मुहर्रम के महीने में सिंधिया परिवार में नहीं होता कोई शुभ काम, जानिए क्या है कारण
ग्वालियर। सिंधिया राजवंश आधुनिक ग्वालियर का निर्माता है। ढाई सौ से अधिक सालों तक सिंधिया परिवार ने ग्वालियर की संस्कृति, परंपरा और विरासत को संजोया एवं संवारा है। सिंधिया परिवार से जुड़े कई किस्से इतिहास में दर्ज है। ऐसे ही एक किस्सा मुहर्रम मास से जुड़ा हुआ है। मुहर्रम मुसलमानों के लिए गम का महीना होता है। इस माह में उनके यहां कोई शुभ कार्य नहीं होता। ऐसे में सिंधिया राजघराना भी रियासत काल में मुस्लिम समुदाय की भावनाओं का आदर करता था।इसलिए इस माह में सिंधिया परिवार ग्वालियर में कोई शादी-विवाह या शुभ कार्य नहीं करता था। यदि कोई शादी होती भी थी तो वो शहर से बाहर 100 किमी की दूरी पर हुआ करती थी।
अनजान मुसलमान से मदद का किस्सा है मशहूर -
मुहर्रम माह में शादी ना करने की शुरुआत पानीपत के युद्ध से हुई थी। इस युद्ध में महादजी शिंदे बुरी तरह घायल हो गए थे, उस समय एक मुस्लिम युवक ने उनकी जान बचाई थी। वह अनजान मुस्लिम युवक सिंधिया को एक बैलगाड़ी में डालकर दक्क्न ले गया था। सिंधिया परिवार आज तक शख्स का ये एहसान नहीं भुला है, इसलिए ये परंपरा निभाता है।
सूफी संत ने की मदद
इसके अलावा एक और किस्सा प्रसिद्ध है, जिसके अनुसार सूफी संत मंसूर शाह ने कभी सिंधिया परिवार की मदद की थी। इसी के बाद से आज भी जब मुहर्रम का ग्वालियर शहर में जब कोई कार्यक्रम होता है तो सिंधिया परिवार का मुखिया उसमें शिरकत करता है और कार्यक्रम का शुभारंभ करता है।
धर्म के आधार भेदभाव नहीं -
माना जाता है की सिंधिया राजघराना शुरुआत से परंपराओं में धार्मिक आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता। इसलिए रियासत काल में कभी परिवार ने धार्मिक विभेद नहीं किया। यही कारण है की राजशाही का अंत हुए भले दशकों बीत गए लेकिन परिवार के प्रति ग्वालियर-चंबल अंचल में लोगो के मन में सम्मान आज भी कायम है।