ग्वालियर दक्षिण विधानसभा,नारायण सिंह चुनाव तो जीत गए, लेकिन...
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ग्वालियर। मध्य प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में ग्वालियर -चंबल संभाग की चर्चित सीटों में से एक ग्वालियर दक्षिण विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के नारायण सिंह कुशवाह ने अपनी पिछली पराजय का हिसाब बराबर करते हुए सीट फिर भाजपा के खाते में डाल दी है। वह चुनाव तो जीत गए, लेकिन उन्हें अब कई चुनौतियों का सामना करना है तो अपनी कार्यशैली व व्यवहार में बदलाव कर एक बड़ी लकीर खींचकर अपने आलोचकों को जवाब भी देना है। ग्वालियर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र यूं तो भाजपा का गढ़ रहा है। कभी लश्कर पश्चिम के नाम से यह सीट थी यहां से जनसंघ से लेकर जनता पार्टी, भाजपा के टिकट पर शीतला सहाय यहां से पांच बार निर्वाचित हुए और मंत्री का दायित्व भी संभाला। उनकी अपनी कार्यशैली थी और मंत्री के रूप में प्रदेशभर में उनकी अपनी एक पहचान थी। खैर नए सिरे से विधानसभा का परिसीमन हुआ और यह सीट ग्वालियर दक्षिण हो गई।
वर्ष 2003 में दिग्गज नेता को हराया
भाजपा ने वर्ष 2003 में ग्वालियर दक्षिण से नए चेहरे नारायण सिंह कुशवाह को टिकट देकर उनके गुरू, कांग्रेस के दिग्गज नेता भगवान सिंह यादव के सामने मैदान में उतारकर सीट भाजपा के खाते में डालने का जिम्मा सौंपा। श्री
कुशवाह पार्टी नेतृत्व के विश्वास पर खरा उतरे और श्री यादव को 4913 मतों से पराजित कर विजयी हुए। भाजपा ने 2008, 2013 में भी श्री कुशवाह पर भरोसा कर चुनाव मैदान में उतारा। वह पार्टी नेतृत्व के विश्वास पर फिर खरा उतरे और भाजपा के लिए दोनों बार सीट जीती।भाजपा ने श्री कुशवाह को इसका इनाम भी दिया और प्रदेश सरकार में गृह राज्य मंत्री बनाया। सहजता, कम बोलना और साफ बोलना उनकी आदत में शुमार है। यह उनकी अच्छाई भी है ,लेकिन आज के राजनीतिक परिवेश में यह एक कमजोरी भी मानी जाती है, क्योंकि आज की राजनीति का माहौल कुछ अल्हदा है। वर्ष 2018 के चुनाव में भाजपा ने उन्हें चौथी बार मैदान में उतारा, जहां उनका मुकावला कांग्रेस के एक नए नवेले युवा चेहरे प्रवीण पाठक से था। जनता के बीच यह चेहरा कोई ज्यादा जाना पहचाना नहीं था तो कांग्रेस में भी सर्वस्वीकार नहीं। उस समय मुकाबला जब चर्चित और कड़ा हो गया तब भाजपा की पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता भी निर्दलीय मैदान में उतर गईं और भाजपा की जीत की राह में रोढ़ा बन गईं। इस चुनाव में समीक्षा गुप्ता जहां उन्हें खुली चुनौती दे रहीं थीं तो पार्टी का ही बडा़ समूह पर्दे के पीछे भितरघात कर समीक्षा के साथ खड़ा था और नतीजा भाजपा के खिलाफ गया। श्री कुशवाह को श्री पाठक ने कड़े मुकाबले में मात्र 121 मतों से पराजित किया।
इस साल बदल गए समीकरण
वर्ष 2023 के चुनाव में भाजपा ने काफी जद्दोजहद के बाद पांचवी बार नारायण सिंह कुशवाह को ही टिकट दे दिया। उधर कांग्रेस की ओर से तत्कालीन विधायक प्रवीण पाठक का टिकट तय था और वह काफी समय पहले से ही जनता के बीच चुनावी मोर्चा संभाले हुए थे। टिकट की घोषणा के साथ ही नारायण सिंह कुशवाह की जीत को लेकर लोग संशकित थे। वहीं प्रवीण पाठक की जीत की चर्चाएं गली - मोहल्लों तक थीं। मतदान का समय जैसे-जैसे नजदीक आता गया घमासान बढ़ता गया। भाजपा के पक्ष में लाडली बहनाओं के लाड़, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा, मोदी की गारंटी पर गारंटी, केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का अंतिम दौर में खुद मोर्चा संभालने के साथ सजातीय मतदाताओं की लामबंदी से अंतत: नारायण सिंह कुशवाह नजदीकी मुकाबले में सिर्फ 2536 मतों से विजयी रहे और पिछली हार का हिसाब बराबर कर लिया। हालांकि इस बार भी भितरघात और अपनों के असहयोग को उन्हें झेलना पड़ा और जहां बड़ी जीत की उम्मीद थी, वह मामूली मतों में बदल गई।खैर जीत, जीत होती है फिर चाहे वह एक मत से ही क्यों न हो।
अब सामने हैं कई चुनौतियां
भाजपा के टिकट पर नारायण सिंह कुशवाह चौथी बार विधायक बन गए हैं। कुछ रोज में प्रदेश में नए मुख्यमंत्री की ताजपोशी के साथ मंत्रीमण्डल भी गठित होगा। संभावना है कि सभी समीकरणों और जातिय गुणा भाग के हिसाब से कुशवाह मंत्री भी बनाए जाएंगे। एक तरफ कुशवाह की सहजता, कम और साफ बोलने की आदत है, जो कि आज की राजनीति में फिट नहीं बैठती। पिछले चुनाव में पराजय के बाद निष्क्रियता और जनता से दूरी भी उनकी कमजोरी रही। वहीं प्रदेश सरकार के मंत्री कार्यकाल में उनके व्यवहार से लेकर इर्द - गिर्द के घेरे से भी उनकी लोकप्रियता में जहां गिरावट आई तो स्वीकार्यता में भी कमी आई। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के विधायक प्रवीण पाठक ने अपनी कार्यशैली से जनता का विश्वास जीतने में सफलता हासिल की । जनता के बीच निरंतर संपर्क, सुख -दुख में शामिल होना। युवाओं से नजदीकी बढ़ाने क्रिकेट टूर्नामेंट कराने , युवाओं को खेल के प्रति आकर्षित करने दो सौ से अधिक बच्चों को क्रिकेट किट देने, स्कूलों के नवनिर्माण का कार्य , स्टेशनरी बैंक की स्कूलों में स्थापना करने जैसे अनेक कार्य हुए, जिससे पाठक की लोकप्रियता बढ़ी।
वहीं पिछले चुनाव से सबक लेते हुए जातियता के हिसाब से भी उन्होंने सभी वर्गों वैश्य, जैन, सिंधी, मराठी व अन्य वर्गों में अपनी नजदीकी बढाऩे में सफलता प्राप्त की। यही बजह रही कि पिछले चुनाव में पाठक को 56,369 वोट मिले थे और इस बार उन्हें 79781 वोट मिले। पाठक के मतों में 23,412 मतों की वृद्धि इसका परिणाम थी ।वह चुनाव भले ही हारे, लेकिन जनता का मन उन्होंने अवश्य जीता है। श्री कुशवाह को इस बात से भी सीख लेनी होगी कि उनकी कार्य शैली देख केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी एक कार्यकर्ता सम्मेलन में कहना पड़ा कि अब नारायण सिंह जी आपको हंसते नजर आएंगे। खैर ! राजनीतिक गलियारे में अब यही चर्चा है कि श्री कुशवाह को एक बार फिर अवसर मिला है। अपनी कार्यशैली बदल जनता के बीच एक बड़ी लकीर खींचने और अपनी स्वीकार्यता, लोकप्रियता बढ़ाने का। इसमें वह कितना सफल होते हैं, यह समय बताएगा।
डीके जैन