बारिश की संगीतमयी थाप के सुरों से सजी "तानसेन समारोह" की महफिल
ग्वालियर। हल्की बारिश की संगीतमयी थाप के साथ व्रह्म नाद के साधकों ने जब स्वर लहरियां बिखेरी तो लगा जैसे गान मनीषी तानसेन का आँगन दिव्य सुरों में सज गया है। खूबसूरत देश फ्रांस से आए संगीतज्ञ मार्टिन डबॉइस ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के रागों के साथ संगत की तो लगा सारे रुके सुर एक साथ बजने लगे हैं। यहां बात हो रही है विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह के तहत रिमझिम फुहारों के बीच सजी मंगलवार की प्रातःकालीन सभा की।
मधुर थाप के साथ जैसे-जैसे बारिश का बरसना शुरू हुआ तो मीठे-मीठे सुरों ने भी बूँदों के साथ साम्य बना लिया। पश्चिमी देश फ़्रांस से आये मार्टिन ने ताल वाद्य के अलावा कोरा एवं गायन भी किया। उनके द्वारा प्रस्तुत जैज संगीत सुनते ही बन रहा था। मार्टिन के गायन-वादन में भारतीय शास्त्रीय संगीत की झलक भी दिखाई दी। अफ्रीकन लोक संगीत से भी उन्होंने श्रोताओं को रू-ब-रू कराया। उनकी आकर्षक प्रस्तुति से एक नूतन संगीत गूँज उठा और रसिक मंत्रमुग्ध हो गए।
भारतीय संगीत महाविद्यालय के ध्रुपद गायन से हुई शुरुआत -
तानसेन समारोह की चौथी एवं मंगलवार की प्रातःकालीन सभा की शुरुआत पारंपरिक ढंग से स्थानीय भारतीय संगीत महाविद्यालय के ध्रुपद गायन के साथ हुई। राग देशी में प्रस्तुत ध्रुपद रचना के बोल थे " रघुवर की छवि सुंदर"। पखावज पर संजय आगले और हारमोनियम पर मुनेन्द्र सिंह ने संगत की। इस मनोहारी प्रस्तुति में संगीताचार्य संजय देवले का कुशल संयोजन रहा।
"नज़रिया लागे नहिं कहीं और...."
बारिश का संगीत से भी खुशनुमा रिश्ता है। आसमान से झर रहीं बारिश की बूँदों के बीच उदयीमान ख्याल गायिका तृप्ति कुलकर्णी ने अपनी स्वर लहरियों का आकषर्ण बिखेरा। तानसेन समारोह में इंदौर से पधारीं तृप्ति कुलकर्णी की दूसरे कलाकार के रूप में प्रस्तुति हुई।मधुर एवं बुलंद आवाज की धनी तृप्ति ने अपने गायन के लिए शुद्ध धैवत और मारवा ठाठ का राग " विभास" चुना। उन्होंने रूपक में बड़ा ख्याल "हो श्याम.." और इसके बाद एक ताल मध्यलय में छोटा ख्याल "पिया रैन जागे.." प्रस्तुत कर समा बांध दिया। तृप्ति कुलकर्णी ने जब प्रसिद्ध दादरा "नज़रिया लागे नहिं कहीं और ..." का सुमधुर गायन किया तो रसिक प्रेम रस से सराबोर हो गए। उनके गायन में तबले पर गांधार राजहंस व हारमोनियम पर विवेक जैन ने शानदार संगत की। तानपूरे पर कल्याणी व अंकिता ने अच्छा साथ निभाया।
सुधा रघुरामन ने दी कर्नाटक शैली के रागों से गान महृषि तानसेन को स्वरांजलि
कर्नाटक संगीत की ख्यातिनाम गायिका सुधा रघुरामन ने संगीत मोहक गायन से अलग ही रंगत बिखेरी। गान महृषि तानसेन को उन्होंने हिदुस्तानी शास्त्रीय संगीत अर्थात कर्नाटक शैली की मिसुरी भरी राग-रागनियों से स्वरांजलि अर्पित की।तानसेन समारोह में प्रस्तुति देने दिल्ली से पधारीं रघुरामन ने कर्नाटक शैली के राग "अमृत वर्षिणी" में अपने गायन का आगाज़ किया। अपनी खनकदार आवाज से सुंदर स्वरावली का उपयोग करते हुए उन्होंने दक्षिण भारत के प्रसिद्ध संगीतज्ञ संत मुत्थु स्वामी की रचना का सुमधुर गायन किया। उनके साथ बाँसुरी पर जी रघुरामन, मृदंगम पर एम व्ही चन्द्रशेखर और तबले पर शम्भूनाथ भट्टाचार्य ने कमाल की संगत कर गायन को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं।सुधा रघुरामन कर्नाटक शैली में अब तक ढाई सौ से अधिक गीत रिकॉर्ड करा चुकीं हैं। वे देश के प्रसिद्ध संगीत समारोहों के साथ ऑस्ट्रेलिया व अमेरिका सहित दुनियाँ के कई देशों के प्रतिष्ठित मंचों पर भी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति दे चुकीं हैं।
बनारस घराने की गायकी से गुंजायमान हुआ प्रांगण -
प्रतिभावान युवा गायक राहुल मिश्रा व रोहित मिश्रा की जोड़ी ने जब अपनी दानेदार व बुलंद आवाज़ में राग "देशी तोड़ी" और तीन ताल में निबद्ध छोटा ख्याल "गूंद गूंद लाओ री मालनिया..." का गायन किया तो बनारस घराने की गायकी जीवंत हो उठी।तानसेन समारोह में चौथे कलाकार के रूप में बनारस घराने की इस युवा जोड़ी की प्रस्तुति हुई। राग "देशी तोड़ी" में सुंदर रागदारी के साथ बड़ा ख्याल पेश किया। गायन की जुगलबंदी में हारमोनियम पर पंडित धर्मनाथ मिश्र, तबले पर अंशुल प्रताप सिंह और सारंगी पर उस्ताद मजीद खान ने नफासत भरी और कमाल की संगत की।