तानसेन समारोह : पिता-पुत्र के संगीत से सजी महफिल, इजरायली वादक ने दी स्वरांजलि

तानसेन समारोह : पिता-पुत्र के संगीत से सजी महफिल, इजरायली वादक ने दी स्वरांजलि
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ग्वालियर। भारतीय शास्त्रीय संगीत के सर्वाधिक प्रतिष्ठित महोत्सव "तानसेन समारोह" में बुधवार को सजी छठी सभा में पिता-पुत्र की जोड़ी ने उच्चकोटि की ध्रुपद गायिकी पेश कर गान मनीषी तानसेन को सच्ची स्वरांजलि अर्पित की। कानपुर उत्तरप्रदेश से पधारे पंडित विनोद कुमार द्विवेदी एवं उनके सुयोग्य सुपुत्र आयुष कुमार द्विवेदी के युगल ध्रुपद गायन ने गुणीय संगीत रसिकों पर गहरी छाप छोड़ी। युगल गायन की शुरुआत राग "भीम पलाशी" से की। उन्होंने ध्रुपद शैली की बहुत ही कठिन 18 मात्रा की रचना मत्त ताल में प्रस्तुत कर समा बांध दिया।

मधुर एवं बुलंद आवाज की धनी पिता-पुत्र की जोड़ी ने जब ध्रुपद बंदिश "राम नाम धरो ध्यान निश दिन " का गायन किया तो रसिक भगवान राम की भक्ति में ओत-प्रोत हो गए। राग भीम पलाशी में ही उन्होंने शूल ताल में एक बंदिश " मूरत बसी मन में" का भी सुंदर रागदारी के साथ गायन किया। उन्होंने संगीत सम्राट तानसेन को समर्पित ध्रुपद रचना "धन धन तानसेन" प्रस्तुत कर अपने गायन को विराम दिया। इस प्रस्तुति में पखावज पर मनोज सोलंकी और सारंगी पर उस्ताद आबिद हुसैन ने अच्छा साथ दिया।

भरत नायक के सितार वादन से हुई सुरवर्षा -


जिस तरह निर्मल पानी की ठहरी हुई शांत झील में कंकड़ फेंकने से मनोहरी लहरें अठखेलियां करने लगती हैं, उसी तरह अपने ग्वालियर की युवा सितार वादक भरत नायक की अंगुलियों ने सितार के तार छेड़े तो सुर लहरियां फूट पडीं, जाहिर है रसिकों को उसमें डूबना ही था।भरत नायक ने अपने सितारवादन के लिए राग "चारूकेशी'' चुना। इस राग में उन्होंने अलाप जोड़-झाला के पश्चात विलंबित व द्रुत गति की दिल को छू लेने वाली प्रस्तुति दी। सितार से निकलती मधुर स्वर लहरियों ने सहज ही श्रोताओं को अपने साथ बांध लिया। उन्होंने राग चारूकेशी दक्षिण भारत का राग है, जिसे उत्तर भारत के संगीतकारों ने भी बड़े आदर के साथ अपनाया है। भरत नायक ने एक मधुर धुन बजाकर अपने सितार वादन का समापन किया। इनके साथ तबले पर रामेन्द्र सिंह सोलंकी व तानपूरा पर भरत नायक के सुपुत्र लक्ष्य नायक ने बेजोड़ संगत की।

इजरायली वाद्य बजूकी से सुर सम्राट को स्वरांजलि -


तानसेन समारोह की छठवीं सभा में इजराइल के प्रसिद्ध संगीतज्ञ युसूफ रूस अलौश ने विश्व संगीत के अंतर्गत "बजूकी" वाद्य यंत्र से कर्णप्रिय धुनें निकालकर सुर सम्राट तानसेन को स्वरांजलि अर्पित की। उन्होंने अपने वाद्य यंत्र से यूरोपियन प्रसिद्ध रचनाओं की धुन निकालकर श्रोताओं पर गहरी छाप छोड़ी।

"गोकुल की गलियां सूनीं"


रामपुर सांगीतिक घराने की वर्तमान पीढ़ी की सुप्रसिद्ध गायिका डॉ. सरिता पाठक यजुर्वेदी के गायन के साथ तानसेन समारोह की छठवीं सभा का समापन हुआ। नई दिल्ली से पधारीं डॉ. सरिता पाठक ने सुविख्यात गायिका विदुषी सुलोचना ब्रहस्पति से संगीत की तालीम ली है। उन्होंने राग "गौंड सारंग" में जब विलंबित एक ताल में बंदिश "गोकुल की गलियां सूनी" का सुमधुर गायन किया। इसके बाद उन्होंने जब सुरीली तान के साथ द्रुत तीन ताल में "झनन-झनन पायल बाजे" का गायन किया तो रसिक झूम उठे।

डॉ. सरिता पाठक ने इसी राग में एक तराना पेश किया। उनके साथ तबले पर सुधर पाण्डेय, हारमोनियम पर सुरेश कुमार साहू और सारंगी पर घनश्याम सिसौदिया ने बहुत ही शानदार संगत की। गायन में उनकी शिष्या डॉ. शिवांगी और शुभांगी वर्धन ने भी अच्छा साथ दिया।

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