आर्यनगर के देवेन्द्र को लगी थी गोली, तोमर के नेतृत्व में बंदी बनाए गए थे हजारों कार्यकर्ता

आर्यनगर के देवेन्द्र को लगी थी गोली, तोमर के नेतृत्व में बंदी बनाए गए थे हजारों कार्यकर्ता
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कारसेवा के लिए टोलियों में कार्यकर्ता पहुंचे थे अयोध्या

ग्वालियर, विशेष संवाददाता। राम जन्म भूमि आंदोलन में ग्वालियर-चंबल अंचल के लहू का भरपूर योगदान रहा। वर्ष 1990 में जब भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाल रहे थे, उसी दौरान कारसेवा में शामिल होने के लिए ग्वालियर से विभिन्न संगठनों के हजारों कार्यकर्ताओं ने अयोध्या के लिए कूच किया था किन्तु उस समय केन्द्रीय सुरक्षा बलों एवं उत्तर प्रदेश पुलिस ने इन कार्यकर्ताओं को झांसी में ही रोककर लक्ष्मी व्यायाम शाला में बंदी बना लिया था। चूंकि दो नवंबर 1990 को कारसेवा प्रस्तावित थी इसीलिए ग्वालियर से एक बड़ा जत्था 29 अक्टूबर को झांसी पहुंचा। जिसकी अगुवाई भाजयुमो के तत्कालीन प्रदेश उपाध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर कर रहे थे। इन सभी को झांसी जेल में बंदी बनाकर रखा गया। 30 अक्टूबर को इन सभी ने जिद्द की कि उनके द्वारा शहर में पथ संचलन निकाला जाएगा। काफी जद्दोजहद के बाद पथ संचलन निकला तो पुलिस और कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हुई। इस झड़प के बीच झांसी जेल में आर्यनगर मुरार के कार्यकर्ता देवेन्द्र श्रीवास्तव चैवी को गोली लगी। इस घटना में श्री तोमर बाल-बाल बचे क्योंकि वे चैवी के निकट ही खड़े थे। श्री तोमर एवं उदय घाडगे चैवी को लेकर तत्काल सेना के अस्पताल गए। वहां उपचार मिलने पर उनकी जान बच गई। इस दौरान तोमर के कपड़े भी खून से सन गए थे। यह जानकारी उनके निकट सहयोगी उदय घाडगे ने देते हुए बताया कि बहुत से कार्यकर्ताओं को दतिया में ही रोक लिया गया था। झांसी में हमारे साथ श्री तोमर के अलावा पूर्व विधायक भाऊ साहब पोतनीस भी नेतृत्व कर रहे थे।

जाजोरिया भी हुए थे घायल

छह दिसम्बर 1992 को अयोध्या में विवादित ढाचा ढहाए जाने के समय युवा कार्यकर्ता जयप्रकाश जाजोरिया भी गुम्बद पर चढऩे में कामयाब रहे थे। उनके साथ बड़ी संख्या में ग्वालियर के कार्यकर्ता अयोध्या में थे। भारी भीड़ की होचपोंच में जब एक के बाद एक गुम्बद गिराया जा रहा था तब उनके सिर में भी पत्थर और मलबा गिरने से वे जख्मी हो गए थे। उन्हें तत्काल अयोध्या के श्रीराम अस्पताल में भर्ती कराया गया। श्री जाजोरिया बताते हैं कि इस आंदोलन में उनके साथ ग्वालियर से सतीश सक्सेना, भारत भूषण शर्मा, राकेश साहू, सत्यवीर दुबे, ओमप्रकाश शेखावत, सतीश पांडे आदि भी थे। श्री जाजोरिया बताते हैं कि ढाचा ढहाए जाने के बाद केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने भाजपा की सरकारें बर्खास्त कर दी थीं। उस समय उनके पिता श्री दीनानाथ जाजोरिया खंडवा में सीएसपी हुआ करते थे। तब उन्हें सिर्फ इस कारण खंडवा से हटाकर पीएचक्यू अटैच कर दिया गया क्योंकि उनके बेटे ने अयोध्या की कारसेवा में हिस्सा लिया था। ऐसा नोटशीट में दर्ज किया गया।

गुप्त वाहिनी में शामिल थे भदौरिया

30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में गुप्त वाहिनी में कारसेवक के रूप में बजरंग दल के संभागीय संयोजक पूरन सिंह भदौरिया भी अयोध्या पहुंचे थे। बाद में इस वाहिनी का नाम राम जन्म भूमि आंदोलन से जुड़े वरिष्ठ नेता विनय कटियार ने बजरंग वाहिनी कर दिया। श्री भदौरिया ने बताया कि उनके साथ पंद्रह दिन पहले ही 18 कारसेवकों ने अयोध्या के लिए कूच किया। हमें समझा दिया गया था कोई आपस में बात नहीं करेगा। हिन्दू का प्रतीक चिन्ह माथे पर टीका, भगवा पट्टा नहीं रहेगा। साधारण व्यक्तियों की तरह हम वहां पहुंचे। हम गुप्त रूप से लखनऊ रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद गांव-गांव होते हुए पंचकोसी परिक्रमा में प्रकट हुए। वहां का वातावरण उस समय बेहद भयावह था क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने कारसेवकों को गोली मारने के आदेश दे दिए थे। इस तरह कई लोगों को गोली मारी गई और सरयू में बहा दिया गया। इसके बाद दूसरी कारसेवा छह दिसम्बर को हुई, उसमें भी वे शामिल रहे। वहां मंच पर बड़े नेता संबोधन दे रहे थे, जिसमें घोषणा की गई कि सभी कारसेवक एक मुट्ठी रेत लेकर कारसेवा करें। किंतु कारसेवकों ने हिन्दू समाज के कलंक को हटाने की ठान रखी थी। मैंने भी दीवार पर चढ़कर गुम्बद तोड़ा। इस दौरान एक दीवार धसक गई और मैं बड़ी मुश्किल में पीपल की जड़ को पकड़कर अपना बचाव कर सका।

दस साल की उम्र में गया था दीवार तोडऩे

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के ग्वालियर व गुना विभाग प्रमुख एवं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. नीतेश शर्मा दस साल की उम्र में कारसेवा में शामिल हुए थे। वह बताते हैं कि राम मंदिर आंदोलन के समय मैं दस वर्ष का था। मैं फूप कस्बे की चंद्रशेखर स्कूल में लगने वाली सायं भाग शाखा के स्वयं सेवक के रूप में काम कर रहा था। कार्यकर्ताओं के पास साधू-संतों, कारेसवकों के भोजन व रुकवाने की जिम्मेदारी थी। मुझे आज भी याद है कि 28 अक्टूबर 1990 मे उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार ने चम्बल पुल के बीच मे बहुत मोटी दीवार बनवा दी थी। कारसेवकों व बड़े भाई डॉ. राजेश शर्मा, चाचा देवेन्द्र शर्मा और ताऊजी पण्डित विश्वनाथ शर्मा के साथ पुल पर बनी दीवार तोडऩे पहुंच गया। दीवार तोड़ दी गई। इसे देखकर पुलिस ने गोलियां चलाना शुरू कर दिया। गोली लगने से स्वयं सेवक सत्यपाल अग्रवाल बुरी तरह घायल हो गए एवं 13 अन्य लोगो को भी गोली एवं छर्रे लगे। बाद मे इलाज के दौरान श्री अग्रवाल शहीद हो गए। मुझे आज भी वो मंजर याद है। मुझे दो पंक्तियां याद आती है तन समर्पित मन समर्पित और ये जीवन समर्पित, चाहता हूं मातृभूमि में तुझे कुछ और भी दू।



पवैया ने न्यास अध्यक्ष को सौंपी पवित्र माटी व चंबल का जल कलश

राम मंदिर आंदोलन में करीब से जुड़े रहे भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया ने अयोध्या पहुंचकर मंगलवार को चम्बल नदी का जल कलश एवं पीताम्बरा पीठ दतिया की पवित्र माटी को श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास जी महाराज को सौंपा। उक्त कलश व माटी को मंदिर निर्माण में समाहित किया जाएगा। यह वही संतों की छावनी है, जहां 1990 की कारसेवा में कफ्र्यू और संगीनों के बीच अशोक सिंघल सहित हजारों कारसेवक प्रकट हुए तथा यह स्थान अयोध्या आंदोलन का प्रमुख केन्द्र रहा।

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