गुरु अपने आप में एक पारस है, जिस को छू ले वह सोना हो जाता है : जगदीश गंगानी
ग्वालियर। राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के कत्थक नृत्य विभाग द्वारा आयोजित किये जा रहे ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय कत्थक सेमिनार के दूसरे दिन जगदीश गंगानी ने विषय- "पंडित सुंदरलाल गंगानी का जयपुर घराने के कत्थक नृत्य में विशेष योगदान" पर व्याख्यान एवं दूसरे चरण में रु मनीषा साठे " अपने कथक नृत्य के सफर के बारे में जानकारी दी।
यह सेमिनार आरएमटी कथक डांस डिपार्टमेंट ग्रुप" फेसबुक पेज पर आयोजित किया जा रहा है।प्रथम चरण में "गुरु मनीषा साठे " अपने कथक नृत्य के सफर के बारे में बताया जिसमें उन्होंने यह कहा कि मैंने अभी तक जो भी प्राप्त किया है। उसका पूरा श्रय मेरे माता पिता को जाता है। कथक नृत्य के सौंदर्य के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि- कत्थक में नृत्य - टेक्निकल, नृत्त- अभिनय से युक्त दोनों का समावेश होता है। जो शब्द ताल के आघात से उभर कर आते हैं कथक नर्तक उसे अपने पदाघात से सुंदर बनाता है।
नर्तक कभी देवता होता है, कभी असुर होता है, जब यह चरित्र नर्तक मंच पर दिखाता है, वही अभिनय है, जब ठाठ मैं कसक मसक किया जाता है। एक सुंदर प्रतिमा बनती है, वह प्रतिमा ही उसका सौंदर्य है, हस्तको का देखना और दिखाना भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसके अलावा अगर परन को देखा जाए तो परने तो अनगिनत है। इसमें जाति, यति, ग्रह का समावेश होता है त्रिपल्ली, चौपल्ली, कमाली इत्यादि अब परण में अंग संचालन को कैसे दिखाते हैं। यह बताते हुए उन्होंने कहां कि- किस परन में क्या दिखाना चाहते हैं जो हम बोलकर बताते हैं आनंद के साथ प्रभावी तरीके से, पढ़ंत करते समय संगत कारों का भी ध्यान रखना होता है क्योंकि वह आपको संभाले हुए हैं और आप उनको इसका बैलेंस बनाना जरूरी है किसी भी परन तोड़ा या उठान में पूरे अंग का संचालन होना चाहिए।
इसके अलावा छात्र एवं छात्राओं द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देते हुए बताया कि नायिकाओं का प्रयोग कथक नृत्य में बहुतायत देखा जाता है। खंडिता नायिका का प्रयोग बहुत होता है इसके अलावा स्वाधीनपतिका जीवन में कम देखने को मिलती है पर उसे मंच पर करने में बहुत आनंद आता है। इसको वंदिश के माध्यम से भी प्रस्तुत कर सकते हैं। इसके अलावा अन्य प्रश्न के जवाब मे बताया की नृत्य नाटिका की रचना करते समय पहले कथा क्या है, उसमें पात्र क्या है, संगीत का चयन, इत्यादि बातों का ध्यान रखना चाहिए।
सेमिनार के दूसरे चरण में "गुरु जगदीश गंगानी " ने अपने पिता "गुरु पंडित सुंदरलाल गंगानी " के बारे में बताते हुए कहा कि- गुरु पंडित सुंदरलाल गंगानी ने 11 वर्ष की आयु में अपनी प्रारंभिक शिक्षा 'पंडित शिव नारायण' से ली। उसके बाद उन्होंने तबले की शिक्षा 'गुरु श्री हजारीलाल' से ली एवं मुंबई जाकर अपने पिता 'गुरु श्री पंडित गौरीशंकर' से कत्थक नृत्य की विधिवत शिक्षा ली।
उन्होंने बताया कि परफॉर्मिंग आर्टिस्ट बनने के लिए तपस्या बहुत जरूरी है एवं गुरु का ज्ञान होना भी आवश्यक है। गुरु के ज्ञान के बिना परफॉर्मिंग आर्टिस्ट नही बन सकते अपने पिताजी का एक प्रसंग सुनाते हुए बताया कि- वह कहते थे कि "रियाज ऐसा कर कि भूमि तेरे साथ चलें" और इस बात का एहसास मुझे तब हुआ जब मैंने उन्हें प्रस्तुति करते हुए देखा जब वह मंच पर अपनी प्रस्तुति देते थे तो भूमि उनके साथ चलती थी। गुरु की समीक्षा करते हुए कहा- गुरु कहे सो करो उसको श्रद्धा से अपने जीवन में उतारो गुरु अपने आप में एक पारस है जो जिस को छू ले वह सोना हो जाता है। इसके अलावा उन्होंने अपने पिता गुरु पंडित सुंदरलाल गंगानी की कुछ रचनाएं सांझा की। उन्होंने सेमिनार में भाग ले रहैं विद्यार्थियों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के जवाब भी दिए।
इस सेमिनार का आयोजन राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के कथक नृत्य विभाग की एचओडी डॉ. अंजना झा द्वारा किया जा रहा है। सेमिनार के अंत में उन्होंने कुलपति महोदय पंकज राग एवं गुरु जगदीश गंगान गुरु मनीषा साठे का आभार व्यक्त किया।