मशीन होने के बाद भी मूक-बधिर मरीजों को बाहर से कराना पड़ रही जांच

मशीन होने के बाद भी मूक-बधिर मरीजों को बाहर से कराना पड़ रही जांच
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ग्वालियर। प्रदेश सरकार द्वारा शासकीय अस्पतालों में पहुंच रहे मरीजों को जांच से लेकर उपचार तक मुफ्त उपलब्ध कराने का दावा किया जाता है, लेकिन अंचल के सबसे बड़े अस्पताल जयारोग्य चिकित्सालय समूह एवं जिला अस्पताल मुरार में हकीकत इसके उलट है। यहां आने वाले मरीज छोटी-छोटी जांच के लिए भटकते फिरते हैं। स्थिति यह है कि जयारोग्य चिकित्सालय में पहुंच रहे मूक-बधिर बच्चों को ऑडियोमेट्री मशीन खराब होने की बात कहते हुए वापस लौटाया जा रहा है। जिला अस्पताल में तो स्थिति और भी खराब है। यहां ऑडियोमेट्री मशीन तो है, लेकिन ऑडियोलॉजिस्ट न होने के कारण विछले एक वर्ष से मशीन धूल खा रही है और जांच नहीं हो पा रही। इस कारण मजबूरन निजी अस्पताल में जांच करानी पड़ रही है।

जानकारी के अनुसार मुरार जिला अस्पताल के जिला हस्तक्षेप केन्द्र में विगत दो वर्ष पहले लाखों रुपए खर्च कर ऑडियोमेट्री मशीन स्थापित कराई गई थी, जिससे सुनने या बोलने में दिक्तत आने वाले बच्चों की जांच शहर में ही नि:शुल्क हो सके। इसके लिए शासन द्वारा मरीजों की जांच करने के लिए एक ऑडियोलॉजिस्ट भी केन्द्र पर नियुक्त किया गया था, लेकिन विगत एक वर्ष पहले ऑडियोलॉजिस्ट ने नौकरी छोड़ दी। इस कारण बच्चों की जांच बंद हो गई और अब मशीन धूल खा रही है। इनता नहीं, जयारोग्य चिकित्सालय में मशीन भी है और ऑडियोलॉजिस्ट भी नियुक्त है, लेकिन यहां भी मशीन खराब पड़ी हुई है, जिससे अब उपचार कराने पहुंच रहे मूक-बधिर बच्चों को निजी अस्पतालों में जांच कराना पड़ रही है, जबकि यह स्थिति तब है, जब शासन द्वारा मूक-बधिर बच्चों के उपचार के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन फिर भी मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।

एक ही अस्पताल में कराए जा रहे हैं ऑपरेशन

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मनमानी यहीं नहीं थमती। मूक-बधिर बच्चे बोल और सुन सकें। इसके लिए शासन द्वारा मूक-बधिक बच्चों का नि:शुल्क कॉक्लियर इम्पलांट ऑपरेशन कराया जा रहा है, जिसके लिए शासन ने शहर के कुछ निजी अस्पतालों से अनुबंध भी किया है, लेकिन अधिकारियों और बाबुओं की सांठगांठ के चलते करीब 150 से अधिक ऑपरेशन एक ही अस्पताल में करवा दिए गए हैं। इतना ही नहीं, ऑपरेशन के लिए शासन अस्पताल को करीब 6.50 लाख रुपए भी देता है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार विभाग में बैठे कुछ चिकित्सक और बाबू सिर्फ इसलिए एक ही अस्पताल में ऑपरेशन करवा रहे हैं क्योंकि एक ऑपरेशन पर दो लाख रुपए तक का कमीशन होता है।

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