कांग्रेस के फूफा से निपटना पाठ के लिए बनी चुनौती

कांग्रेस के फूफा से निपटना पाठ के लिए बनी चुनौती
X

ग्वालियर। पूर्व विधायक प्रवीण पाठक को जब जब टिकट मिला है, उन्हें कांग्रेस के फूफाओं से निपटना पड़ता है। इस बार भी भाजपा से कहीं अधिक चुनौती घर के फूफा ही दे रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर दक्षिण से टिकट मिलने पर उन्हें कांग्रेस के असंतुष्टों ने निपटाने के लिए अच्छी खासी भूमिका निभाई थी, हालांकि भाग्य ने उनका साथ दिया और वह 131 मतों से विजयी हो गए। फिर पांच साल में उनकी कार्यशैली को लेकर कांग्रेस में एक असंतुष्ट खेमा लगातार सक्रिय रहा। जिन्हें कांग्रेस जिलाध्यक्ष डॉ देवेंद्र शर्मा से बल मिलता रहा। लेकिन इन सबके बावजूद वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में उन्हें बड़ी आसानी से टिकट मिल गया। उन्होंने जिस दिलेरी से विधानसभा में विशेष शैली में अपनी बात रखी उससे शीर्ष नेतृत्व उनका प्रशंसक हो गया। लेकिन चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिल सकी और वह भाजपा के नारायण सिंह कुशवाह से ढाई हजार मतों से पराजित हो गए।

इसके पीछे भी बड़ा कारण कांग्रेस नेताओं द्वारा उनका विरोध करना रहा। फिर भी नेतृत्व ने उन्हें उड़ीसा में न्याय प्रोजेक्ट का चेयरमैन बनाकर बड़ी जिम्मेदारी दी। इस बीच चार बार चुनाव लड़ चुके वरिष्ठ नेता अशोक सिंह के राज्यसभा सदस्य बनने से ग्वालियर में लोकसभा प्रत्याशी के लिए उभरे नामों में प्रवीण पाठक का नाम भी उभरा। जबकि एक खेमे ने पूर्व सांसद रामसेवक सिंह गुर्जर का नाम रखा तो युवक कांग्रेस कोटे से मितेंद्र दर्शन सिंह प्रयास करने लगे। शहर कांग्रेस अध्यक्ष डॉ देवेंद्र शर्मा का नाम किसी खेमे ने नहीं रखा, फिर भी पाठक का टिकट होने पर फूफा की तरह रुठने वाले वह पहले नेता रहे।

उन्होंने बाकायदा पाठक के खिलाफ मोर्चा खोलकर इस्तीफे की धमकी दी। हालांकि दो दिन बाद बुलाई गई कांग्रेस साधारण सभा की बैठक में भी उन्होंने वेमन से हिस्सा लिया और चुनाव बाद इस्तीफा देने की बात कही। यानीकि पाठक को इनकी चुनौती से सबसे पहले निपटना होगा। इस बीच पूर्व सांसद रामसेवक सिंह गुर्जर भी उनके टिकट से फूफा की तरह रुठकर घर बैठ गए हैं। वे न तो साधारण सभा की बैठक में आए और न ही अन्य कार्यक्रमों में दिखाई दे रहे हैं। उनके अलावा कुछ अन्य वरिष्ठ नेता भी कार्यक्रमों में नहीं आ रहे है। इस तरह जिला कांग्रेस मुखिया के अलावा टिकट की दावेदारी करने वाले नेताओं पर सबकी निगाहें हैं कि वह प्रत्याशी के लिए काम करते हैं या फूफा बनकर काम बिगाड़ेंगे।

Tags

Next Story