प्रवासी श्रमिकों को रास आने लगे गांव व कस्बे, लौटने लगीं खुशियां
- काम पर लौटने के लिए निहोरे कर रहे मालिक
- अनलॉक में राहत, स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध कराया जा रहा रोजगार
- राजलखन सिंह / प्रशांत शर्मा
ग्वालियर, न.सं.। लॉकडाउन के दौरान जिन मजदूरों को फैक्ट्री मालिकों ने वेतन न देकर भगा दिया था, आज वही फैक्ट्री मालिक अपने गांव लौटे श्रमिकों से काम में वापस लौटने के लिए निहोरे कर रहे हैं। लेकिन यह श्रमिक अब जाना नहीं चाहते हैं। हालांकि कुछ ऐसे भी हैं जो काम न मिलने के कारण वापस जाना चाहते हैं। अधिकांश श्रमिकों का कहना है कि वे गांव छोड़कर वापस जाना नहीं चाहते हैं। अपने परिवार के बीच दाल-रोटी खाकर ही वे अपने को सुखी महसूस कर रहे हैं।
देश में कोरोना महामारी के दस्तक देते ही 23 मार्च से शुरू हुए लॉकडाउन का सबसे अधिक असर अपने घरों से दूर दूसरे शहरों में रहकर मजदूरी कर रोजाना कमाने-खाने वाले प्रवासी मजदूरों पर पड़ा है। लॉकडाउन में जब भूखों मरने की नौबत आई तो यह प्रवासी मजदूर नंगे पांव तपती दोपहरी में अपने बाल-बच्चों के साथ घरों की ओर इस आशा में लौटे कि घर में रूखी-सूखी खाकर तो पेट भर लेंगे। लेकिन इसी बीच अनलॉक होने के बाद धीरे-धीरे व्यवस्था जब पटरी पर आने लगी तो अब उद्योग-धंधे वाले मालिक अपने यहां काम करने वाले मजदूरों को पहले से अधिक मजदूरी व विभिन्न प्रकार की अन्य सुविधाओं का लालच देकर बुला रहे हैं। मगर अधिकांश मजदूर अपने उन मालिकों के पास फिर से नहीं जाना चाहते हैं, जिन्होंने संकट के समय में उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया था। विभिन्न प्रांतों से अपने घरों को लौटे मजदूर चाहते हैं कि उनको उनके प्रदेश व क्षेत्र में ही रोजगार मिल जाये। ताकि फिर कभी ऐसी स्थिति आने पर दर-बदर नहीं होना पड़े। शहर में भवन निर्माण का कार्य कराने वाले ठेकेदार भी अब गांवों में जाकर मिस्त्री और मजदूरों को एडवांस देकर उन्हें वापस काम पर लाने लगे हैं। हालांकि ज्यादातर मजदूर घर में ही काम कर जीवन यापना करना चाहते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी श्रमिक हैं जो पेट भरने के लिए शहर में काम पर लौटने लगे हैं। इससे कहीं न कहीं उनके जीवन की निराशा छटने के साथ ही खुशियां भी लौटने लगी हैं।
रोजगार मिला तो लौटने लगीं खुशियां
टीकमगढ़ के पास अपने गांव धामना से वापस लौटे श्रमिक उत्तम वंशकार जो महाराजपुरा में ठेकेदार के यहां मजदूरी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन में गांव गए थे, लेकिन परिवार में 12 से 15 लोगों के होने के कारण दो माह में ही अनाज खत्म हो गया। इसलिए पास के शहर में आकर फिर मजदूरी तलाशने लगे। काम तो मिल रहा है लेकिन रोजाना काम नहीं मिलने से सिर्फ पेट भरने लायक ही कमा पा रहे हैं। बाल-बच्चों को लेकर एक बार फिर शहर में आकर मजदूरी कर रहे हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि जल्दी ही प्रतिदिन काम मिलने लगेगा।
गांव में दाल रोटी खाकर गुजारा बुरा समय
कोरोना महामारी को कोसते हुए मजदूर नवीन का कहना था कि इस बीमारी ने तो सबका काम ठप कर दिया है। तीन माह बाद अब जैसे-तैसे मजदूरी मिल रही है। लॉकडाउन में वापस अपने गांव टीकमगढ़ चले थे। वहां पर दाल रोटी खकर गुजारा किया। पैसे खत्म हुए तो वापस शहर में आकर काम की तलाश की। पांच दिन बाद काम भी मिल गया है।
मोदी जी ने खाते में 500 रुपए दिए थे
भितरवार की रामकली ने बताया कि ठेकेदार को भगवान भला करें, बिन ने हमें किराए के लाने पईसा देए और हम जहां मजदूरी करवे आ गए। एक काऊ मोदी हते बिन्ने हमाए खाते 500 रुपईया भेजे हते। हमें हर महीने 500 रुपए खाते मिलते हैं। ठेकेदार ही हमाओं पेट पाल रहो है।
एक दिन काम मिल रहा है तो चार दिन नहीं
चीनौर निवासी रूपचंद ने कहा कि लॉकडाउन के बाद काम जरूर मिला है, लेकिन रोज नहीं मिल रहा है। एक दिन काम करने के बाद दो दिन घर पर बैठना पड़ रहा है। लॉकडाउन में कुछ परेशानियां जरूर आईं, लेकिन अब धीरे-धीरे क्षेत्र में ही रोजगार मिलने लगा है। हमें पूरी उम्मीद है कि जल्द ही स्थिति सामान्य हो जाएगी। इसी तरह बाबूलाल ने बताया कि पांच बच्चों के साथ परिवार पालना मुश्किल हो गया है। मनरेगा के तहत अब काम मिलने लगा है। शासन-प्रशासन भी हमारी मदद कर रहा है।
ठेकेदार ने काम भी दिया और दाम भी
आंखों में आंसू लिए जातरा गांव के वृद्ध ज्ञानी बाबा ने कहा कि सरकार की तरफ से हमें मदद मिलनी चाहिए। हमारे ठेकेदार ने हमें काम भी दिया और दाम भी दिया। उन्हीं की मेहरबानी से हम अपना पेट पाल रहे हैं। प्रशासन ने हमारा पंजीयन कराया है और भरोसा दिया है कि नियमित रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा।
दस हजार लौटे, मिलने लगा घर में ही रोजगार
लॉकडाउन के दौरान जिले में करीब 10 हजार श्रमिक बाहर से आए। जिसमें से ज्यादातर दूसरे राज्यों में काम करने वाले थे। पिछले चार महीने से बेरोजगार चल रहे मजदूरों के सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी न हो इसलिए जिला प्रशासन ने इन सभी श्रमिकों को विभिन्न योजनाओं के तहत पंजीयन कराया। अब उन्हें मनरेगा, फैक्ट्रियों व विभिन्न योजनाओं के तहत रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है। 1400 मजदूरों को मनरेगा के तहत काम दिलवाया गया है। जबकि दो हजार के करीब मजदूर को प्रशासन की विभिन्न योजनाओं के तहत काम में जुट गए हैं। शेष मजदूरों को भी घर में ही काम दिलवाने की योजना है। चूंकि श्रमिक अलग-अलग विधाओं में दक्ष हैं इसलिए उनके हिसाब से काम दिलवाने का प्रयास शासन-प्रशासन द्वारा किया जा रहा है।
इनका कहना है
प्रवासी मजदूरों का विभिन्न योजनाओं के तहत पंजीयन कराया गया और उनकी दक्षता के हिसाब से वर्गीकरण किया गया। मनरेगा के तहत 1400 श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराया जा चुका है। श्रमिकों को घर में ही रोजगार मिले इसकी कार्ययोजना बनाई गई है। उनकी दक्षता के हिसाब से उन्हें काम दिलाया जा रहा है। हमारा प्रयास है कि कोई भी श्रमिक बेरोजगार न रहे।
-शिवम वर्मा,मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत