पंचकल्याणक महोत्सव के अंतिम दिन भगवान आदिनाथ को मिला मोक्ष, निकाली गजरथ फेरी उमड़ा जनसैलाब
ग्वालियर, न.सं.। भगवान महावीर स्वामी के2550 वें निर्वाण महोत्सव पर फूलबाग मैदान अयोध्या नगरी में उपाध्यायश्री विहसंत सागर महाराज व मुनिश्री विश्व सौम्या सागर महाराज के सानिध्य में श्री आदि वीर चौबीसी जिनबिंब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं गजरथ महोत्सव का रविवार को गजरथ फेरी के साथ समापन हो गया। इस मौके पर कार्यक्रम स्थल पर लोगों का जनसैलाब देखने को मिला।
सुबह जैसे ही आदिनाथ को कैलाश पर्वत से निर्वाण के साथ मोक्ष हुआ। वैसे ही उपाध्यायश्री विहसंत सागर महाराज ससंघ सानिध्य में प्रतिष्ठाचार्य सतीश जैन शास्त्री ने मंत्रउच्चारण के साथ यज्ञनायक, सौधर्म इन्द्र, कुबेर सहित इंद्र-इंद्राणियो ने विश्व शांति महायज्ञ में अग्नि प्रकाट कर पूरे विश्वशांति के लिए यज्ञकुडं मे आहूति देकर विश्व की कामना करते हुए पूर्णाहूति दी। इस पूरे आयोजन में 64 प्रतिमाओं को प्राण प्रतिष्ठित किया गया। जिन्हें घाटीगांव के जैन मंदिर के मानस्तंभ में चौबीस प्रतिमाओं को विराजित के साथ-साथ जैन तीर्थ बसों, तीन सौ किलो वजन की चौबीस प्रतिमाओं को फालका बाजार जैन मंदिर के साथ अन्य जैन मंदिरों में स्थापित की जाएगी। पंचकल्याणक कार्यक्रम में पाषाण से लेकर भगवान बनने की प्रक्रिया हुई जो गर्भ कल्याणक से शुरू होकर और मोक्ष कल्याणक के रूप तक हुई।
गजरथ रथ ने पंडाल की लगाई सात परिक्रमा:- पंचकल्याणक महोत्सव के अंतिम दिन भगवान आदिनाथ को मोक्ष प्राप्ति के उपरांत गजरथ फेरी निकाली गई। जिसमे बड़ी संख्या में जैन समाज का जनसैलाब उमड़ पडा। गजरथ रथयात्रा में सबसे आगे हाथी पर जैन ध्वज के साथ रथ के मुख्य सारथी मुकेश जैन अश्वनी जैन हनी थे। गजरथ रथयात्रा में इन्द्र-इन्द्राणी सवार होकर भगवान अदिनाथ की प्रतिमा को लेकर बैठे थे। गजरथ फेरी मे उपाध्यायश्री विहसंत सागर महाराज, मुनिश्री विश्व सौम्या सागर महाराज ससंघ एवं हजारों की संख्या में जैन समाज के लोगो ने पंडाल की सात परिक्रम लगाई गई। गजरथ के पीछे से महिलाएं भजन गाती एवं हाथो से रथ को ढकेलती हुई चल रहीं थी। उदयपुुर बैंड के भजनों पर बालक और बालिकाएं नृत्य करते हुए चल रहे थे। इस पंचकल्याणक आखरी दिन गजरथ रथ में सम्मिलित होने के लिए ग्वालियर, भिंड, इटावा, आगरा, मुरैना, शिवपुरी, झांसी, दिल्ली, डबरा, अम्बाह, घाटीगांव जैन समाज के लोग शामिल हुए। फेरी के बाद पंडाल में भगवान जिनेन्द्र का अभिषेक किया गया।