/स्वदेश वेब डेस्क। रस प्रधान भावपूर्ण है। दासगणु महाराज द्वारा स्वरचित कीर्तन के माध्यम से संतों के आदर्श एवं उनके चरित्र समाज के सामने लाए गए हैं। यह कीर्तन पद्धति श्री दासगणु परम्परा के नाम से प्रचलित है। यह बात नांदेड़ महाराष्ट्र से आए कीर्तनकार विक्रम नांदेडक़र ने सुविनायक मंगल कार्यालय में आयोजित कीर्तन सम्मेलन के दूसरे दिन अपने कीर्तन में कही।
विक्रम नांदेडक़र ने कहा कि 80 से अधिक कीर्तनों की रचना दासगणु महाराज ने की है। वे शिर्डी संस्थान के 33 वर्ष तक संस्थापक अध्यक्ष रहे। सांई बाबा के मंदिर में कही जाने वाली आरती तथा संत गजानन विजय ग्रंथ भी दासगणु द्वारा लिखित हैं। वर्तमान में दासगणु महाराज प्रतिष्ठान संस्था द्वारा उनका कार्य आगे किया जा रहा है। शनिवार के कीर्तन में नांदेडक़र जी ने धामणगांव के संत माण कोनी बोधले की कथा की। आपने विवेक क्या है? उसका महत्व बताया और संत चरित्र से विवेक की प्रेरणा कैसे मिलती है? इसके बारे में विस्तार से बताया। उत्तर रंग में हिण्डी कटिबंध एवं लाावणी आदि काव्य के प्रकारों पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत सह कार्यवाह यशवंत इंदापुरकर, राघवेन्द्र जी, पवन पटवर्धन, अरविंद धारप, वीरेन्द्र कुंटे आदि गणमान्य जन उपस्थित थे। कार्यक्रम को-ऑर्डिनेटर निशिकांत सुरंगे ने बताया कि रविवार को कौस्तुभ बुवा रामदासी जी का कीर्तन शाम को छह बजे से होगा। कार्यक्रम का संचालन उमा कम्पूवाले ने किया।