हाईकोर्ट ने ग्वालियर निगम अधिकारियों को दोबारा फटकारा, कहा - सीबीआई को सौपेंगे जांच

हाईकोर्ट ने ग्वालियर निगम अधिकारियों को दोबारा फटकारा, कहा - सीबीआई को सौपेंगे जांच
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हर बार की तरह इस बार भी न्यायालय ने लगाई अधिकारियों की फटकार

ग्वालियर। मप्र उच्च न्यायालय की युुगल पीठ में शुक्रवार को शहर की स्वर्ण रेखा नदी के मामले में सुनवाई हुई है। इस दौरान न्यायाधीश रोहित आर्य ने साफ शब्दों में कहा है कि जिस तरह का रवैया नगर निगम के अधिकारियों का है और आदतों में सुधार नहीं किया गया, तो उसके बाद अब ये मामला वो सीबीआई को सौप देंगे।

उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा कि, आप अमृत काल के नाम पर न्यायालय को भी गुमराह करने से बाज नहीं आ रहे हो। निगम के अधिकारी न्यायालय में आकर झूठ बोल रहे है, सबको जेल भेज दूंगा। इस मामले में न्यायालय ने सोमवार तक खर्च का पूरा ब्यौरा पेश करने के आदेश दिए हैं।

इससे पहले भी हुई सुनवाई पर उच्च न्यायालय निगमायुक्त, स्मार्ट सिटी सीईओं सहित अन्य अधिकारियों को लताड़ लगा चुका है। न्यायाधीश ने पूछा कि ट्रंक लाइन में 2014 से लेकर अब तक कितना खर्चा हुआ है, ट्रंक लाइन बिछाने में अब तक कितना काम हुआ है और लाइन की क्या स्थिति है इन सवालों का जवाब न तो नगर निगम के अधिकारी दे पाए और न उनके काउंसिल।

न्यायाधीश ने कहा कि ऐसा लगता है, जैसे स्वर्ण रेखा के नाम पर सारा पैसा कुएं में डाल दिया है। अमृतकाल को ये लोग स्वर्ग दिखाकर जनता को बेवकूफ बना रहे है। जिसके बाद न्यायालय ने नाराजगी जताते हुए सोमवार (15 अप्रैल) को निगम से पांच बिंदुओं पर रिपोर्ट तलब की है।

यहां बता दें कि छह महीने से लगातार उच्च न्यायालय की युगल पीठ में स्वर्ण रेखा नदी के मामले में सुनवाई चल रही है। इस दौरान नगर निगम अब तक अपनी कार्रवाई से कोर्ट संतुष्ठ नही कर पा रहा है। जिसके कारण उसको फटकार लग रही है। साथ ही मामला सीबीआई को सौपनें तक की नौबत आ गयी है।

ऐसे समझिए पूरा मामला

ग्वालियर की स्वर्ण रेखा नदी के लिए हाईकोर्ट के अधिवक्ता विश्वजीत रतोनिया ने जनहित याचिका साल 2019 में दायर की थी। इससे पहले भी सुनवाई के दौरान कोर्ट नगर निगम कमिश्नर, स्मार्ट सिटी की सीईओ सहित कई अधिकारियों को फटकार लगा चुकी है। इससे पहले नगर निगम की ओर से शपथ पत्र दाखिल किया गया था। इसमें लापरवाही और गलतियों पर कोर्ट ने नाराज होते हुए अधिकारियों को आड़े हाथ लिया था। हर सुनवाई पर अफसरों को फटकार मिल रही है। न्यायालय ने पिछली सुनवाई में फटकार लगते हुए कहा था, नगर निगम और उसके द्वारा पेश किए जा रहे शपथ पत्र न्यायालय का समय खराब कर रहे हैं। टेलिफोनिक चर्चा के आधार पर ही स्वर्ण रेखा नदी प्रोजेक्ट को लेकर रिपोर्ट पेश कर दी जाती है। यह गलत तरीका है।

इन पॉइंट पर मांगा रिकॉर्ड

- स्वर्ण रेखा नदी को जीवित करने में कितना पैसा खर्च हुआ है।

- सीवेज लाइन की मरमत्त के लिए कितना पैसा खर्च हुए है।

- सीवेज प्लांट के लिए कितना पैसा खर्च।

- गार्बेज के लिए, गार्बेज कलेक्शन के लिए कितना पैसा आया है, कितना खर्च किया है।

- 2004 से 2024 तक स्वर्ण रेखा में कितना पैसा खर्च हुआ है उसकी क्षेत्रवार रिपोर्ट तलब किया है।

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