गुरू ने उंगली पकड़कर दिखाया रास्ता, बन गए नेता, अधिकारी व समाज के सेवक
ग्वालियर, न.सं.। भारतीय परम्परा और हिन्दू दर्शन का आधार ईश्वर ही है। गुरु का महत्व इसलिए भी है क्योंकि ईश्वर से मिलाने वाला गुरु ही है। यानि की गुरु की शरण में जाकर ही हम ईश्वर से साक्षात्कार कर सकते हैं। इसलिए कहा भी गया है कि गुरु और ईश्वर में कोई भी भेद नहीं है। गुरु का महत्व इसलिए भी है कि क्योंकि वहीं हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हंै।
गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर स्वदेश ने राजनीति, प्रशासन और समाज सेवा से जुड़े लोगों से चर्चा की और जाना कि गुरु से उन्हें क्या सीख मिली है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। इस दौरान न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी होती है। इसलिए अध्ययन के लिए यह समय उपयुक्त माना गया है। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
अलग-अलग रूप में गुरुओं को मानने वाले:-
'मेरे जीवन में मेरे सबसे बड़े गुरु या यूँ कहें कि मेरे भगवान मेरे माता-पिता हैं। आज मैं जिस मुकाम पर हूँ उन्हीं के मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद से हूँ।Ó
प्रद्युम्न सिंह तोमर,कैबिनेट मंत्री
'मैं महात्मा गांधी जी को अपना आदर्श गुरु मानता हूँ। उनके बताए हुए मार्ग सत्य और अहिंसा की राह पर चलता हूँ। जिस व्यक्ति के अच्छे विचार हों वहीं हमारा गुरू है। गुरू के बताए मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति कभी असफल नहीं होता है।
मुन्नालाल गोयल,पूर्व विधायक
'समाज में अगर रहना है तो सभी से सीखने की लालसा को पैदा करना होगा। जिस व्यक्ति से हम अपने जीवन में कुछ सीखते हैं, वही हमारा गुरू है। गुरू बनाने की परंपरा जीवन भर चलती रहती है।
-कमल माखीजानी,भाजपा जिलाध्यक्ष
'मैं अपने जीवन में योगानन्द जी महाराज गुजरात, विजय कौशल महाराज वृंदावन, राधिका वल्लभ मुंबई एवं धनुरधर महाराज संतश्री से बहुत प्रभावित हूँ। आज मैं जो कार्य कर रहा हूँ प्रभू की प्रेरणा से ही कर रहा हूँ। इस दुनिया में मेरा सहारा सिर्फ भगवान है, जिसने मेरा हाथ पकड़कर मुझे यहां तक पहुँचाया है।Ó
राजा बाबू सिंह,एडीजीपी
'मेरी गुरू मेरी माँ हैं, जिनके आशीर्वाद से मैं आगे बढ़ रहा हूँ। बचपन से मैं उनके बताए हुए आदर्शों पर चल रहा हूँ और आगे भी चलता रहूँगा।Ó
नवनीत भसीन,पुलिस अधीक्षक, ग्वालियर
'मैंने अभी तक किसी को आध्यात्मिक गुरू तो नहीं बनाया है। जिन शिक्षकों ने मुझे पढ़ाया है वही मेरे गुरू हैं। जीवन में आगे बढऩे का शिक्षा ही सबसे बेहतर साधन है। मुझ पर मेरे माता-पिता और ईश्वर की कृपा है जिससे मैं आगे बढ़ रहा हूँ।
विनीत खन्ना,उप पुलिस महानिरीक्षक
'गुरू ही वह शक्ति है जो समाज में हमें उच्च स्थान दिलवाती है। मायके में मेरी प्रथम गुरू मेरी मां थी। विवाह के बाद मेरी सासू मां ने गुरू की भूमिका निभाई और राजनीति में एक उचित स्थान भी दिलाया। मेरा मानना है कि हम अपने जीवन में गुरू के बिना आगे नहीं बढ़ सकते हैं।Ó
श्रीमती समीक्षा गुप्ता,पूर्व महापौर
'घर में मेरे माता-पिता और विद्यालय में मेरे शिक्षक मेरे गुरू रहे हैं। मैंने पदमा विद्यालय में शिक्षा ग्रहण की है, मैं विद्यालय के प्राचार्य शांति चौहान से बहुत प्रेरित हूँ। उनके अनुशासन को ही मैंने अपने जीवन में अपनाया है और उसी पर चलने का प्रयास करती हूँ।
श्रीमती हिमानी खन्ना,उप पुलिस महानिरीक्षक