जिलाधीश ने स्कूल संचालकों, पुस्तक प्रकाशकों और विक्रेताओं के एकाधिकार को समाप्त करने निकाला आदेश

जिलाधीश ने स्कूल संचालकों, पुस्तक प्रकाशकों और विक्रेताओं के एकाधिकार को समाप्त करने निकाला आदेश
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ग्वालियर, न.सं.। निजी स्कूलों में शिक्षण सत्र शुरू होने के साथ ही किताब, कॉपी, गणवेश आदि के नाम पर लूट-खसौट शुरू हो गई है इसे देखते हुए जिलाधीश अक्षय कुमार सिंह ने स्कूल संचालक, पुस्तक प्रकाशन और सामग्री की आपूर्ति करने वालों पर लगाम लगाने के लिए शनिवार को एक आदेश जारी किया है जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि बच्चों के अभिभावकों को किसी दुकान विशेष से कोई भी सामाग्री अथवा गणवेश लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह प्रकाशक और विक्रेता किसी भी स्कूल में दिखाई नहीं देना चाहिए। इस आदेश से अभिभावकों को जबरन मनमाने दामों पर गणवेश, पुस्तक, स्टेशनरी, बैग आदि बेचने वालों में हडक़ंप है।

सीबीएसई स्कूलों में नया शिक्षण सत्र शुरू हो गया है। कॉपी-किताबों की दुकान पर अभिभावकों की भीड़ है। वहीं लूट-खसोट के इस दौर में नर्सरी से यूकेजी का सेट 1500 से 2250 और कक्षा 1 से 8 तक का सेट 2000 से 3000 तक में आ रहा है। यह सेट अलग-अलग स्कूलों की अलग-अलग कक्षाओं के आधार पर भिन्न-भिन्न दामों पर बाजार में बिक रहे हैं। इन सेटों में स्कूल संचालकों का भी मोटा कमीशन बंधा हुआ है। एक सेट में मात्र 6 से 8 किताबें दी जा रही हैं। जबकि कॉपी सेट के दाम अलग से लिए जा रहे हैं। ऐसे में अभिभावकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है और मजबूरी में इन्हें खरीदना पड़ रहा है। अभिभावकों की इसी परेशानी को ध्यान में रखते हुए और ग्राहक पंचायत द्वारा दिए हुए ज्ञापन को संज्ञान में लेते हुए जिलाधीश अक्षय कुमार सिंह ने स्कूल संचालकों, पुस्तक प्रकाशकों और विक्रेताओं के एकाधिकार को समाप्त करने के आदेश जारी कर दिए हैं। इस आदेश से अभिभावकों के साथ जो लूट खसौट हो रही है उससे इन्हें काफी हद तक राहत मिलेगी।

अवहेलना पर स्कूल संचालक, प्राचार्य और सदस्य होंगे दोषी:-

जिलाधीश अक्षय कुमार सिंह के आदेश में कहा गया है कि शहर के निजी स्कूल संचालकों द्वारा छात्रों एवं पालकों को निर्धारित दुकानों से ही गणवेश, जूते, टाई, किताबें, कापियां आदि खरीदने के लिए बाध्य किया जा रहा है। स्कूल संचालकों व व्यवसायियों की सांठगांठ से इस प्रकार के कृत्य से विद्यार्थियों तथा उनके पालकों में रोष व्याप्त है। साथ ही गरीब वर्ग के पालकों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। यह तथ्य भी सामने आया है कि निजी विद्यालयों के संचालक स्टेशनरी और गणवेश के विक्रेताओं से सांठ-गांठ कर पालकों का शोषण करते आ रहे हैं। जो व्यापारी स्कूल संचालकों को अधिक कमीशन देता है उसे अधिकृत कर कॉपी और किताबें बेचने दिया जाता है। सेट की कीमत बढ़ाने के लिए अनावश्यक किताबों को सेट में जोड़ दिया जाता है। दण्डाधिकारी ने अपने आदेश में कहा कि जिला ग्वालियर दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा -144 (1)(2) के तहत स्कूल संचालकों, पुस्तक प्रकाशकों एवं विक्रेताओं के एकाधिकार को समाप्त किया जाता है। जिला दण्डाधिकारी ने कहा कि यह आदेश 01 अप्रैल 2023 से लागू है। इस आदेश का उल्लंघन करने पर भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 188 के अंतर्गत कार्यवाही की जाएगी। आदेशों की अवहेलना होने पर संबंधित विद्यालय संचालक और प्राचार्य के साथ ही शाला प्रबंधक/बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के समस्त सदस्य भी दोषी होंगे।

आदेश के मुख्य बिन्दु:-

  • - स्कूल संचालक और प्राचार्य स्कूल में पुस्तकों की सूची परीक्षा परिणाम के पूर्व अपने स्कूल की वेबसाइड पर अपलोड करेंगे या सूचना पटल पर चस्पा करेंगे।
  • - अभिभावकों को सूची-बद्ध पुस्तकें परीक्षा परिणाम अथवा उसके पूर्व क्रय हेतु बाध्य नहीं करेंगे। अभिभावक 15 जून तक पुस्तके क्रय कर सकते हैं।
  • - अभिभावकों को अन्य विषयों की पुस्तकें जैसे नैतिक शिक्षा, सामान्य ज्ञान, कम्प्यूटर आदि की निजी प्रकाशकों/मुद्रकों द्वारा प्रकाशित पुस्तकें करने हेतु बाध्य नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही पुस्तकों के प्रचार-प्रसार हेतु निजी प्रकाशक स्कूलों में कतई प्रवेश नहीं करेंगे। वहीं गणवेश आदि खरीदने के लिए अभिभावकों को बाध्य नहीं किया जाएगा।
  • - अभिभावकों को पूरा सेट खरीदने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। अगर किसी के पास पुरानी किताबें हैं तो उन्हें केवल आवश्यकता की पुस्तकें ही उपलब्ध कराई जाएं।
  • - कॉपियों पर ग्रेड किस्म, साईज, मूल्य, प्रष्ठ संख्या स्पष्ट रूप से अंकित हो। कॉपी-किताब पर चढऩे वाले कवर पर स्कूल का नाम अंकित नहीं होना चाहिए।
  • - स्कूल की गणवेश कम से कम तीन वर्ष तक परीवर्तित नहीं की जाए। स्कूल वार्षिकोत्सव अन्यथा किसी अन्य आयोजन के लिए किसी प्रकार की वेशभूषा को विद्यार्थी और उनके अभिभावकों को क्रय करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।

दो से तीन हजार रुपए में बिक रहा किताबों का सेट:-

स्वदेश ने कई निजी स्कूलों में भ्रमण के बाद पाया कि इन स्कूल संचालकों द्वारा अभिभावकों को कॉपी और किताबों की सूची थमा दी है। इसके साथ ही दुकानों के नाम भी सुझा दिए हैं, यह किताबें केबल इन्ही दुकानों पर मिलेंगी। पाटनकर बाजार और विक्टोरिया मार्केट में बड़ी संख्या में अभिभावक इनकी खरीदारी करने जा रहे हैं। इसके अलावा कागज महंगा होने का हवाला देकर कॉपियों के दाम भी बढ़ा दिए हैं। 500 से 700 रुपए कॉपियों के लिए जा रहे हैं। अभिभावक दुकानों पर पहुंचते हैं और स्कूल का नाम लेते ही उन्हें पूरा का पूरा सेट थमा दिया जाता है।

किताबों के सेट की कीमत:-

कक्षा कीमत

  • नर्सरी 1249
  • एलकेजी 1305
  • यूकेजी 1675
  • एक 1683
  • दो 1748
  • तीन 1818
  • चार 2053
  • पांच 1903
  • छह 1802
  • सात 1847
  • आठ 1872

(नोट: अलग-अलग स्कूलों में अलग-अलग कीमत के आधार पर सेट बेचे जा रहे हैं )

50 रुपए की कांपी हुई 60 रुपए में:-

कागज महंगा होने के कारण ब्राण्डेड कंपनी की 170 पेज की जो कॉपी 50 रुपए में आती थी वह आज 55 से 60 रुपए में आ रही है। वहीं 164 पेज की कॉपी जो पहले 30 से 35 रुपए में आती थी वह आज 45 रुपए में बिक रही है। इसी के साथ रबर, पेंसिल, शॉपनर आदि भी 10 से 15 प्रतिशत महंगे हो गए हैं। बाजार में बिकने वाले ब्राण्डेड स्कूली बैग, शूज, बॉटल, टिफिन भी 10 से 20 प्रतिशत महंगे हैं। लॉकल वस्तुओं के दाम ब्राण्डेड से कुछ कम हैं।

गणवेश में भी हो रही है कमाई:-

कॉपी-किताबों के साथ अभिभावकों को गणवेश के नाम पर भी लूट जा रहा है। हो यह रहा है कि स्कूल संचालकों ने गणवेश के लिए भी अपनी-अपनी दुकानें निर्धारित कर दी हैं। मजबूरन में अभिभावकों को यहां से इन्हें महंगे दामों पर खरीदना पड़ रहा है। स्कूल संचालकों को भी इसमें मोटा कमीशन मिल रहा है। मतलब यह है कि शिक्षा इतनी महंगी हो गई है कि एक आम व्यक्ति को अपने बच्चों को पढ़ाना किसी चुनौती से कम नहीं है। अभिभावक मजबूरन चुपचाप होकर अपने बच्चों को महंगी शिक्षा दिला रहे हैं।

इनका कहना है:-

‘सरकारी नियमों का कहीं कुछ पता नहीं हैं। अच्छी शिक्षा देने के नाम पर अभिभावकों को लूटा जा रहा है। आठ-आठ किताबें तीन-तीन हजार रुपए में दी जा रही है, जबकि वास्तव में इनकी कीमत एक हजार रुपए भी नहीं है। ’

सुधीर सप्रा

अध्यक्ष, पेरेंट्स एसोसिएशन

‘कागज महंगा होने के कारण कॉपी, किताब, स्टेशनरी सब कुछ महंगा हो गया है। यहां तक कि बच्चों के बैग, ड्रेस, बॉटल आदि सब महंगे हो गए हैं। ’

धनराज सेजवानी

कॉपी-किताब बिक्रेता

‘क्या करें बच्चों को पढ़ाना है तो स्कूल संचालकों की माननी ही होगी। हम अपने खर्चों में कटौती कर सकते हैं लेकिन बच्चों को अच्छी शिक्षा से वंचित नहीं कर सकते हैं।’

अंजलि शिवहरे

अभिभावक

अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने दिया ज्ञापन:-

निजी स्कूल संचालकों द्वारा कॉपी, किताबों और गणवेश खरीदने की मनमानी पर अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के एक प्रतिनिधि मण्डल ने जिलाधीश अक्षय कुमार सिंह को एक ज्ञापन भी सौंपा। ज्ञापन में कहा गया कि स्कूल संचालकों ने शिक्षण सामाग्री की खरीदारी करने के लिए दुकानों को तय कर दिया है जिससे यह दुकानदार अभिभावकों से मोटी राशि वसूल रहे हैं। अभिभावक इतनी महंगी किताबें और गणवेश खरीदने से परेशान हैं। अत: इन स्कूल संचालकों के विरूद्ध दण्डात्मक एवं अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। इस मौके पर जिलाधीश ने उचित कार्रवाई करने का आश्वासन दिया था। ज्ञापन देने वालो में अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत मध्य भारत प्रांत सचिव लोकेंद्र मिश्रा, जिला सचिव सुनील श्रीवास्तव, जिला उपाध्यक्ष कीरत राणा मुख्य रूप से उपस्थित रहे।

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