ग्वालियर चिकित्सा महाविद्यालय ने गंवा दी एमबीबीएस की सौ सीट !

ग्वालियर चिकित्सा महाविद्यालय ने गंवा दी एमबीबीएस की सौ सीट !
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112 करोड़ की धन खर्ची बेकार, भोपाल, इंदौर, जबलपुर को मिली सौगात

ग्वालियर। यूक्रेन संकट के मध्य सरकारी कोटे की एमबीबीएस सीटों की कम संख्या को लेकर देश भर में बहस छिड़ी हुई है। इस बीच ग्वालियर के गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय में इस बर्ष सौ सीटें बढ़ सकती थीं लेकिन महाविद्यालय प्रबंधन ने इसे बिल्कुल भी गंभीरतापूर्वक नहीं लिया नतीजतन मप्र के इस सबसे बड़े और पुराने चिकित्सा महाविद्यालय को यह सीट नही मिल सकीं। ध्यान देने वाली बात यह है कि प्रदेश के भोपाल, इंदौर, जबलपुर चिकित्सा महाविद्यालयों को सौ सौ अतिरिक्त सीट पर प्रवेश की अनुमति एनएमसी ने दे दी है।

सरकारी तंत्र की लापरवाही का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि करीब 112 करोड़ की भारी भरकम राशि से जो आधारभूत सरंचना के काम महाविद्यालय में सीट संख्या बढ़ाने के लिए किए जाने थे वे न तो एनएमसी की मॉडल गाइडलाइंस के अनुरूप हुए न तीन साल बाद नवनिर्मित भवन महाविद्यालय को हैंडओवर हुए है। लोकनिर्माण विभाग और महाविद्यालय के मध्य चिट्ठी पत्री के खेल में ठेकेदार की गारंटी अवधि भी निकलने के कगार पर है। नतीजतन 112 करोड़ खर्च करने के बाद जिस नए भवन में 100 सीटों पर अतिरिक्त विद्यार्थियों को पढऩे और प्रयोग के लिए सुविधाएं उपलब्ध होनीं थी वहां घास उग रही है।

राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग यानी एनएमसी ने देश के पुराने चिकित्सा महाविद्यालयों में मौजूदा सीटों के अतिरिक्त 100-100 सीट्स एमबीबीएस में बढ़ाने के लिए प्रस्ताव पिछले बर्ष आमंत्रित किए थे। ग्वालियर का चिकित्सा महाविद्यालय प्रदेश का सबसे पुराना महाविद्यालय है, जिसकी स्थापना 1946 में स्टेटकाल में हुई है। इस प्रस्ताव के अनुसार एनएमसी की एक उपसमिति ऐसे पुराने चिकित्सा महाविद्यालय का निरीक्षण करती है। इसी के तहत मेडिकल असेसमेंट एंड रेटिंग बोर्ड ( एमआरबी )नामक उपसमिति ने ग्वालियर चिकित्सा महाविद्यालय का कुछ समय पहले दौरा भी किया था।

एमआरबी टीम ने गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय में एमबीबीएस की सीट संख्या बढ़ाने के लिए आवश्यक आधारभूत ढांचे को अपर्याप्त मानकर महाविद्यालय के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। जबकि इंदौर, जबलपुर और भोपाल के लिए इस समिति ने 100-100 सीट बढाने के लिए आधारभूत ढांचा पर्याप्त पाया गया। आधारभूत ढांचे में भवन, प्रयोगशाला, चिकित्सकीय एवं गैर चिकित्सकीय स्टाफ शामिल होता है। ग्वालियर महाविद्यालय में अभी 180 सीटों पर एमबीबीएस के लिए प्रवेश मिलता है। इनमें से कुछ सीट्स सन्सद द्वारा पारित ईडल्यूएस कोटे के कारण बढ़ी है। अगर महाविद्यालय प्रबंधन भोपाल, इंदौर की तर्ज पर एमआरबी का निरीक्षण करा लेता तो प्रदेश के इस सबसे पुराने महाविद्यालय में भी 100 अतिरिक्त सीटों पर बच्चों को एमबीबीएस में प्रवेश मिल सकता था।

7 माह बाद भी कोई चिंता नहीं -

करीब 7 महीने पहले एनएमसी की एमआरबी टीम ने महाविद्यालय का निरीक्षण किया और एमबीबीएस की सौ सीट्स बढ़ाने के प्रस्ताव को इन तीन प्रमुख सरंचनाओं के आभाव में निरस्त कर दिया। कमोबेश स्टाफ भर्ती को लेकर भी टीम संतुष्ट नही थी। सवाल यह है कि जब प्रदेश के तीन अन्य सरकारी महाविद्यालय में सौ सीट बढ़ चुकीं है तब ग्वालियर में पुन: इसके लिए या प्रयास हो रहे है? सच्चाई यह कि मामला जस का तस बना हुआ है। नए भवन को महाविद्यालय हैंडओवर के लिए तैयार नही है योंकि 112 करोड़ की राशि में यह कार्य कराया ही नही जा सका है। ऐसे में डीन इसे अपने सुपुर्द लेनें से कतरा रहे है।एनएमसी अगर फिर से एमआरबी को निरीक्षण के लिए भेजता है तो करोड़ों की लागत से यह कार्य कहां से दिखाए जाएंगे।

112 करोड़ खर्च फिर भी निरीक्षण में विफल

ग्वालियर चिकित्सा महाविद्यालय में आधारभूत सुविधाओं को बढ़ाने के लिए सरकार ने 112 करोड़ रुपए की भारी भरकम राशि महाविद्यालय को प्रदान की। इस राशि से नए चिकित्सकीय आवश्यकता केंद्रित भवन के अलावा एनएमसी गाइडलाइंस के अनुसार नवीन लेक्चर कम थियेटर भवन, नवीन वार्डन हाउस एवं एनाटॉमी विभाग के डिसेशन हाल का नवीनीकरण किया जाना अनिवार्य था। सीट संख्या बढ़ाए जाने के लिए इन शर्तों को भोपाल, इंदौर, जबलपुर ने समय सीमा में पूरा किया और निरीक्षण के समय एमआरबी टीम को संतुष्ट कर लिया।

ग्वालियर चिकित्सा महाविद्यालय में 112 करोड़ की राशि लोकनिर्माण विभाग की पीआईयू शाखा को देकर इस बात का कोई ध्यान ही नही रखा कि जिस उद्देश्य से यह राशि खर्च की जा रही है उसे समय रहते पूर्ण करा लिया जाए।

मानक की जगह मनमाकिफ निर्माण -

महाविद्यालय परिसर में 112 करोड़ की धन खर्ची के बाद बने भवन अभी तक हैंडओवर नही हुए है। अधिकतर भवन में लगी खिड़कियां दरवाजे जर्जर होने के कगार पर है। दूसरी तरफ एनाटॉमी हॉल का रिनोवेशन एवं नए वार्डन हाउस का अतापता ही नही है। सवाल यह कि जब इतनी बड़ी राशि खर्च की जा रही थी तब महाविद्यालय के अधिष्ठाता मानक निर्माण और नवीनीकरण की तरफ से आंखे बंद करके यों बैठे रहे।

कैसे होगा फिर निरीक्षण -

अधिष्ठाता डॉ. समीर गुप्ता दावा करते है कि अगले कुछ महीने में वे एनएमसी निरीक्षण के लिए सभी कमियों को दूर कर लेंगे। लेकिन बड़ा सवाल यह कि 26 करोड़ की राशि कौन वहन करेगा। जिससे एनाटॉमी डिसेसशन हाल, वार्डन हाउस जैसे काम होने हैं। या सरकार निर्माण एजेंसी और अधिष्ठाता की जबाबदेही तय कर पाएगी।

16 पत्र लेकिन समय पर नहीं -

अधिष्ठाता दावा करते है कि उन्होंने 16 पत्र पीआईयू को लिखे है लेकिन एक भी पत्र का जवाब लोकनिर्माण विभाग ने नही दिया। लेकिन अहम पक्ष यह कि या निर्माण अवधि के दौरान अधिष्ठाता पद पर रहे लोगों ने ऐसे कोई पत्र लिखे जो मानक निर्माण पर आपत्तियों से जुड़े हो। मामला जब उलझ गया है तब अपनी भूमिका को कागजों में बचाने के लिए पत्राचार किया जा रहा है। लेकिन नुकसान तो अंचल के लिए 100 सीट्स का हो ही गया।

सात पद्म पुरस्कार लेने वाला अकेला महाविद्यालय -

ग्वालियर का चिकित्सा महाविद्यालय एक समय तक देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में एक रहा है इसकी शैक्षणिक गुणवाा का लोहा देश भर में सुस्थापित रहा है। महाविद्यालय से निकले सात चिकित्सकों को पदम् पुरस्कार मिल चुके है। आज हालात यह है कि महाविद्यालय की साख गिर रही है। मौजूदा अधिष्ठाता समेत अन्य शिक्षकों पर निजी महाविद्यालय अस्पताल चलाने से लेकर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं।

इनका कहना है -

महाविद्यालय में 150 से 200 सीटें हो चुकी हैं। अन्य सीटे बढ़ाने के लिए जो कमियां हैं, उन्हें भी दो से तीन माह में पूरा कर लिया जाएगा।

डॉ. समीर गुप्ता अधिष्ठाता, गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय


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