सन् 1913 में बने टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी विभाग को देश-विदेश में बसे एल्युमिनी कर रहे पुनर्जीवित

सन् 1913 में बने  टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी विभाग को देश-विदेश में बसे एल्युमिनी कर रहे पुनर्जीवित
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टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी विभाग 1913 से संचालित किया जा रहा है। यह सिंधिया घराने का ग्वालियर के विद्यार्थियों को तोहफा था जो आज नजरंदाजी की वजह से बर्बाद हो रहा है।

ग्वालियर। भारत को आजादी मिलने से पहले से ही ग्वालियर में सन् 1913 में डॉ. भीम राव अंबेडकर पॉलिटेक्निक कॉलेज की स्थापना की गई थी। जिसका हिस्सा रहा टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी विभाग भी तभी से संचालित किया जा रहा है। यह सिंधिया राजघराने का ग्वालियर के विद्यार्थियों को तोहफा था। जो आज नजर अंदाजी की वजह से बर्बाद हो रहा है। वर्तमान में विभाग के पास संसाधनों की कमी होने की वजह से विद्यार्थी एडमिशन नहीं ले रहे हैं। वर्तमान में विभाग में कुल 180 सीट्स पर महज 50 ही विद्यार्थी अध्ययनरत है। प्रैक्टिकल करने के लिए सन् 1913 की मशीनें चालू अवस्था में लेकिन शिक्षिकों की कमी से कक्षाएं लगती ही नहीं। क्योंकि ज्यादा से ज्यादा गेस्ट फैकल्टी पर ही पूरे विभाग का जिम्मा है। इन कमियों को दूर करने के लिए विभाग में पढ़े एल्युमिनीस ने सीटीआई टेक्सटाइल एल्युमिनी एसोसिएशन की स्थापना की है। जिसमें सन् 1970 के एल्युमिनी जुड़े हुए जिन्होंने विभाग को संसाधनों की पूर्ति करवाने का जिम्मा उठाया है।

110 साल की बेशकीमती मशीनें बारिश के पानी से हो रही खराब-

ग्वालियर कलेक्टर से लेकर अन्य जिम्मेदारों को बिल्डिंग की जर्जर हालत और बारिश के पानी से चालू अवस्था में मशीन खराब हो रहीब बेशकीमती मशीनों पर मकड़ी के जाले लग रहे हैं। क्लासेस में पानी टपक रहा है। कई बार बारिश के दिनों में विद्यार्थियों को बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पढ़ती है। एल्युमिनी इस विषय में कई अधिकारियों और राजनेताओं से मिल चुके हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

एल्युमिनी ने 4 से 5 लाख फंड किया खर्च-

एल्युमिनी मयंक दीक्षित और सुनील अग्रवाल ने बताया कि सन् 1970 से लगभग 300 एल्युमिनी एसोसिएशन से जुडें हुए हैं। जो अब तक विभाग की मरम्मत में 4 से 5 लाख रूपए खर्च कर चुके हैं। विदेश में बैठे एल्युमिनी भी इस विभाग को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। विभाग से बेहतर कंपनी में प्लेसमेंट दिलवा चुके हैं। और आगे भी एल्युमिनी न्यू एडमिशन के लिए काउंसलिंग कर रहे हैं जिससे विभाग को खोई हुई पहचान मिल सकें।

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