क्यों डूबा श्योपुरः सीप बनी नाला, तालाबों बन गए खेत, जनता उदासीन, जन प्रतिनिधि खामोश

क्यों डूबा श्योपुरः सीप बनी नाला, तालाबों बन गए खेत, जनता उदासीन, जन प्रतिनिधि खामोश
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नदी, नाले और तालाबों पर कब्जा कर बना लिये खेत और पक्के मकान, बाढ़ प्रभावित होने का यह भी है एक कारण

श्योपुर/ मोहनदत्त शर्मा।श्योपुर में आई प्राकृतिक आपदा ने शहर सहित ग्रामीण अंचल में निवास करने वाले लोगों के जीवन को झंकझोर कर रख दिया है। बाढ़ प्रभावित लोगों की माने तो इतना अधिक पानी किसी बांध को तोड़ने या फिर बांध से पानी छोड़े जाने पर आया है, हालांकि प्रशासनिक पड़ताल के बाद यह बात भी साफ हो गई कि श्योपुर में तबाही का कारण बना पानी किसी बांध से नहीं छोड़ा गया था, बल्कि यह लगातार होने वाली भारी बारिश के कारण जंगलों में एकत्रित हुआ पानी था, जो सीप नदी में बाढ़ के साथ तबाही मचाता चला गया। लेकिन श्योपुर में आई इस प्राकृतिक आपदा के कारणों की बात करें तो भारी बारिश के साथ-साथ नदी-नालों और तालाबों पर अतिक्रमण होना भी इस भयावह क्षति का एक प्रमुख कारण रहा है। पनवाड़ा तालाब से रामेश्वर घाट त्रिवेणी संगम तक बहने वाली सीप नदी आवदा गांव से लेकर मानपुर तक पूरी तरह से अतिक्रमण की जद में आ चुकी है।

जनसंख्या बढ़ने के साथ ही लोगों ने धीरे-धीरे नदी-नालों और तालाबों को पाटना शुरू कर दिया। सीप नदी भी लोगों के अतिक्रमण का शिकार होती चली गई। आवदा से मानपुर तक सीप नदी के किनारों पर हजारों बीघा जमीन पर अतिक्रमण कर खेती की जाने लगी, हजारों पक्के मकान भी नदी के किनारे पर ही बना लिये गए। वहीं शहर में बहने वाले नालों पर भी कई आलीशान भवन निर्मित हो गए। विगत दिवस हुई भारी बारिश के कारण नदियों का जल स्तर बढ़ा और नदी किनारे पर बने खेत और पक्के मकानों को पानी के साथ ही बहा कर ले गया। यहां गौर करने वाली बात यह है कि जातिवाद और प्रशानिक व्यवस्थाआंे पर तंज कसने वाले जनप्रतिधि और नेताओं ने कभी नदी-नालों और तालाबों पर होने वाले अतिक्रमण जैसी गंभीर समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। किसी भी सामाजिक संगठन द्वारा भी यह मुद्दा आज तक नहीं उठाया गया कि अतिक्रमण के कारण किसी दिन ऐसा भयावह दृश्य भी उन्हें देखना पड़ सकता है।

शहर में नालों के रूप में तब्दील हो गई जीवनदायिनी सीप -

जिस सीप नदीं को श्योपुर जिलेभर में तबाही बचाने वाली नदी के रूप में देखा जा रहा है, दरअसल नगर के लोगों ने सीप को नदी न रहने देते हुए एक नाले के रूप में तब्दील कर दिया था। पूरे शहर का कचरा सीप में बहने के साथ ही नदी के किनारों पर कब्जा कर सब्जी की खेती की जाने लगी थी। वहीं सीप नदी के घाटो सहित शहरभर में नदी किनारे पर पक्के मकान बना लिये गए। इसके अलावा ग्रामीणों क्षेत्रों में भी सीप को संकरी कर खेती करने के साथ ही मकानों का निर्माण कर लिया गया। जिसकी परिणति यह हुई कि भीषण बाढ़ के साथ लोगों का सबकुछ बह गया।

गर्मियों से पहले ही सूख जाती है नदियां -

चारों और से नदियों से घिरे श्योपुर जिले में कई नदियां जहां अतिक्रमण की जद में आकर दम तोड़ती जा रही है, वहीं कई नदियों का स्वरूप पूरी तरह से बदल गया है। अतिक्रमण होने के कारण नदियों की जल भराव क्षमता भी कम हो गई है, जिसकी वजह से नदियों का जल स्तर सर्दियों में ही कम हो जाता है। गर्मियों का मौसम आने से पहले ही कई नदियां सूख जाती है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट के हालात उत्पन्न हो जाते हैं।

इन नदियों पर हो रहा अतिक्रमण -

श्योपुर जिले की सीमा क्षेत्र में बहने वाली सीप सहित अहेली, कदवाल, अमराल, सरारी, पारम, भादड़ी, दौनी, ककरेंडी, द्वुवार, विजयपुर की क्वारी नदी सहित जंगल से निकलने वाली कई सहायक बरसाती नदियां धीरे-धीरे अतिक्रमण के चलते अपनी अस्तित्व खोती जा रही हैं। धीरे-धीरे लोगों द्वारा नदी किनारे अतिक्रमण का क्षेत्रफल बढ़ा दिया जाता है। कई स्थानों पर तो नदियों को पूरी तरह से पाट दिया गया है।

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