विद्रोहियों ने भाजपा-कांग्रेस के दिग्गजों का बिगाड़ा खेल।

विद्रोहियों ने भाजपा-कांग्रेस के दिग्गजों का बिगाड़ा खेल।
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इस चुनाव में कई चुनाव क्षेत्र ऐसे रहे जहां भाजपा-कांग्रेस के विद्रोही अपने -अपने दलों के उम्मीदवारों की हार का सबब बन गए।

ग्वालियर। मध्य प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा के लिए संपन्न चुनाव में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला है। इस चुनाव में कई चुनाव क्षेत्र ऐसे रहे जहां भाजपा-कांग्रेस के विद्रोही अपने -अपने दलों के उम्मीदवारों की हार का सबब बन गए। ग्वालियर -चंबल संभाग में भी एक दर्जन सीटों पर विद्रोहियों ने चुनाव परिणामों को प्रभावित किया है। प्रदेश विधानसभा के लिए 17 नवंबर को मतदान और तीन दिसंबर को मतगणना हुई। चुनाव में विद्रोहियों को तवज्जो नहीं दी जा रही थी, वहां जब परिणाम सामने आए तो कई सीटों के परिणाम देख आमजन अचंभित थे।

ग्वालियर-चंबल संभाग में एक दर्जन सीटें ऐसी रहीं जहां विद्रोहियों ने चुनाव परिणामों को प्रभावित किया है। श्योपुर जिले की श्योपुर व विजयपुर सीट के परिणामों को देखा जाए तो दोनों सीटों के परिणामों को विद्रोहियों ने प्रभावित किया। यहां विद्रोहियों के मैदान में आने का फायदा कांग्रेस को मिला। श्योपुर सीट पर भाजपा के दुर्गालाल विजय 11,130 मतों से पराजित हुए। यहां भाजपा के बागी बिहारी सिंह सोंलकी को 23,054 मत मिले और कांग्रेस के बाबू जंडैल सिंह फिर विधायक बन गए। यहां महावीर सिंह सिसौदिया भी टिकट न मिलने से नाराज थे, लेकिन पार्टी नेतृत्व उन्हें समझाने में सफल रहा और उन्होंने बगावत नहीं की।

विजयपुर में भी विद्रोही भाजपा की जीत में रोढ़ा बन गए। यहां कांग्रेस के रामनिवास रावत 18,059 मतों से चुनाव जीते। रावत ने भाजपा के बाबूलाल मेवरा को हराया। मेवरा को 51,587 मत मिले। यहां बागी मुकेश मल्होत्रा को 44,128 वोट मिले। मेवरा पिछले चुनाव में भाजपा से बगावत कर बसपा से चुनाव लड़े थे और तीस हजार से अधिक मत हासिल किए थे। इसके बावजूद भाजपा के सीताराम आदिवासी चुनाव जीत गए थे। यहां सीताराम ने टिकट कटने पर विद्रोह तो नहीं किया। लेकिन उन पर भितरघात के आरोप लग रहे हैं।

भिण्ड जिले में भी भाजपा को विद्रोह का सामना करना पड़ा। यहां भिण्ड सीट पर ही संजीव कुशवाह विद्रोह कर एक बार फिर बसपा के टिकट पर मैदान में उतरे और 34,934 मत हासिल किए। वह भाजपा की जीत को नहीं रोक पाए । भाजपा के नरेन्द्र सिंह कुशवाह को 662420 मत मिले और वह 14,146 मतों से कांग्रेस के राकेश चतुर्वेदी को हराने में सफल रहे। चतुर्वेदी को 52,274 मत मिले। अटेर में भाजपा के अरविंद भदौरिया 20228 मतों से चुनाव हारे, उन्हें कांग्रेस के हेमंत कटारे ने पराजित किया। यहां भाजपा से पूर्व विधायक मुन्नासिंह भदौरिया ने विद्रोह तो किया और चुनाव भी लड़ा । लेकिन उन्हें 10288 मत मिले। भदौरिया भले ही ज्यादा वोट नहीं ले पाए, पर भाजपा की हार में सहायक अवश्य बने। लहार सीट पर भी भाजपा से पूर्व विधायक रसाल सिंह ने विद्रोह किया और बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ 31,348 वोट हासिल किए।

यहां भाजपा के अंबरीश शर्मा ने कांग्रेस के दिग्गज नेता गोविंद सिंह को 12,397 वोटों से हराया। यहां रसाल सिंह के चुनाव लडऩे का भाजपा को नुकसान तो नहीं हुआ, बल्कि लाभ ही मिला। रसाल सिंह ने सजातीय मतों में सेंध लगाई तो बसपा से चुनाव लडऩे के कारण अनुसूचित जाति के मत भी हासिल किए, फलस्वरूप कांग्रेस का यह गढ़ ढह गया। मुरैना जिले में भी विद्रोहियों ने सुमावली व मुरैना सीट के परिणाम को प्रभावित किया। सुमावली में कांग्रेस की बगावत का लाभ भाजपा को मिला।

यहां कांग्रेस से टिकट मिलने के बाद वापस लेने से खफा कुलदीप सिकरवार ने विद्रोह कर दिया। वह बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और 56, 500 मत हासिल कर दूसरे नंबर पर रहे फलस्वरूप कांग्रेस के अजब सिंह कुशवाह 55289 मत हासिल कर तीसरे नंबर पर पहुंच गए। भाजपा के ऐंदल सिंह कंषाना 16, 008 वोटों से चुनाव जीत गए। यहां ऐंदल सिंह कंषाना द्वारा कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने के बाद विधायक पद से इस्तीफा दे दिया गया था। इसके बाद हुए उपचुनाव में अजब सिंह ने ऐंदल सिंह को हराया था। इसी प्रकार मुरैना सीट पर भाजपा में विद्रोह का लाभ कांग्रेस को मिला। यहां कांग्रेस के दिनेश गुर्जर ने भाजपा के रघुराज सिंह को 19,871 से हराया।

यहां विद्रोह कर रमेश उपाध्याय आम आदमी पार्टी से चुनाव लड़े। लेकिन ज्यादा वोट नहीं ले पाए। भाजपा से एक और विद्रोह पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह और उनके सुपुत्र राकेश सिंह ने किया। राकेश सिंह बसपा से चुनाव लड़े और 37,167 वोट हासिल कर भाजपा की हार का सबब बन गए। दतिया जिले की दतिया सीट पर भाजपा से अवधेश नायक ने विद्रोह किया और कांग्रेस में चले गए। वह चुनाव तो नहीं लड़े, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी राजेन्द्र भारती के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चुनाव अभियान में शिरकत की। इसका नतीजा यह रहा कि भाजपा के दिग्गज नेता नरोत्तम मिश्रा 7,742 मतों से पराजित हो गए और भाजपा के हाथ से यह सीट निकल गई। सेवढा़ में विद्रोह का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा। यहां भाजपा के प्रदीप अग्रवाल 2528 मतों से चुनाव जीते। ऊन्होंने कांग्रेस के घनश्याम सिंह को हराया।

यहां कांग्रेस के विद्रोही दामोदर यादव ने 29,042 मत हासिल किए और कांग्रेस की हार में सहायक बन गए। जबकि कभी भाजपा में रहे संजय दुबे आप से चुनाव लड़े और 7746 मत हासिल किए। शिवपुरी जिले में पोहरी सीट पर कांग्रेस के बागी प्रघुम्न वर्मा बसपा से चुनाव लड़े वह भले ही कांग्रेस की हार का कारण नहीं बन पाए, लेकिन 37,261 मत हासिल करने में सफल हुए। यहां कांग्रेस कैलाश कुशवाह ने भाजपा के सुरेश राठखेड़ा को 49,481 मतों से हराया। राठखेड़ा मंत्री पद पर रहते चुनाव मैदान में थे। उप चुनाव में वह अपनी सीट बचाने में सफल रहे थे।

शिवपुरी सीट पर कोई बड़ा बागी तो नहीं था। लेकिन कांग्रेस के टिकट पर पिछोर छोडक़र शिवपुरी से मैदान में उतारे गए केपी सिंह की बुरी हार हुई। वह भाजपा के देवेन्द्र जैन से 40,030 वोटों से हार गए। चाचौडा़सीट पर भाजपा को विद्रोह का सामना तो करना पड़ा। लेकिन भाजपा को नुकसान तो नहीं हुआ। यहां पूर्व विधायक ममता मीणा ने विद्रोह कर आप से चुनाव मैदान में उतरीं और सिर्फ 27,405 मत हासिल कर सकीं। कांग्रेस के दिग्गज लक्ष्मण सिंह को 48648 मत मिले।वह

भाजपा की प्रियंका मीणा से 61570 मतों से पराजित हुए। प्रियंका को 1,10, 254 मत मिले।

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