अपना अधिकार जानें, सूचना का अधिकार पहचानें
स्वदेश वेबडेस्क। भारतीय संविधान अनुच्छेद 19(1) के तहत देश के नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता का अधिकार देता है। भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने व शासन में पारदर्शिता लाने और नागरिक केंद्रित विकास के उद्देश्य से भारतीय संसद ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 लागू किया।
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अनुसार ऐसी जानकारी जिसे संसद या विधानमंडल सदस्यो को देने से इनकार नही किया जा सकता, उसे किसी आम व्यक्ति को देने से इनकार नही किया जा सकता। इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी लोक प्राधिकारी से सूचना प्राप्त करने हेतु 10 रुपए के आवेदन के साथ उस विभाग के लोक सूचना अधिकारी से अनुरोध कर सकता है, यह सूचना 30 दिन में उपलब्ध कराने की व्यवस्था है [धारा 7(1)] । यदि माँगी गई सूचना जीवन और व्यक्तिगत स्वंतंत्रता से संबंधित है तो ऐसी सूचना को 48 घंटे के भीतर ही उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
प्राप्त सूचना में असंतुष्टि, निर्धारित अवधि में सूचना प्राप्त न होने पर लोक सूचना अधिकारी के वरिष्ठ अधिकारी यानी प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष 30 दिन समाप्त होने के बाद धारा 19 (1) के तहत 50 रुपए के साथ अपील कर सकते है, और अगर 45 दिन में प्रथम अपीलीय अधिकारी जवाब नही देता तो द्वितीय अपील राज्य/केंद्रीय सूचना आयोग में 90 दिन के अंदर दायर कर सकते है।
लोकसूचना अधिकारी की गलती, लापरवाही, या जानकारी न देने पर सूचना आयुक्त के पास दंडात्मक कार्यवाही का अधिकार है। शुरुआत में जनसामान्य 'सूचना के अधिकार' की क्षमताओं से अनभिज्ञ थे किन्तु अब केंद्रीय/राज्य सूचना आयोगों के सामूहिक प्रयत्नों से यह आम नागरिकों तक पहुँच रहा है व सफलता का नया आयाम गढ़ रहा है ऐसा ही एक प्रकरण मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह के समक्ष 2018 में आया जब 10 रुपए की आरटीआई ने 7 माह से परेशान हो रहे विकलांग छात्र को दिलवाई मार्कशीट
यह मामला मध्यप्रदेश के टीआरएस कॉलेज, रीवा का है जिसमे आवेदक जो बीए ऑनर्स चतुर्थ सेमेस्टर का छात्र था। पीड़ित छात्र का आरोप था कि जून 2018 में घोषित परिणाम में उसे पास बताया गया था, लेकिन मार्कशीट लेने गया तो उसे भूगोल विषय मे फेल बताया गया । इसके बाद छात्र ने मार्कशीट की मूल प्रति और उत्तरपुस्तिका के जाँच के लिए आवेदन लगाया परंतु कॉलेज प्रबंधन ने कोई जवाब नही दिया। पीड़ित छात्र ने फिर सूचना आयोग में आरटीआई लगाई थी जिसमे आवेदक छात्र ने अपनी मार्कशीट की मूल प्रति की माँग की थी।
इस पर कार्यवाही करते हुए राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह जी द्वारा रीवा कलेक्टर को डीम्ड लोक सूचना अधिकारी मानते हुए 6 दिन में दिव्यांग छात्र को मार्कशीट दिलवाने का आदेश दिया। आरटीआई के ऐसे ही सफलतामक उदाहरण देश मे व्याप्त है जिन्होंने आम नागरिकों को अपनी लड़ाई लड़ने की शक्ति दी। अर्थात: सूचना का अधिकार लोकतंत्र में नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु एक महत्वपूर्ण उपकरण है।