शरद पूर्णिमा पर होगी अमृत वर्षा, डबूलों में नहीं बटेगी खीर

शरद पूर्णिमा पर होगी अमृत वर्षा, डबूलों में नहीं बटेगी खीर
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ग्वालियर, न.सं.। अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं। संपूर्ण वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होता है। भगवान श्री कृष्ण ने जगत की भलाई के लिए रासो उत्सव करने के लिए इसी तिथि का निर्धारण किया था। इसी दिन से कार्तिक स्नान प्रारंभ होता है। इस रात्रि में भ्रमण करना और चंद्र किरण का शरीर पर पडऩा बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन मध्यरात्रि में चंद्रमा की रोशनी में केसरिया दूध व खीर रखकर खाने की परंपरा है। मान्यता है कि इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है तथा मनुष्य वर्षभर निरोगी रहता है।

ज्योतिषाचार्य सतीश सोनी ने बताया कि शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर शुक्रवार को मनाई जाएगी। किंतु यह तिथि 30 अक्टूबर को प्रदोष व्यापिनी तथा निश्चित व्यापिनी दोनों हैं। संयोग से इसी दिन मध्यरात्रि में अश्विनी नक्षत्र रहेगा। 27 योग के अंतर्गत आने वाला बरज योग विशिष्ट करण तथा मेष राशि का चंद्रमा रहने से आयु व आरोग्य में जातकों को श्रेष्ठ लाभ मिलेगा। इस दिन अगस्त तारे के उदय और चंद्रमा की सोलह कलाओं की शीतलता का संजोग भी जातकों को देखने को मिलेगा। पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 30 अक्टूबर शाम 5.47 बजे से होगा जो कि अगले दिन 31 अक्टूबर रात 8.21 बजे तक यह तिथि का समापन होगा।

चंद्र दोष से मुक्ति पाने का दिन है शरद पूर्णिमा

इस दिन चंद्रमा की पूजा करने से चंद्र जनित दोष से मुक्त हुआ जा सकता है। वहीं जिन जातकों को ब्लड प्रेशर, हृदय, कफ व आंखों से संबंधित बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए भी चंद्रमा की आराधना करना इस दिन श्रेष्ठकारी रहता है। धर्म शास्त्रों की मान्यता के अनुसार इस दिन माता लक्ष्मी का भ्रमण पृथ्वी लोक पर रहता है। माता लक्ष्मी इन्द्र देव के साथ यह देखने आती हैं कि इस दिन रात्रि जागरण कर मेरी कौन-कौन उपासना कर रहा है। इस दिन लक्ष्मी जी की रात्रि में पूजा करने से सभी कर्जोंे से मुक्ति मिलती है। इसलिए इस रात्रि को श्रीसूक्त का पाठ, कनकधारा स्त्रोत का पाठ एवं विष्णु सहस्त्रनाम का जाप कर्ज से छुटकारा दिलाता है।

अचलेश्वर व सनातन धर्म मंदिर में सूक्ष्म रूप से बनेगी शरद पूर्णिमा

कोरोना संक्रमण को देखते हुए श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर एवं श्री सनातन धर्म मंदिर में शरद पूर्णिमा को बहुत ही सूक्ष्म रूप से मनाया जाएगा। अचलेश्वर मंदिर में डबूलों में खीर का वितरण कतई नहीं होगा। दो क्विंटल दूध की खीर बनाकर भगवान भोलेनाथ को भोग लगाकर आरती उपरांत भक्तों को वितरित की जाएगी। वहीं सनातन धर्म मंदिर में भी खीर का वितरण 30 अक्टूबर को सूक्ष्म रूप से होगा।

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