परिग्रह और उपसर्गों को सहन करना मुनि धर्म का कर्तव्य है

परिग्रह और उपसर्गों को सहन करना मुनि धर्म का कर्तव्य है
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ग्वालियर, न.सं.। आचार्य श्री शांति सागर महाराज जैन जगत के ध्रुव तारे हैं, जिन्होंने 20वीं सदी में मुनि परंपरा को आकाश की ऊंचाइयां प्रदान की हैं। संत और तीर्थंकर भविष्य की सोच कर ऐसे कार्य कर जाते हैं जो भक्तों के दिलों में इतिहास बनकर अंकित हो जाते हैं। परिग्रह और उपसर्गों को सहन करना मुनि धर्म का कर्तव्य है। मुनि की मुद्रा बालक की तरह निर्विकार मुद्रा है। इसीलिए भगवान की पूजा में मुनि मन सम उज्जवल नीर की उपमा देकर जल समर्पित किया गया है। यह विचार मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने गुरुवार को आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज के 66वें समाधि महोत्सव पर सोनागिर स्थित आचार्य पुप्षदंत सागर सभागृह में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहे। मुनिश्री ने कहा कि मृत्यु पर जो विजय प्राप्त कर लेता है, वही मुनि होता है और जो डर व भय के साए में जीता है, वह मुनीम होता है। मुनिश्री ने कहा कि मृत्यु के समय जो रोता है, वह अज्ञानी होता है और जो मृत्यु का हंसते-हंसते वरण करता है वह ज्ञानी होता है। जो आया है वह जाएगा, यह निश्चित है। उन्होंने कहा कि मृत्यु मातम नहीं महोत्सव है।

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