भारतीय संस्कृति और जनजातीय संस्कृति मूल रूप से एक ही है: डॉ. खेमरिया
ग्वालियर, न.सं.। भारतीय संस्कृति और जनजातीय संस्कृति मूल रूप से एक ही है और इस साम्य में विभेद खड़ा किया जाना हिंदुत्व जीवन पद्धति के विरुद्ध एक वैश्विक षड्यंत्र है। यह बात बुधवार को जनजातीय सम्मान सप्ताह के अंतर्गत प्रज्ञा प्रवाह ग्वालियर द्वारा 'मध्यप्रदेश की जनजातियोंं का राष्ट्र निर्माण में योगदा विषय पर माधव विधि महाविद्यालय में आयोजित विचार गोष्ठी में पत्रकार डॉ. अजय खेमरिया ने कही।
कार्यक्रम में श्री खेमरिया ने कहा कि जनजतियों को लेकर एक बड़ा षड्यंत्र मिशनरीज और सेक्यूलर लॉबी द्वारा निर्मित किया जा रहा है जिसका उद्देश्य हिंदुओ में वर्गभेद खड़ा किया जा सके। डॉ. खेमरिया ने बताया कि 2014 के बाद देश की संसदीय राजनीति से सेक्युलरिज्म का तत्व अपनी प्रासंगिकता खो चुका है इसलिए अब जनजातीय मुद्दों पर हिन्दू समाज में अलगाव खड़ा करने का प्रयास वामपंथी ईको सिस्टम कर रहा है। जनगणना में जनजातियों को हिन्दू दर्ज न करने या झारखण्ड में सरणा कोड को लेकर जो प्रयास हो रहे हैं उनकी बुनियादी सोच हिन्दू समाज को कमजोर करने की है। उन्होंने मप्र की जनजातियों के गौरवशाली इतिहास को राष्ट्रीय परिदृश्य में प्रतिष्ठित किए जाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में वनवासियों को सामाजिक रूप से आत्मसात किए जाने से ही इस षड्यंत्र का सामना किया जा सकता है। वेबिनार में समिति के शासी निकाय अध्यक्ष प्रवीणे नेवास्कर, सुधीर शर्मा मुख्य रूप से उपस्थित थे। अध्यक्षता सहायक प्राध्यापक सर्वेश सोनी ने की। संचालन महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. नीति नितिन पाठक ने किया।