फिर हुआ वामपंथियों का चेहरा बेनकाब?

फिर हुआ वामपंथियों का चेहरा बेनकाब?
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नई दिल्ली। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत-चीन तनाव के बीच एक बार फिर वामपंथियों का चेहरा बेनकाब हुआ है। वामपंथी जमात ने अब तक न तो चीन के खिलाफ कोई बयान दिया है और न ही भारतीय सैनिकों का मनोबल बढ़ाया है। इसके उलट मौजूदा तनाव के पीछे इन्होंने अमेरिका और भाजपा को ही दोषी ठहरा दिया है। ताजा घटनाक्रम में वामपंथियों की भूमिका देखकर ऐसा लगता ही नहीं है कि ये सरकार के साथ खड़े हैं। वामपंथियों का रवैया ठीक उसी तरह है, जैसे कश्मीर का कोई इस्लामी आतंकी संगठन हमेशा पाकिस्तान के लिए काम करता है।

दरअसल, दुनियाभर में वामपंथी जमात के लोग लोकतांत्रिक देशों में लोकतंत्र को समाप्त करने की बात करते हैं लेकिन जहां उन्हें सत्ता मिल जाती है वहां लोकतंत्र का गला घोंट देते हैं। जहां तक भारतीय कम्युनिस्टों की एक खास बात यह है कि ये अपने धर्म और मातृभूमि के दर्शन में ही विश्वास नहीं करते हैं। ये चीन, क्यूबा और उत्तर कोरिया को अपना देश मानते हैं, जहाँ लोकतंत्र नाम की कोई चीज है ही नहीं। वामपंथी न तो देश की सेना का सम्मान करते हैं और न ही संकट के समय अपनी सरकार के साथ खड़े होते।

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, सीपीआई के जनाधार वाले राज्यों में वामपंथी जमात तथाकथित उदारवादी मीडिया के माध्यम से चीनी सेना और उसकी करतूतों के ही गुणगान करने में लगे हुए हैं। बांग्ला मुखपत्र 'गणशक्ति' ने अपने पहले ही पृष्ठ पर भारतीय सेना के बलिदान का मखौल उड़ाते हुए उन्हें ही दोषी ठहराया है। इसके लिए किसी भारतीय नहीं बल्कि चीनी प्रवक्ता का बयान छापा गया है। इतना ही नहीं चीनी प्रवक्ता के हवाले से दावा किया गया है कि भारतीय सेना गलवान घाटी में स्थिति से छेड़छाड़ किया। वामपंथियों का रवैया ठीक उसी तरह है, जैसे कश्मीर का कोई इस्लामी आतंकी संगठन हमेशा पाकिस्तान के लिए काम करता है।

1962 के युद्ध में भी वामपंथियों ने नेहरू सरकार का समर्थन् करने के बजाए चेयरमैन माओ के समर्थन में थे। सोषल मीडिया पर सीताराम येचुरी और प्रकाश करात से इस सम्बन्ध में सवाल पूछे गए लेकिन वामपंथी नेताओं ने कोई जवाब नहीं दिया। पूरे मामले में वामपंथियों ने चीन पर चुप्पी साध ली है। उस पर सवाल उठाने के बजाए उन्होंने केंद्र सरकार से ही सवाल किया है कि सीमा पर क्या हुआ है? तब यवाल उठना लाजिमी है कि क्या ऐसी पार्टियों को भारत में चुनाव लड़ने का अधिकार होना चाहिए? इसी तरह तिब्ब्त गुरू दलाई लामा को शरण देने पर भी वामपंथी पार्टियाँ नाराजगी जताती रहती है। दलाई लामा से जिस तरह से चीन चिढ़ता है, ठीक उसी तरह वामपंथी भी चिढ़ते हैं। लेकिन क्या भारत चीन के आगे झुक कर दलाई लामा को प्रताड़ित करे?

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