भू-माफिया ने 50 से 70 हजार में बेची कैंसर पहाड़ी की जमीन
ग्वालियर, न.सं.। शहर के मांढरे की माता स्थित कैंसर पहाड़ी को अतिक्रमण का रोग एक ही दिन में नहीं लगा है। भू-माफिया और दबंगों ने कैंसर पहाड़ी की जमीन को चोरी छुपे बेचने का काम करीब 10 साल पहले से ही करना शुरू कर दिया था। आज इस कैंसर पहाड़ी पर अतिक्रमण की जमीन पर मकान बनाकर लोग यहां के स्थाई निवासी बन चुके हैं। उन्होंने वन विभाग की इस सरकारी भूमि पर 50 से 70 हजार देकर प्लॉट के रूप में जमीन खरीदी थी। दबंगों ने पहले कैंसर पहाड़ी की जमीन पर स्वयं कब्जा किया और बाद में उसे औने-पौने दामों में बेच कर उनके मकान बनवा दिए। यहां मकान बनाकर रह रहे लोगों की मानें तो चुनाव के समय नेता और जनप्रतिनिधि भी उनकी खैर-खबर लेने आते हैं और यह आश्वासन दिए जाते हैं कि उन्हें वोट दो, जीतने पर वह इस जमीन का उन्हें मालिकाना हक दिलाएंगे। नेताओं का यह भरोसा पाकर कैंसर पहाड़ी के आसपास की जमीन को इन दिनों सस्ते दामों पर खरीदने की होड़ सी मची है और लोग यहां मकान बना रहे हैं। लेकिन जिम्मेदार सरकारी जमीन के खेल पर प्रभावी अंकुश लगाने में नाकाम हैं। यदि जमीन के धंधे में 'जिसकी लाठी उसकी भैंसÓ का ही कानून चलता रहेगा तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति कुछ और नहीं हो सकती। इन हालातों में अवैध कब्जों की विकराल समस्या को रोक पाना मुश्किल होगा। जनप्रतिनिधियों के हस्तक्षेप के कारण जिला प्रशासन भी कैंसर पहाड़ी को मिटता देख रहा है। इस अवैध बस्ती में रह रहे लोग कौन हैं और कहां से आए हैं इसका कोई अता-पता जिला प्रशासन के पास नहीं है।
दो हजार लोगों की बस्ती बनी है
कैंसर पहाड़ी के पास अवैध अतिक्रमण करके लगभग दो हजार लोगों की बस्ती बनी हुई है। इन बस्तियों में कई मकान हुए हंै, जो सिर्फ खंडों और मिट्टी की दीवार के सहारे टिके हुए हैं। जबकि कुछ कच्चे मकानों को पक्का बनाने का काम किया जा रहा है। कैंसर पहाड़ी की अवैध बस्ती में रहने वाले मकान मालिकों पर कोई भी वैध दस्तावेज नहीं है। इन मकाल मालिकों के पास सिर्फ नोटरी के दस्तावेज है। लेकिन इन सभी के घरों में बिजली के मीटर लगे हुए हैं। यहां पर रहने वाले लोग विद्युत विभाग को हर माह बिल अदा करते हंै। यहां इस बस्ती के किसी भी रहवासियों का आंकड़ा पुलिस के पास नहीं है।
खरीद फरोख्त का चल रहा खेल
यदि गरीब और जरूरतमंद सिर पर छत का इंतजाम करने सरकारी जगह पर कब्जों करें तब तो ठीक है, लेकिन यहां जमीन पर कब्जा करके उसे बेंचने का गोरखधंधा चल रहा है। इस अवैध बस्ती में दर्जनों मकान ऐसे हैं जो सिर्फ बेंचने के लिए ही बनाए गए हैं। 25 से 50 हजार में यहां कब्जा बेंचा जा रहा है। कब्जा बेंचने के बाद यही लोग खाली पड़ी दूसरी जगह पर कब्जा कर लेते है। इस तरह लगातार अतिक्रमण विस्तार लेता जा रहा है।
निगरानी का दावा, बनते जा रहे मकान
वन भूमि पर अवैध कब्जे के संबंध में वन विभाग का कहना है कि वहां कई सालों से लोगों ने कब्जा कर रखा है, जिनके विरुद्घ नोटिस देकर कार्रवाई की जाएगी। नया कब्जा न हो इसकी सख्ती से निगरानी की जा रही है। जबकि सच्चाई यह है कि यहां लगातार वन भूमि घेरकर मकान बनते जा रहे हंै। वन भूमि को बचाने के लिए कोई निगरानी नहीं की जा रही है।