ग्वालियर मेले में 'स्व. माधवराव' के नाम की पट्टिका टूटी, चारों ओर गंदगी का साम्राज्य, देखें दुर्दशा

ग्वालियर मेले में स्व. माधवराव के नाम की पट्टिका टूटी, चारों ओर गंदगी का साम्राज्य, देखें दुर्दशा
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  • ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण का ध्यान नहीं

ग्वालियर/वेब डेस्क। ग्वालियर का व्यापार मेला सिंधिया परिवार की ही देन है। मेले के संस्थापक स्व. माधवराव सिंधिया प्रथम ने 1905 में मेले की स्थापना की थी। तब से लेकर आज तक मेला अनवरत जारी है। आज यह मेला अपने 100 वर्ष पूरे कर चुका है और करोड़ों-अरबों का कारोबार भी करके देता है। लेकिन मेला प्राधिकरण द्वारा इस मेले का रख-रखाव कतई सही ढंग से नहीं किया जा रहा है। आज स्थिति यह है कि मेला कार्यालय के मुख्य द्वार पर लगी स्व. माधवराव सिंधिया व्यापार मेले की पट्टिका से 'माधवरावÓ नाम की पट्टिका टूटकर गिर गई है, जिसे सुधारने वाला तो क्या देखने वाला तक नहीं है। यह मेला प्राधिकरण की हठधर्मिता का जीता-जागता उदाहरण देखने को मिल रहा है कि जिस परिवार ने मेले की स्थापना की उसी परिवार के नाम को ही महत्व नहीं दिया जा रहा है। यह पट्टिका पिछले कई दिनों से टूटी पड़ी है।


केन्द्रीय उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का इस मेले से बहुत लगाव है। वह समय-समय पर मेला भी जाते हैं और मेला घूमकर वहां का आनंद भी लेते हैं। कोरोना संक्रमण काल के बावजूद भी केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने व्यापारियों के कहने पर फरवरी में ग्वालियर व्यापार मेला शुरू भी करवाया और वाहनों तक पर रोड टैक्स में छूट भी दिलवाई। इस दौरान करोड़ों का भी कारोबार हुआ। लेकिन आज यह मेला दुर्दशा का शिकार हो गया है। बिजली का बिल नहीं भरने के कारण मेला प्राधिकरण की लाइट पिछले कुछ दिनों से कटी हुई है। मेले में कई बिलों के भुगतान नहीं हो रहे हैं। यहा सबकुछ भगवान भरोसे चल रहा है। मेला के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं सचिव आदि मेले की तरफ कतई ध्यान नहीं दे रहे हैं।

मेले में चारो ओर गंदगी का साम्राज्य है

ग्वालियर व्यापार मेले में पिछले कई दिनों से सब्जी मंडी का संचालन किया जा रहा है। मंडी लगने के कारण मेले में चारो ओर गंदगी का साम्राज्य है। हालत यह है कि सड़क पर चलना तक मुश्किल हो रहा है। इसके साथ ही मेला में असमाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है। कई मजदूरों ने यहां की दुकानों में अतिक्रमण कर लिया है और अपने परिवार सहित अपना जीवन यापन कर रहे हैं।

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