लापरवाही : दो साल से गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय में सड़ रहे हैं देहदान करने वालों के अंग
ग्वालियर। शहर के गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय के शरीर रचना विज्ञान विभाग में देहदान द्वारा प्रयुक्त मानव अंगों की दुर्गति का मामला प्रकाश में आया है। इसे महाविद्यालय प्रशासन की लापरवाही कहें या संबंधित अधिकारियों की गैरजिमेदारी जो देहदान करने वालों की अंतिम इच्छा की भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं। क्या यह मानवीयता का घोर अपमान नहीं है कि मानव कल्याण के लिए जिन्होंने अपना शरीर त्यागने से पूर्व चिकित्सा छात्रों को शारीरिक संरचना के ज्ञानवर्धन के लिए अपने अंग दान किए थे, उन्हें कचरों के डिब्बों में सड़ाया-गलाया जा रहा है।
मानव संरचना के गूढ़ रहस्यों का पता लगाने के लिए ही 'देहदान महाकल्याण का नारा लगाया गया था। इस अभियान का असर इतना ज्यादा हुआ कि लोग जिंदा रहते देहदान के प्रति सोचने लगे। किसी ने अगर अपनी आंखें दान की तो इसलिए कि आंखों के इलाज के लिए नए अनुसंधान किए जा सकें। किसी ने किडनी तो किसी ने मस्तिष्क दान किया ताकि चिकित्सा छात्र मानव संरचना के गूढ़ रहस्यों से परिचित हो सकें। यहां संवेदनशील सवाल है कि आखिर अपनी देहदान से पहले इन महादानियों ने क्या इस बात की कल्पना की होगी कि उनके अंगों को इस तरह कचरों के डिब्बों में सड़ा-गलाकर फेंक दिया जाएगा? निश्चित रूप से मामला इतना गंभीर है कि इस पर एक उच्चस्तरीय जांच हो और पता लगाया जाए कि वो कौन लोग हैं जो इस अमानवीय त्रासदी को अंजाम दे रहे हैं। यही नहीं पिछले दो साल से यह देहदान करने वालों के यह अंग एक कोने में रखे ड्रमों में सड़ रहे हैं जिससे महाविद्यालय में सड़ांध भी फैल रही है।
संक्रमण का खतरा बढ़ा -
गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय के शरीर रचना विज्ञान विभाग में कचरों के डिब्बों में देहदान के अंगों के निष्पादन नहीं किए जाने से संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है। उल्लेखनीय है कि देहदान के बाद ऐसे शवों की महाविद्यालय के इस विभाग में शवों के विभिन्न अंगों की चीर-फाड़ के बाद चिकित्सा छात्रों को एक-एक अंग से जुड़े विषय पर अध्ययन कराया जाता है। बाद में मापदंडों के अनुसार शवों के अवशेष का निष्पादन किया जाता है। किन्तु विभाग में यह प्रक्रिया अधूरी रहने से पिछले ढाई साल से शवों के अंग ड्रमों में भरे हुए हैं, जो भारी असंवेदना का विषय है। इससे महाविद्यालय में संक्रमण फैलने का खतरा भी मंडरा रहा है।
अंगों का निष्पादन जरूरी -
पिछले ढाई वर्षों से नहीं कराया गया मानव अंगों का निष्पादन गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय में एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान छात्रों को प्रथम वर्ष में ही कैडेवर शरीर रचना विज्ञान विषय पढ़ाया जाता है। जिसके अंतर्गत उन्हें शव विच्छेदन करना भी सिखाया जाता है। चिकित्सा छात्र शव के हाथ, पैर, पेट आदि का एक-एक कर चरणबद्ध तरीके से ऑपरेशन करते हैं। बाद में अंगों का निष्पादन कराया जाता है, जिसकी जिम्मेदारी महाविद्यालय प्रबंधन की होती है। लेकिन जिम्मेदारों की अनदेखी और लापरवाही के कारण शवों से निकलने वाले अंग पिछले ढाई वर्षों से ड्रमों में भरे हुए हैं। प्रबंधन ने इन मानव अंगों का निष्पादन नहीं कराया है। वहीं इस मामले में महाविद्यालय प्रबंधन का कहना है कि कोरोना संक्रमण के कारण कक्षाएं ऑनलाइन हो रही थीं इसलिए मानव अंगों का निष्पादन नहीं कराया जा सका। एक-दो दिन में इन अंगों का निष्पादन करा दिया जाएगा।
इस बेकदरी से घटेगी देहदान की संख्या -
महाविद्यालय में कोरोना संक्रमण के कारण वैसे ही देहदान करने के लिए लोग आगे नहीं आ रहे हैं और अब शवों के अंगों की हो रही बेकदरी से देहदान की संख्या भी घटेगी। जिसका सीधा असर चिकित्सा छात्रों पर पड़ेगा। लेकिन इन सबसे जिमेदारों का कोई लेना देना नहीं है।