ग्वालियर में भव्य कलश यात्रा के संग राघव ऋषि की कथा शुरू

ग्वालियर में भव्य कलश यात्रा के संग राघव ऋषि की कथा शुरू
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सिर पर कलश लेकर चलीं 151 महिलाएं, शहरवासियों ने किया यात्रा का जगह जगह स्वागत

ग्वालियर। ऋषि सेवा समिति के द्वारा माधव मंगल पैलेस में आयोजित क ी जा रही श्रीमद्भागवत कथा का भव्य कलश यात्रा के साथ शुभारंभ हुआ। कलश यात्रा में 151 माता बहनें में जलपूरित कलश सिर पर धारण किए पीले वस्त्रों में शामिल हुईं। इस दौरान बग्घी पर सवार राघव ऋषि का शहरवासियों से पुष्पवर्षा कर स्वागत किया। सोमवार को शुकदेव आगमन एवं भगवान कपिल देव सहित भक्त ध्रुव की भक्ति का प्रसंग रहेगा। कलश यात्रा में मुख्य यजमान प्रमोद गर्ग सपरिवार भागवत पोथी लेकर चले। उनके साथ सैकड़ों श्रद्धालु परे भाव के साथ कलश यात्रा में शामिल हुए। कलश यात्रा के शहर में कई स्थानों पर स्वागत किया गया। यात्रा नयाबाजार स्थित करौली मंदिर से प्रारंभ होकर दालबाजार, जयेंद्रगंज होते हुई कथाथल पर पहुंची ,जहां सभी श्रद्धालुओं ने प्रसादी ग्रहण की।

मानव मन का मंथन कर देती है कथा

राघव कथा के प्रथम दिवस राघव ऋषि ने कथा का महात्म बताते हुए कहा कि कथा के माध्यम से सच्चिदानंद प्रभु की प्राप्ति होती है, जो आनंद हमारे भीतर है उसे जीवन में किस प्रकार प्रकट करें यही भागवत शास्त्र सिखाता है। जैसे दूध में मक्खन रहता है फि र भी वह दिखाई नहीं देता,लेकिन मंथन करने पर मिल जाता है। इसी प्रकार मानव मन को मंथन करके आनंद प्रकट करना है। मनुष्य जीवन का लक्ष्य है। परमात्मा से मिलना उसका जीवन सफ ल है, जिसने प्रभु को प्राप्त किया।

गृहस्थी का काम करके भी भगवान की प्राप्ति

उन्होंने कहा कि भागवतशास्त्र आदर्श दिव्य ग्रन्थ हैं। घर में रहकर के भगवान को कैसे प्राप्त करें इस शास्त्र में सिखाया गया है। गोपियों ने घर नहीं छोड़ा घर गृहस्थी का काम करके भी भगवान को प्राप्त कर सकीं। एक योगी जो आनंद समाधी में मिलता है वही आनंद आप घर में रहकर भी प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कथा के माहात्म्य की कथा सुनाते हुए बताया कि धुंधकारी जैसा अनाचारी जो प्रेत यौनि में चला जाता है और भागवत शास्त्र के माध्यम से मुक्त होता है। कथा के अंत में ऋषि सेवा समिति के संयोजक रामबाबू अग्रवाल, संतोष अग्रवाल, उमेश उप्पल, संजय शर्मा,देवेंद्र तिवारी, हरिओम मिश्र, रामप्रसाद शाक्य, चंद्रप्रकाश शुक्ल, बद्रीप्रसाद गुप्ता, रामसिंह तोमर, उदय चित्तोरिया आदि अनेक गणमान्य भक्तों ने प्रभु की भव्य आरती की। कथा में राघव ऋषि के सुपुत्र सौरभ ऋ षि ने गौरी के नंदन की का सुमधुर गायन किया तो भक्त भाव विभोर हो गए।

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