मारकंडेश्वर महादेव : मृत्यु के देवता, यमराज की होती है पूजा, ये है प्रचलित कथा
ग्वालियर।शिव को प्रिय लगने वाले सावन मास में हम आपके लिए शहर के शिव मंदिरों से जुड़े रोचक तथ्य लेकर आये है। इस सीरीज में आज हम बात करेंगे शहर के एक ऐसे शिव मंदिर की जहाँ भगवान् शिव के साथ यमराज की भी पूजा की जाती है।
यमराज जिन्हें मृत्यु का देवता माना जाता है, नाम सुनते ही सभी इंसानों के मन में भय व्याप्त हो जाता है।लोग उनका नाम भी सुनना पसंद नहीं करते। लेकिन शहर के मध्य में स्थित मारकंडेश्वर महादेव मंदिर में वर्ष हर शिव के साथ यमराज की भी पूजा की जाती है। यहाँ आने वाले भक्त यमराज की पूजा कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते है। मान्यता के अनुसार इस मंदिर में यमराज की पूजा करने से वह अकाल से लोगों की रक्षा करते है।
फूल बाग़ के समीप स्थित मारकंडेश्वर मंदिर मंदिर के गर्भगृह में स्थापित तीन मूर्तियों में से मुख्य भगवान शंकर बीच में विराजमान है। जबकि उनके ठीक सामने यमराज की मूर्ति है। शिवजी के पास ही मार्कडेय शिवलिंग है।
मारकंडेश्वर को शिव ने यमराज से बचाया -
पुरातन कथाओं में बताया गया है कि मार्कंडेय ऋषि शिव भक्त मुकुंड ऋ षि की संतान हैं। शिव के भक्त मुकुंड ऋषि के कोई संतान नहीं थी। इसलिए ऋषि ने भगवान शिव की तपस्या कर वरदान में एक पुत्र मांग लिया। शिवजी ने उनसे कहा कि आपके भाग्य में संतान सुख नहीं लिखा है, इसलिए आप कुछ और मांग लीजिये। लेकिन मुकुण्ड ऋषि की जिद के सामने भगवान् झुक गए और उन्हें एक पुत्र का वरदान दें दिया। लेकिन इस पुत्र की आयु बारह वर्ष ही निर्धारित की। इसके बाद भगवान शिव के आशीर्वाद से मुकुण्ड ऋषि के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। मुकुण्ड ऋषि ने अपने उस बच्चे का नाम मार्कण्डेय रखा।बचपन से ही तेजस्वी मार्कण्डेय को मुकुण्ड ऋषि ने सभी प्रकार की शिक्षा दी। समय बीतने के साथ बालक की अल्प आयु की चिन्ता मृकण्ड ऋषि को सताने लगी। दोनों दम्पत्ति दुःखी रहने लगे। मारकण्डेय जी को माता-पिता का दुःख न देखा गया। वे कारण जानने के लिए हठ करने लगे। बाल हठ के आगे विवश होकर मृकण्ड ऋषि ने सारा वृतान्त कह बताया। मारकण्डेय समझ गये कि ब्रह्मा की लेखनी को मिटा कर जब भगवान शंकर के आशिर्वाद से मैं पैदा हुआ हूँ तो इस संकट में भी शंकर जी की ही शरण लेनी चाहिए। मारकण्डेय गंगा-गोमती के संगम पर बैठ कर घनघोर तपस्या में लीन हो गये। शिव पार्थिव वाचन पूजा करते हुए उम्र के बारह साल बीतने को आये। एक दिन यमराज ने बालक मारकण्डेय को लेने के लिए अपने दूत को भेजा। भगवान शंकर की तपस्या में लीन बालक को देख यमराज के दूत का साहस टूट गया।
उसने जाकर यमराज को सारा हाल बताया। तब जाकर यमराज स्वयं बालक को लेन भैंसे पर सवार होकर आये। जब यमराज बालक मारकण्डेय को लेने आये, तब वह शंकर जी की तपस्या में लीन था तथा शंकर व पार्वती स्वयं उसकी रक्षा में वहाँ मौजूद थें। बालक मारकण्डेय का ध्यान तोड़ने के लिए यमराज दूर से भय दिखा प्रहार करने लगे। तब मारकण्डेय जी घबरा गये और उनके हाथ से शिवलिंग ज़मीन पर जा गिरा। शिव पार्थिव गिरते ही मृत्यु लोक से अनादि तक शिवलिंग का स्वरूप हो गया।
यमराज का त्रास देखकर भगवान शंकर भक्त की रक्षा करने हेतु प्रकट हो गये और मारकण्डेय को यमराज से बचाया और यमराज को सचेत करते हुए कहा कि "चाहे संसार इधर से उधर हो जाए, सूर्य और चन्द्रमा बदल जाए, किन्तु मेरे परम भक्त मारकण्डये का तुम कुछ अनिष्ट नहीं कर सकते। इस बालक की आयु काल की गणना मेरे दिनों से होगी। इस घटना के बाद से मारकंडेश्वर महादेव की पूजा की जाने लगी।
यह मंदिर लगभग 300 साल पुराना है। दीपावली के एक दिन पहले नरक चौदस पर यमराज की पूजा के साथ उनकी मूर्ति का अभिषेक किया जाता है। साथ ही यमराज से मन्नत मांगी जाती है, कि वह उन्हें अंतिम दौर में कष्ट न दें। सिंधिया वंश के राजाओं ने लगभग 300 साल पहले करवाई थी। इस प्राचीन मंदिर का निर्माण सिंधिया रियासत में कराया था। श्रावण मास में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है।