कोरोना से कम रोजगार छिनने और भुखमरी का सता रहा डर, नमक-रोटी खा लेंगे पर परदेश नहीं जाएंगे

कोरोना से कम रोजगार छिनने और भुखमरी का सता रहा डर, नमक-रोटी खा लेंगे पर परदेश नहीं जाएंगे
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प्रवासी मजदूरों से पटा राष्ट्रीय राजमार्ग, जिंदगी दांव पर लगाकर लौट रहे गांव

ग्वालियर। अदृश्य महामारी कोविड-19 की वजह से देशभर के मजदूरों एवं नौकरी-पेशा लोगों को दूसरे शहर छोड़कर अपने घर जाने पर मजबूर होना पड़ रहा है। इसके लिए वे कोरोना से कहीं अधिक भयभीत रोजगार और भुखमरी को लेकर हैं। पिछले पचास से साठ दिन तो उन्होंने परदेश में काट लिए किंतु अब उनकी गुजर-बसर नहीं हो पा रही। यही कारण है कि ग्वालियर के आसपास के हाईवे पर मजदूरों की घर वापिसी का सिलसिला लगातार जारी है। ये लोग पैदल, ऑटो, दो पहिया वाहन, ट्रक, टै्रक्टर-ट्राली, जुगाड़ के वाहन आदि से चौबीसों घंटों बिना खाए-पिए जिंदगी दांव पर लगाकर चले जा रहे हैं। यदि रास्ते में कहीं खाना-पानी मिल जाता है तो उससे दो-दो दिन का काम चला लेते हैं। उन्हें चिंता सिर्फ अपनी जन्मभूमि पहुंचने की है। ऐसे अनेक मजदूर और नौकरी-पेशा लोगों से अलग-अलग हाईवे पर मंगलवार को स्वदेश टीम ने उनका हाल जाना।

इन दिनों दिल्ली-झांसी, आगरा-मुम्बई(ग्वालियर-शिवपुरी मार्ग) राष्ट्रीय राजमार्ग पर दिख रहा नजारा अचंभित करने वाला है। बड़ी संख्या में मजदूर सड़क पर नजर आ रहे हैं। इनके पैरों में न चप्पल है और न ही इनके बदन को ढंकने के लिए पूरे कपड़े हैं। चिलचिलाती धूप में कुछ पैदल तो कुछ जो भी वाहन मिला, उसमें सवार होकर चले जा रहे हैं। पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ है। हाथों में मासूम बच्चे तो वाहन में इंसानों से ज्यादा घर-ग्रहस्थी का सामान बंधा है। ये मजदूर मूलरूप से अंचल के अलावा मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान के हैं, जो लॉकडाउन की वजह से देश के विभिन्न राज्यों गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार, दिल्ली, पंजाब में इसलिए फंसे थे, क्योंकि ये लोग उक्त राज्यों में जीवन यापन कर रहे थे। जब इनके पास खाने-पीने को कुछ नहीं बचा, रोजगार भी छिन गया और भीख मांगने जैसी नौबत आ गई, तब ये लोग बिना किसी की परवाह किए अपने गांव की ओर चल पड़े। पिछले कुछ समय से हाईवे से निकल रहीं काली-पीली टैक्सी, ऑटो, ट्रक, झुंड में निकल रहीं मोटरसाइकिल और साइकिल से भी लोग चले जा रहे हैं। शहरी सीमा से गुजरने पर इन्हें सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं और कुछ जगह एनजीओ द्वारा जो दिया जा रहा है, वही खा रहे हैं। कई बार तो एक पहर का भोजन भी नहीं मिल रहा, उसके बाद भी भूखे-प्यासे चल रहे हैं। प्यास लगने पर हैंड पम्प देखकर गांव में रुकते हैं तो कुछ सनकी लोग मिल जाते हैं, जो कोरोना के भय से पानी भरने से मना कर देते हैं। इन्हें कोरोना से कम बल्कि रोजगार छिनने और भुखमरी का ज्यादा डर है।




दिन में लगे धूप के थपेड़े, भूखे रहकर काटीं रातें-

साहब हम दिन में कम चलना चाहते हैं, हम लोग रात में सफर ज्यादा करते हैं। लेकिन रात में हमें कहीं खाने-पीने को नहीं मिलता। दिन में कई जगह संस्थाएं, एनजीओ खाने-पीने की सामग्री उपलब्ध करवा देती हैं। यह कहना था कि पुणे से बिजनौर से जा रहे एक परिवार का। पनिहार टोल नाके पर मुंबई में चलने वाली काली-पीली ऑटो नजर आई। तीन पहिया वाले ऑटो में 6 से 7 सवारियां थीं। तेज धूप के कारण सवारियां पेड़ की छांव के नीचे आराम कर रही थीं। तभी स्वदेश टीम ने जब इन लोगों से बात की तो इनके परिवार के मुखिया अकरम ने बताया कि वह पुणे में ऑटो चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे। लेकिन लॉकडाउन के कारण हम अपने घरों में ही कैद हो गए। जब हमारे पास पैसे नहीं बचे तो हमने सोचा कि अपने घर ही चले जाना ठीक है। साहब हम लोग 16 मई को पुणे से निकले थे, एक दिन में ऑटो 200 से 250 किमी ही चल पाता है। उन्होंने कहा कि ऑटो सीएनजी से चलता हैं, लेकिन हाईवे पर सीएनजी नहीं मिलती। पेट्रोल मिलता है, इसलिए ऑटो को पेट्रोल में कन्वर्ट करके ही बिजनौर जा रहे है । साहब अब जीना बहुत मुश्किल हो गया है। अब भूखे मरने की नौबत आ गई है। अब अपने गांव में भी कुछ काम करेंगे।

किराए में दे दिए सारे पैसे, पानी के सहारे काटी दो रातें-

महाराष्ट्र के सोलापुर में बस की व्यवस्था कर 33 युवक उत्तराखंड के ऋषिकेश जा रहे थे। ये सभी युवक उत्तराखण्ड के अलग-अलग गांवों के हैं और सोलापुर मे अलग-अलग होटलों में कार्यरत थे। इन सभी युवकों ने पैसे एकत्रित कर एक बस की व्यवस्था की। इसके एवज में युवकों से ट्रेवल संचालक ने 1.70 लाख रुपए लिए हैं। जब सभी युवक सोलापुर से निकले तो एकाध जगह उन्हें खाना मिला, शेष उनके द्वारा साथ में रखे बिस्किट और नमकीन के पैकेट से काम चला रहे हैं। दो दिनों तक पानी के सहारे रहकर जब युवक बरई-पनिहार पहुंचे, तब जाकर उन्हें खाना-पानी नसीब हुआ। वह भी दिन भर की लंबी यात्रा के बाद। मनोज सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें महाराष्ट्र में बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ा। जितने पैसे थे वे खाना-पानी में खर्च हो गया, लेकिन जब खाने-पीने के लिए कुछ नहीं बचा तो बचे हुए पैसे लेकर अपने घर को चल दिए। क्योंकि वहां पर किसी प्रकार की मदद नहीं हो रही थी। घर की चिंता थी और जीवन जीने की मजबूरी भी। ऐसे में जिंदगी रही तो काम कर ही लेंगे, यह सोचकर सभी अपने-अपने घर को चल दिए। इसके लिए पहले उन्हें कई परेशानियों से गुजरना पड़ा लेकिन अंत में प्रशासन ने उन्हें घर जाने की मंजूरी दे ही दी।

वाहन नहीं मिले तो मोटरसाइकिल को बनाया रिक्शा-

कोरोना महामारी को लेकर हुए लॉकडाउन के बीच महानगरों में फंसे मजदूर परिवार अब अपने घर जाने के लिए कैसा भी खतरा मोल लेने से पीछे नहीं हट रहे हैं। मंगलवार को बानमौर चेक पोस्ट पर ऐसा ही नजारा देखने को मिला। जहां हरियाणा के सिरसा से एक ही परिवार के छह सदस्य तीन मासूम बच्चों के साथ जुगाड़ की गाड़ी से ग्वालियर की सीमा में प्रवेश करने के लिए खड़े थे। इन्हें पुलिस वालों ने रोक लिया था। सिरसा से लौट रहे विक्रम निवासी देवरी भितरवार ने बताया कि सिरसा में वह टिक्की(पानी-पुरी) की रेहड़ी लगाते थे। लेकिन लॉकडाउन से सब चौपट हो गया। बमुश्किल 30 दिन तक जोड़ी हुई रकम से घर का खर्चा चला, लेकिन जब मकान मालिक ने किराया मांगना शुरू किया तो हमने अपनी मोटरसाइकिल के एक हिस्से को हटवाकर उसमें ट्रॉली लगवा दी। जिसमें हम सभी लोग सवार होकर 16 मई को सिरसा से निकले थे। हमें रास्ते में कहीं भी कोई परेशानी नहीं हुई। करीब सात सौ किमी की दूरी कैसे तय होगी यह भय सता रहा था।




मोटरसाइकिल से निकले 1900 किमी के सफर पर-

नमक-रोटी खा लेंगे पर अब शहर लौटकर नहीं जाएंगे। यह कोई कहानी नहीं बल्कि हिंडौन जिले के युवकों की जुबानी है। जो मैसूर से अपनी छह मोटरसाइकिलों से धौलपुर के पास हिंडौन अपने घर जा रहे थे। स्वदेश टीम की नजर दोपहर में जब बानमौर वायपास से गुजरते समय इन युवकों की मोटरसाइकिलों पर पड़ी तो टीम ने इन्हें हाथ देकर रोका। जिसमें श्यामसुंदर अपने सिर पर हेलमेट लगाए थे। उनके पीछे उनका भाई राजेश भी बैठा था। साथ ही अन्य मोटरसाइकिलों पर अजरुद्दीन व अमित सहित 12 अन्य युवक भी रुक गए। इस दौरान श्याम सुंदर ने कहा कि भइया सिर्फ इतना ही जान लो कि अब घर जाकर नमक-रोटी खाएंगे पर परदेश नहीं जाएंंगे। उन्होंने बताया कि वह मैसूर में मार्बल का काम करते हंै, लेकिन लॉकडाउन लगते ही सारे कारखाने बंद हो गए। जिसके बाद 15 मई को वह मैसूर से रवाना हुए। उन्होंने बताया कि 1900 किमी वह मोटरसाइकिल चला चुके हैं। साथ में रहे राजेश ने बताया कि सही सलामत घर पहुंच जाएं यही हमारे लिए बहुत बड़ी बात है। चल-चलकर अब थक गए हैं, अब मन भर गया है इस दुनिया से।

संक्रमण से नहीं बेरोजगार होने का भय-

भिण्ड जिले के गजना गांव में गुजर-बरस न होने से पांच लोगों का परिवार करीब 12 साल पहले गुजरात के नारोल में जाकर बस गया और यहीं पर पेंट का काम करके जीवन-यापन करने लगा। बच्चों को पढ़ा-लिखाकर गरीबी के अभिशाप से मुक्त होने के सपने देखने लगा। इसलिए बच्चों को अच्छे विद्यालय में प्रवेश दिलवा दिया और दिन-रात मेहनत करके भविष्य के सपनों में खो गया। इस बीच आई अदृश्य महामारी कोरोना-19 ने उनके सपने रूपी महल को तबाह कर दिया और पांचों परिवारों के हाथ से रोजगार छिन गया। पिछले दो माह से कम्मोद सिंह, जगन सिंह, बृजराव व दो अन्य का परिवार घरों पर कैद होकर रह गया। मेहनत करके जो जमा-पूंजी जोड़ी थी वह खत्म हो गई और खाने तक के लाले पडऩे लगे। मकान मालिक ने घर से निकाल दिया और परिवार सड़क पर अनाथों की तरह आ गया। दो दिन तक परिवार भूखा सड़कों पर ही सोता रहा। अपनी और कुछ दोस्तों की मोटरसाइकिल से मातृभूमि की तरफ पंद्रह लोगों का परिवार पांच मोटरसाइकिलों पर सवार होकर निकल पड़ा। पूरा परिवार पिछले चार दिन से दिन-रात सफर करके मंगलवार को ग्वालियर की सीमा पनिहार में प्रवेश किया। उन्होंने बताया कि जहां जो कुछ मिल जाता वही खा लेते थे। रात में सड़क पर तीन से चार घंटे की नींद लेकर फिर मंजिल की तरफ रवाना हो जाते। कम्मोद बताते हैं कि यदि वहां रहते तो कोरोना से नहीं भूख से जरूर मर जाते।




नाकों पर हो रही खाना-पूर्ति-

इस टीम ने चिरवाई नाका, बेला की बावड़ी, पनिहार टोल, मालवा तिराहा, बामौर वायपास आदि सीमाओं पर पहुंचकर वहां टेबल डाले प्रशासन व पुलिस की टीम को देखा तो यह लोग आने-जाने वाले वाहनों को नहीं रोक रहे थे। चिरवाई पर एम्बुलेंस अथवा मरीज वाले वाहनों को शहर में जाने दिया जा रहा था। वहीं बेला की बावड़ी पर कोई रोक-टोक नहीं थी। ठीक यही स्थिति मालवा कॉलेज तिराहा पर थी। यहां सभी वाहन आराम से गुजर रहे थे। बामौर वायपास पर जरूर मुरैना से आने वाले वाहनों की पूछ-परख कर रिकार्ड संधारित किया जा रहा था। जबकि ग्वालियर से मुरैना जाने वाले वाहनों से कोई पूछताछ नहीं हो रही थी। इन नाकों पर जब पुलिस एवं प्रशासन के कर्मचारियों से बात की गई तो उनका कहना था कि हमें यह निर्देश हैं कि दूसरे राज्यों के वाहनों नहीं रोकना है। आसपास के जिलों में जाने वाले वाहनों की सिर्फ एंट्री की जाए।

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