800 वर्ष से प्रकृति की गोद में विराजमान है श्री नलकेश्वर महादेव, सुगम वादियों में है आस्था स्थल

800 वर्ष से प्रकृति की गोद में विराजमान है श्री नलकेश्वर महादेव, सुगम वादियों में है आस्था स्थल
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ग्वालियर शहर से लगभग 35 किलोमीटर दूर और तिघरा बांध से 15 किलोमीटर घने जंगल एवं पर्वत की तलहटी में लगभग 800 वर्ष से भगवान श्री नलकेश्वर का विग्रह विराजमान है


ग्वालियर, न.सं.। ग्वालियर शहर से लगभग 35 किलोमीटर दूर और तिघरा बांध से 15 किलोमीटर घने जंगल एवं पर्वत की तलहटी में लगभग 800 वर्ष से भगवान श्री नलकेश्वर का विग्रह विराजमान है। सडक़ मार्ग से चलकर नलकेश्वर पर्वत तक पहुंचा जा सकता है, उसके बाद पर्वत से नीचे से गुफानुमा प्राकृतिक पथ है। यहां ऐसा प्रतीत होता है कि हम श्रीखंड महादेव के दर्शन करने के लिए जा रहे हैं। श्रावण मास के समय यहां भक्तों की बहुत अधिक भीड़ होती है।

नलकेश्वर महादेव मंदिर पर पहाड़ से गिरता झरना वातावरण को गुंजायमान करता है। यह झरना नीचे प्राकृतिक सांक नदी का रूप ले लेता है और यह नदी तिघरा बांध के जल का स्त्रोत भी है। पहाड़ों के बीच होकर निकलने वाला यह पानी बिल्कुल दूध की तरह दिखाई देता है। माना जाता है कि राजा मानसिंह ने मृगनयनी से विवाह करने के लिए मृगनयनी की शर्त पर यही पानी ग्वालियर किले तक एक पाइप लाइन डालकर पहुंचाया था। लगभग एक से डेढ़ किलोमीटर नीचे उतरने के बाद मंदिर तक बीस सीढिय़ांं चढक़र पहुंचते हैं। यहां एक कंदरा है जिसमें झुक कर जाने पर श्री शिव का विग्रह है। यह द्वापरयुगीन है और स्वयं प्रकटित है। यहां का रास्ता थोड़ा खतरों से भरा हुआ है, क्योंकि यहां पर जंगली जानवर तेंदुआ, सांप, बिच्छु आदि बहुत मिलते हैं। जो खतरा उठाकर पहुंचते हैं, वे यहां की प्राकृतिक सुंदरता देख पाते हैं।


गालव ऋषि की तपस्या से प्रकट हुई गंगा:-

मंदिर के महंत लगभग 90 वर्षीय रघुवर दास जी महाराज ने बताया कि यहां भगवान भोलेनाथ की पिंडी स्वत: ही निकली है। यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है। श्रद्धा और विश्वास की परंपरा में भक्त श्री नलकेश्वर महादेव का पूजन करने दूर-दूर से आते हैं। श्रावण मास में यह उत्सव का रूप ले लेता है। महंत श्री ने बताया कि गालव ऋषि ने यहां तपस्या की जिससे यहां गंगा जी प्रकृट हुईं। इन गंगा जी का पानी ग्वालियर के तिघरा बांध में जाता है। गालव ऋषि के नाम पर ही शहर का नाम ग्वालियर पड़ा है। महंत श्री ने बताया कि यहां बिजली की समस्या अधिक है। सरकार से हमारी अपील है कि यहां बिजली की समुचित व्यवस्था की जाए।

मृगनयनी की ताकत को देखकर मोहित हो गए थे राजा मानसिंह:-

महंत श्री ने बताया कि प्राचीन समय में इस मंदिर के पास ही राई गांव बसा था, जहां मृगनयनी रहती थी। मृगनयनी की ताकत को देखकर राजा मानसिंह मोहित हो गए और विवाह का प्रस्ताव रखा। मृगनयनी ने विवाह से पहले तीन शर्ते रखीं। मृगनयनी ने कहा कि उनके रहने के लिए अलग से महल बनवाया जाए। दूसरी शर्त यह थी कि उनके गांव राई से सांक नदी का पानी महल में लाया जाए। तीसरी शर्त यह थी कि वह पर्दा नहीं करेंगी। शर्ते पूरी होने के बाद ही मृगनयनी ने राजा मानसिंह से शादी की।

बूंद-बूंद टपकता है शिवलिंग पर जल:-

मंदिर कैसे बना, इसका प्रमाणिक इतिहास तो नहीं मिलता है, लेकिन इस मंदिर में पहाड़ों से होकर सांक नदी का पानी वाटर फॉल के जरिए पहुंचता है। इस प्राकृतिक वाटर फॉल का पानी पत्थर में ही तराशी गई गौमुख की आकृति से होकर निकलता है तो इसकी शुद्धता और ज्यादा बढ़ जाती है। यही पानी शिवलिंग के ऊपर बूंद-बूंद करके टपकता है। यह दृश्य भी नलकेश्वर को अलग रूप देता है।





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