8 कश्मीरी छात्रों पर कार्रवाई, चहेते 22 शोधार्थियों को बचाया

8 कश्मीरी छात्रों पर कार्रवाई, चहेते 22 शोधार्थियों को बचाया
X

कश्मीर में रहकर करते थे नौकरी, उसके बाद भी अवार्ड कर दी उपाधि

ग्वालियर/न.सं.। जीवाजी विश्वविद्यालय ने गलत शपथ पत्र देने एवं विवि को गुमराह करने वाले पीएचडी के आठ कश्मीरी छात्रों के प्रवेश निरस्त कर दिए हैं, लेकिन 22 छात्रों को इसमें बचा लिया गया। जबकि पीएचडी कोर्स वर्क के समय यह छात्र भी कश्मीर में अन्य जगह नौकरी करते थे। इससे विवि पर आरोप लग रहे हैं कि वह चेहरा देखकर कार्रवाई कर रहा है।

जीवाजी विश्वविद्यालय की 2014 पीएचडी प्रवेश परीक्षा में हिन्दी विषय में 30 कश्मीरी छात्र शामिल हुए थे और कोर्स वर्क के लिए इनका चयन भी हुआ।

इनमें से ज्यादातर शोधार्थियों का शोध केंद्र एमएलबी महाविद्यालय में बनाया गया। इनमें से आठ शोधार्थियों ने विवि को गलत शपथ पत्र दिया और बताया कि वह कोर्स वर्क के समय कहीं पर नौकरी नहीं कर रहे हैं। यह शोधार्थी कश्मीर में उस सयम नौकरी कर रहे थे। इन शोधार्थियों ने झूठा शपथ पत्र देकर विवि को गुमराह किया और इसी आधार पर जीवाजी विवि ने शोधार्थी शाजिद अहमद भट, आजाद अहमद मल्ला, मंजूर अहमद वानी, मुसादिक मकबूल, मुजासिर गनी, ताजामुल इस्लाम मलिक, बसाराई अली एवं एक अन्य शोधार्थी का प्रवेश निरस्त कर दिया। जबकि इन शोधार्थियों के अलावा 22 अन्य कश्मीर छात्र भी यहीं से कोर्स वर्क कर रहे थे और उसी दौरान वह कश्मीर में नौकरी कर रहे थे। जिन शोधार्थियों के प्रवेश निरस्त किए गए हैं उनमें से कुछ छात्रों ने बताया कि हमें बलि का बकरा बनाया गया है। हमारे साथ 22 अन्य छात्र भी नौकरी कर रहे थे, लेकिन उनका प्रवेश निरस्त नहीं किया गया। चूंकि वह विवि के कुछ शिक्षकों के चहेते थे इसलिए पीएचडी की उपाधि अवार्ड कर दी गई।

कुलपति के बेटे की उपाधि पर भी उठे थे सवाल

जीवाजी विवि के तत्कालीन कुलपति प्रो. एम किदवई के बेटे मजाहिल किदवई की पीएचडी उपाधि को लेकर भी सवाल उठे थे। आरोप यह लगे थे कि वह दिल्ली में नौकरी करने के साथ-साथ विवि से कोर्स वर्क भी कर रहे हैं, लेकिन उपस्थिति दर्ज कराने नहीं आते। विवि ने इस मामले को लेकर जांच समिति भी गठित की थी और दिल्ली के एक महाविद्यालय से उनकी उपस्थिति भी मंगाई गई। जिसमें यह बात सामने आई कि उन्होंने नौकरी करने के समय ही कोर्स वर्क किया था। इस मामले ने काफी तूल पकड़ा और कुछ लोगों ने इसे मौजूदा कुलपति की द्ववेशभावना भी बताया। हालांकि बाद में उन्हें पीएचडी की उपाधि अवार्ड कर दी गई।

सख्ती से जांच हुई तो खुलेंगी परतें

जीवाजी विवि परिक्षेत्र से पीएचडी करने वाले शोधार्थियों की उपाधि पर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं। आरोप यह लगते थे कि अपात्र लोगों को पीएचडी कराई जाती है और बिना शोधकार्य किए उन्हें अवार्ड कर दी जाती है। इसमें मार्गदर्शकों पर भी कई बार गंभीर आरोप लग चुके हैं। यदि इस मामले की सख्ती एवं पूरी पारदर्शिता से जांच होती है तो पीएचडी के इस गोरखधंधा में बड़े स्तर पर खुलासा होगा। जिसमें कुछ मार्गदर्शकों के कारनामें भी उजागर हो सकते हैं। हालांकि इस गोरखधंधा में शिक्षकों से लेकर विवि के अधिकारियों तक की संलिप्पता रहती है।

Next Story