नारद जयंती : देवर्षि ने सत्य, न्याय और लोकहित को सदैव आगे रखा

नारद जयंती : देवर्षि ने सत्य, न्याय और लोकहित को सदैव आगे रखा
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"कोरोना काल की भीषण चुनौतियां और समाधान" विषय पर ऑनलाइन संगोष्ठी आयोजित

ग्वालियर/वेब डेस्क। मामा माणिकचन्द वाजपेयी स्मृति सेवा न्यास द्वारा आद्य पत्रकार देवर्षि नारद जयंती जी की जयंती के उपलक्ष्य में जयंती समारोह एवं व्याख्यान का आज रविवार को आयोजन किया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लश्कर जिले के संघचालक प्रहलाद सबनानी जी ने 'कोरोना काल में भीषण चुनौतियां एवं समाधान विषय पर उद्बोधन दिया। इससे पहले उन्होंने देवर्षि नारद जी के पत्रकारिता जीवन पर भी प्रकाश डाला। कार्यक्रम की अध्यक्षता दीपक सचेती ने की। संचालन सिंधी साहित्य अकादमी के निदेशक राजेश वाधवानी और आभार कार्यक्रम संयोजक नवीन सविता ने व्यक्त किया।


उन्होंने कहा की हमारी संस्कृति में जो स्थान भगवान गणेश का है वहीं स्थान पत्रकारिता के क्षेत्र में देवऋषि नारद जी का है। जिसका मुख्य कारण भगवान के मन की बात को बिना कहें समझ लेना और उसे सरलता से दूसरों तक पहुंचाना। वे अपनी बात हर किसी के सामने इस तरह रखते थे की वे उनकी सलाह को मना नहीं कर पाता था। उनकी पत्रकारिता समाज के हित में थी, जिसके कारण देवताओं से लेकर दैत्य तक उनका सम्मान करते थे। उन्हें उपनिषदों का मर्मज्ञ कहा जाता है, जिसका अर्थ है रहस्यों को जानने वाला। वे भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों के ज्ञाता थे। वे सत्य, न्याय और लोकहित को सदैव आगे रखते थे।

प्रह्लाद जी ने आगे कहा की आज के समय में भी हमें नारद जी जैसे ही लोक हित और समाज के हित में काम करने वाले पत्रकारों की आवश्यकता है। पत्रकारिता में जाति, कुल, विद्या,रूप का भेदभाव किए बिना समाज के कल्याण की भावना होनी चाहिए।

कोरोना काल में भीषण चुनौतियां -

प्रहलाद सबनानी जी ने 'कोरोना काल में भीषण चुनौतियों की चर्चा करते हुए कहा कोरोना संकट की पहली और दूसरी लहर में बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हुए। कई परिवारों ने अपने स्वजनों को खोया, वहीँ कई परिवारों को अपनों के इलाज के लिए भारी ऋण लेना पड़ा जिसके कारण वे कर्ज के बोझ तले दब गए। हामारी के काल में आर्थिक गतिविधियां रुकने के कारण नौकरी और व्यापार में नुकसान के कारण लोग अवसाद ग्रस्त हो गए। वहीँ कई बच्चों ने अपने माता -पिता दोनों को खो दिया। लाखों बच्चे आज नाथ हो गए। ऐसे सभी बच्चों को हमें अपनत्व प्रदान करना चाहिए, साथ ही उनके लालन - पालन की भी व्यवस्था करनी चाहिए।

मॉल कल्चर छोड़ें -

उन्होंने आगे कहा की महामारी की दूसरी लहर में एक समय ऐसा आया जब ऑक्सीजन, रेमेडेसिविर दवा, वेंटिलेटर, बिस्तर की कमी सामने आई है। सरकार के साथ -साथ सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक संस्थाओं ने मदद पहुंचाई। दूसरी और महामारी पर नियंत्रण पाने के लिए दोनों लहरों के दौरान लगाए गए लॉकडाउन की वजह से आर्थिक गतिविधियां रुक गई। जिससे कई लोगों ने अपनी नौकरियां खो दी, वहीं छोटे व्यापारी को भारी नुकसान उठाना पड़ा। ऐसे व्यापारियों की सहायता के लिए आवश्यक है की हम मॉल कल्चर छोड़ें और छोटी दुकानों और व्यापारियों से सामान खरीदें ताकि वे आर्थिक रूप से दोबारा सबल हो सकें।

बड़े सेक्टरों में घाटे का अनुमान -

उन्होंने बताया की केंद्र सरकार और आर्थिक एजेंसियों का अनुमान है की इस वित्तीय वर्ष में लॉकडाउन की वजह से कई सेक्टरों में बड़ा घाटा देखने को मिल सकता है। जिसमें होटल, वाहन डीलरशिप, रियल एस्टेट, खुदरा बाजार शामिल है। इन व्यवसायों से जुड़े छोटे कारोबारियों की मदद के लिए जरुरी है की हम लोकल फॉर वॉकल अपनाएं।

चुनौतियों का समाधान -

उन्होंने कोरोना महामारी से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान बताते हुए कहा की सकरात्मक विचारों से महामारी की नकरात्मकता को खत्म किया जा सकता है। इसके लिए जरुरी है की समाज के सभी वर्ग एक साथ मिलकर साथ आए और इसके लिए कार्य करें। उन्होंने कहा की विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत में महामारी के प्रसार की तुलना करें तो हम कई गुना बेहतर स्थिति में खुद को पाते है।

सकरात्मक बनाए रखें -

जिसका मुख्य कारण है की हम भगवान की कृपा कहकर खुद को सकरात्मक बनाए रखते है। इसके आलावा हमारी संस्कृति में शामिल संकल्प की दृढ़ता, सतत प्रयास, योग, ध्यान, व्यायाम, आयुर्वेदिक उपचार ने हमें बचाएं रखा है। आवशयक है की हम खुद को भी महामारी से बचाकर रखें और दूसरों को भी प्रेरित करें। इसके अलावा सकरात्मकता बने रहने के लिए जरूरी है की हम रचनात्मक कार्य करते रहें। साथ ही लोगों से मेलजोल बनाकर रखें ताकि अकेलापन महसूस ना हो। क्योंकि आज के दौर में संयुक्त परिवारों के स्थान पर एकल परिवारों की बढ़ती संस्कृति भी अवसाद का बड़ा कारण बन रही है। हमें अपनी जड़ों की ओर लौटने पर भी विचार करना चाहिए।



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