जिनके कार्यकाल में हुए फर्जी अस्पतालों के पंजीयन उन्हें फिर सौंपी कमान
ग्वालियर, न.सं.। जिले में एक ओर जहां निजी अस्पतालों में मरीजों के साथ जमकर दलाली की जा रही है। वहीं अब स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने भी मरीजों को लुटने के लिए छोड़ दिया है। इसी के चलते जिम्मेदार अधिकारियों ने निजी अस्पतालों पर निगरानी रखने का जिम्मा ऐसे चिकित्सक पर छोड़ दिया है जिन्होंने पूर्व में फर्जी निरीक्षण कर नियम विरुद्ध तरीके से निजी अस्पतालों को पंजीयन दिलाया था। इसेे लेकर तत्कालीन जिलाधीश अनुराग चौधरी के निर्देश पर कई अस्पतालों के पंजीयन भी निरस्त हुए। साथ ही जिस चिकित्सक ने अस्पतालों का निरीक्षण किया था, उन्हें भी लूप लाइन में लगा दिया गया था। लेकिन तत्कालीन सीएमएचओ डॉ. एस.के. वर्मा के हटते ही उन्हीं चिकित्सक को दोबारा कमान सौंप दी गई है।
दरअसल जिले में पिछले वर्ष करीब 50 से अधिक निजी अस्पतालों के पंजीयन हुए थे। लेकिन इन अस्पतालों में से अधिकांश अस्पताल ऐसे थे, जो सिर्फ कागजों में ही संचालित हो रहे और कुछ अस्पताल दो या चार कमरों में ही चल रहे हैं। जिसका खुलासा होने के बाद तत्कालीन जिलाधीश अनुराग चौधरी ने कार्रवाई के निर्देश पूर्व सीएमएचओ डॉ. एम.के. सक्सेना को दिए थे। इस पर डॉ. वर्मा पहले तो कार्रवाई करने से बचते रहे और जब फिर प्रशासन का दबाव आया तो उन्होंने कार्रवाई करते हुए 50 से अधिक अस्पतालों के खिलाफ न्यायालय में परिवाद पेश कर दिया। इसके बाद डॉ. एस.के. वर्मा जब सीएमएचओ बने तो उन्होंने उक्त चिकित्सक से प्रभार छीन लिया। इसके बाद उक्त चिकित्सक ने दोबारा प्रभार लेने के लिए कई जगहों ने सिफारिश लगवाई लेकिन डॉ. वर्मा के सामने उनकी एक न चल सकी। डॉ. वर्मा के बाद डॉ. वी.के. गुप्ता जैसे ही सीएमएचओ बने तो उन्होंने दोबारा निजी नर्सिंग होम का प्रभारी उन्हें बना दिया। लेकिन डॉ. मशीन शर्मा ने सीएमएचओ बनते ही उक्त चिकित्सक की जगह किसी अन्य चिकित्सक को प्रभार देने के लिए निर्देश दिए तो संबंधित चिकित्सक ने एक नेता से सिफारिश लगवाई। अब जिलाधीश के निर्देश के बाद उनका प्रभार यथावत रखा गया।
गड़बडिय़ों के लग चुके हैं आरोप
संबंधित चिकित्सक द्वारा नियम विरुद्ध तरीके से अस्पतालों का पंजीयन करने और निजी अस्पतालों की कमियां छुपाने के पूर्व में कई आरोप लग चुके हैं। यहां तक कि उक्त चिकित्सक पर यह भी आरोप लगे थे कि उनके द्वारा निरीक्षण करने के बाद अस्पताल संचालक को सीएमएचओ कार्यालय में देर रात सेटिंग के लिए बुलाया जाता था। जिसके बाद मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता था।